जब देश में लॉकडाउन शुरू हुआ है, कई लोग दाने-दाने को मोहताज़ हैं. इस दौरान कुछ लोगों की दर्दभरी कहानी सामने आ गई, तो कुछ लोगों की दबी रह गईं. इस दौरान कई लोग ऐसे भी सामने आये, जिन्होंने मजबूरों का दर्द समझा और उनकी मदद को आगे आए. तबाही के इस दौर में महाराष्ट्र के लोगों को भी युवा स्वयंसेवकों के एक समूह का साथ मिला.

ये युवा स्वयंसेवक ग्रुप रोज़ाना ज़रूरतमंदों को खाना खिला कर उनका पेट भारता है. दरअसल, इन युवाओं ने लॉकडाउन के बाद 29 मार्च को ‘खाना चाहिए’ नामक पहल की शुरुआत की. इसके बाद से 50 दिनों के भीतर वो पूरे महाराष्ट्र में 22 लाख Meals वितरित कर चुके हैं. यही नहीं, देश में जब तक लॉकडाउन ख़त्म नहीं हो जाता है. ये युवा समूह खाना वितरण का काम जारी रखेगा.

Ruben Mascarenhas ‘खाना चाहिये’ के को-फ़ाउंडर हैं. उन्होंने इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान बताया, जब पहली दफ़ा लॉकडाउन की घोषणा की गई, तो उन्हें कई लोगों के भूखे रहने की जानकारी मिली. लॉकडाउन के कारण ग़रीब तबके के लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए थे. इसलिये पहले उन्होंने Western Express Highway पर 1200 खाने के पैकेट बंटवाना शुरू किया. इसके बाद खाना वितरित करने का रुट बढ़ाते हुए Eastern Express Highway, Link Road और SV Road मुंबई तक पहुंच गया.

वहीं को-फ़ांउडर नीती गोयल और प्रणव रूंगटा ने कई रेस्टोरेंट्स से इस पहल पर बात की, जो कि उन्हें कम पैसों में भोजन प्रदान करते हैं. इसके बाद वही खाना स्वयंसेवक ज़रूरतमंदों तक पहुंचाते हैं. पांच रेस्टोरेंट्स की मालिक नीती गोयल कहती हैं कि सभी लोगों को काफ़ी संघर्ष से भी गुज़रना पड़ा. वो लोग जो रेस्टोरेंट में काम करते हैं अपने घर नहीं जा सकते. साफ़-सफ़ाई का पूरा ध्यान रखना होता है. कर्मचारियों को लगातार प्रेरित करना. कई बार वो परेशान होते हैं, लेकिन हमने सभी चुनौतियों का सामना करते हुए काम जारी रखा.

लोगों तक पहंचने वाले खाने पैकेट 400 ग्राम के होते हैं. इस पैकेट में दाल, चावल, रोटी, सब्ज़ी और खिचड़ी जैसी अन्य चीज़ें होती हैं. वहीं रविवार को ख़ास भोजन में पाव-भाजी परोसा जाता है. यही नहीं, ‘खाना चाहिए’ ने महाराष्ट्र के कुर्ला, बांद्रा और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस तीनों स्टेशन्स को गोद भी लिया है. जहां वो यात्रियों को पानी, बिस्कुट आदि वितरित करते हैं.

इसके अलावा इनके द्वारा ‘घर भेजो’ अभियान की शुरुआत भी की गई है. इस अभियान के ज़रिये ये समूह 680 प्रवासी कारीगरों को बस द्वारा उनके घर पहुंचा चुका है.
ज़ररूतमंदों की मदद करने वाले इस समूह को दिल से सलाम!
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