Arrowroot History: व्रत हो या फिर कोई दूसरा त्योहार अक्सर खाने में अरारोट का इस्तेमाल किया जाता है. ये असल में आलू या शकरकंद का पाउडर होता है जिसका प्रयोग ग्रेवी बनाने के लिए अधिकतर किया जाता है. चिली पनीर से लेकर टिक्की तक में इसका प्रयोग आए दिन शेफ़ अपने किचन में करते हैं. 

ararot
healthifyme

ये खाने में सुपाच्य होता है. इसे कई जगह तीखुर भी कहा जाता है. मराठी में इसे आरारूट, बंगला में ओरारूट और तवक्षीर, गुजराती में तवखार कहा जाता है. इसे कुछ लोग इंडियन सुपरफ़ूड भी कहते हैं. हर दिन किचन में इस्तेमाल होने वाले इस फ़ूड का इतिहास भी दिलचस्प है. चलिए आज इसके इतिहास से भी आपको रू-ब-रू करवा देते हैं. 

ये भी पढ़ें: सत्तू को क्यों कहते हैं ‘बिहार का टॉनिक’, बड़ा ही रोचक है इसका इतिहास

इतिहास जानने से पहले जानते हैं कैसे बनता है अरारोट (Arrowroot)?

ararot produce
daraz

अरारोट (Arrowroot) को तैयार करने की प्रक्रिया बहुत ही दिलचस्प है. इसके लिए शकरकंद को पानी से साफ़ किया जाता था. इसकी जड़ें और छिलके चाकू से छील लिए जाते हैं. इसके बाद इसे काटकर सिल बट्टे पर पीसा जाता है. इसके पेस्ट को कपड़े से छानने के बाद इसे हल्की आंच पर या धूप में सुखाया जाता है. सूखने के बाद इसे कूटकर पाउडर में बदल दिया जाता है. इस तरह तैयार हो जाता है अरारोट.

ararot
moolihai

वैसे तो अरारोट हज़ारों साल पहले अमेरिका में खाया जाने लगा था, लेकिन भारत में भी इसकी पाए जाने के साक्ष्य मिलते हैं. अमेरिका में इसे 7000 साल पहले खोजा गया था. उसे वहां के एक Maranta Arundinacea नाम के पौधे से तैयार किया जाता था. 

ये भी पढ़ें: विश्व इतिहास के वो 8 फ़ेमस साम्राज्य, जिनका खान-पान भी उनके रुतबे की तरह रॉयल था

इस बुक में मिलता है अरारोट का ज़िक्र

ararot powder
img1

भारत में भी इस सुपरफ़ूड का इस्तेमाल सैकड़ों वर्षों से हो रहा है. उपोषण पाकास्त्र (Uposhan Pakashastra) नाम की एक बुक में इसका ज़िक्र मिलता है. इस किताब में व्रत में खाई जाने वाली कुछ रेसिपी लिखी हैं. इन्हीं में एक थी अरारोट की खीर. ये बुक 1892 में दुर्गाबाई भट द्वारा लिखी गई थी.

अंग्रेज़ों ने विदेश लाकर लगाया था पौधा

british india farming
blogspot

इतिहासकारों का कहना है कि भारत में अरारोट पहले पुणे में बना था. तब इसे शकरकंद या आलू से बनाया जाता था. अंग्रेज़ों ने 19वीं सदी की शुरुआत में Tapioca या Cassava पौधे भारत में लगाने शुरू किए. पहली बार इसे बंगाल प्रेसीडेंसी में Caribbean से मंगाकर लगाया गया था.  इस पौधे की जड़ से स्टार्च यानी अरारोट बनाया जाता था. अंग्रेज़ भी इससे बनी डिश के शौकीन थे. 

भागलपुर से अरारोट का रिश्ता 

ararot produce
stylecraze

वहीं कुछ लोगों का कहना है कि भारत में अरारोट बिहार में बना. राज्य के भागलपुर इलाके में इस प्राचीन खाद्य पदार्थ को शकरकंद से बनाया जाता था. आज भी ये क्षेत्र इसके उत्पादन के लिए वर्ल्ड फ़ेमस है. ब्रिटिश लेखक और बॉटनिस्ट John Forbes Royle ने अपनी एक किताब में बताया था कि 1865 के दौरान अरारोट भागलपुर में तैयार होता था. यहां से वो पटना, बनारस, चटगांव और दक्षिण भारत के बाज़ारों में पहुंचता था. वहां भी इसे बड़े चाव से खाया जाता था.

ararot produce
organicauthority

धीरे-धीरे ये अलग-अलग राज्यों से पहुंचता गया. विभिन्न क्षेत्रों में इसे बनाने की भी प्रक्रिया भी बदलती गई, लेकिन इसका स्वाद वही रहा. आज भी हर भारतीय रसोई में इसका प्रयोग होता है. मार्केट में इसका पाउडर 500 से 1000 रुपये किलो तक में बिकता है. अलग-अलग क्वालिटी और कंपनी के हिसाब से.