हिंदुओं के महाग्रंथ रामायण को भले ही आप हज़ार बार देख लें या उसे पढ़ लें, लेकिन उसके समूचे रहस्यों को जान पाना इतना आसान नहीं है. रामायण का हर एक पात्र और घटना अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है. उन्हीं रहस्यों में से एक रहस्य ये भी है कि आखिर क्यों लंकाधिपति रावण ने इतने सालों तक कैद में रखने के बावजूद मां सीता को छुआ तक नहीं. हालांकि, रावण ने माता सीता को कितने दिनों तक अपने कैद में रखा, यह भी महज एक रहस्य ही है. बहरहाल, आज इसी अनकहे और अनसुने रहस्य को जानने की कोशिश करते हैं.
अर्ध ब्राह्मण और अर्ध दानव के रूप में रावण भगवान शिव का परमभक्त था. असुरों का राजा रावण न सिर्फ़ अद्भुत योद्धा और ज्योतिषशास्त्र का जनक था, बल्कि वेदों का बहुत बड़ा ज्ञाता भी था. ऐसा कहा जाता है कि रामायण की घटनाओं और अपने अंत के बारे में वह पहले से ही सब कुछ जानता था. लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों उसने माता सीता को कैद के दौरान छुआ तक नहीं.

क्या इसकी वजह माता सीता की सतीत्व की शक्ति थी या फिर रावण डरता था भगवान राम से? कहीं ऐसा तो नहीं कि रावण ने कोई वचन धारण कर रखा हो या किसी शाप के बंधन में मजबूर हो?
दरअसल, माना जाता है कि रावण द्वारा माता सीता को न छू पाने की वजह एक श्राप था. वही श्राप रावण को बार-बार मां सीता से जबरदस्ती करने से रोकता था.
इस श्राप की कहानी राम के काल से बहुत पहले की है. तब जब शायद महाराज दशरथ का जन्म हुआ था.

ये कहानी है उस वक़्त की जब रावण स्वर्ग लोक को जीतने के अभियान में तल्लीन था. स्वर्ग लोक जीतने के समय रावण ने एक बार आराम फरमाने के लिए कुबेर के शहर अलाका में अपना डेरा डाला. कुबेर का शहर हिमालय के पास था. वहां का वातावरण अत्यंत मनोरम था. उस दिन आसमान में बादल छाए थे और हवाएं भी बह रही थीं. चारों तरफ़ फूलों की खुशबू ही खुशबू बिखरी थी. ऐसा वातावरण था कि रावण के अंदर काम, वासना और इच्छा जागृत हुई.
उसी वक़्त उस रास्ते से स्वर्ग के अप्सराओं की रानी रंभा रावण के भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी. रास्ते में रावण की नज़र उस पर पड़ी और वह रंभा के रूप और सौंदर्य को देखकर मोहित हो गया. रावण ने रंभा को बुरी नीयत से रोक लिया. अपनी इच्छा पूर्ति के उद्देश्य से रावण ने अपना परिचय दिया और उसने अपने सामने रंभा से सौंदर्य प्रदर्शन को कहा.

इस पर रंभा ने रावण से उसे जाने देने की प्रार्थना की और कहा कि आज मैंने आपके भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने का वचन दिया है. मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं. इसलिए मुझे छोड़ दीजिए और जाने दीजिए. पर उस अनुनय-विनय का रावण पर कोई असर नहीं पड़ा. रावण काम-वासना के नशे में ऐसा चूर हो गया कि उसे रिश्तों का भी ख्याल नहीं रहा और उसने रंभा के साथ जबरदस्ती की और उसके शील का हरण कर लिया. (वाल्मीकी रामायण, उत्तराकाण्ड, अध्याय 26, श्लोक 39)
रावण द्वारा रंभा के साथ हुए दुराचार की ख़बर जब कुबेर देव के पुत्र नलकुबेर को प्राप्त हुआ, तो वह रावण पर अत्यंत क्रोधित हुआ. अपनी प्रिय के दुराचार का बदला लेने और क्रोध के कारण नलकुबेर ने रावण को श्राप दे दिया कि आज के बाद यदि रावण ने किसी भी स्त्री को बिना उसकी स्वीकृति के अपने महल में रखा या उसके साथ दुराचार करने की कोशिश की, तो वह उसी क्षण भस्म हो जाएगा. (श्लोक 55)

इस श्राप के बाद रावण के पैरों तले ज़मीन खिसक गई. वह अत्यंत भयभीत हो गया. यही कारण था कि कैद के दौरान भी रावण ने सीता माता की मर्जी के बिना कभी उन्हें छूने की कोशिश नहीं की, क्योंकि उसे परिणाम पता था.
इसी श्राप के डर से रावण ने सीता को राजमहल में न रखते हुए राजमहल से दूर, अशोक वाटिका में रखा.