Oldest Sweet Shop in Delhi: देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) दशकों से अपने खान-पान के लिए दुनियाभर में मशहूर है. दिल्ली में आज भी कई ऐसी ऐतिहासिक दुकानें हैं जो अपने लजीज़ व्यंजनों के लिए जानी जाती हैं. देश विदेश के फ़ूड लवर्स इन व्यंजनों के ऑथेंटिक स्वाद का मज़ा लेने के लिए यहां जाते ज़रूर हैं. इस मामले में दिल्ली का चांदनी चौक सबसे आगे है. यहां पर आज भी कई ऐसी दुकानें हैं जो 200 साल से भी अधिक पुरानी हैं. इन्हीं में से एक घंटेवाला नामक मिठाई की दुकान भी हुआ करती थी, जो दुर्भाग्यवश साल 2018 में बंद हो चुकी है. इसे आज भी लोग देश की सबसे पुरानी मिठाई की दुकान मानते हैं.
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दिल्ली की ये ऐतिहासिक मिठाई की दुकान लगातार 225 सालों से चल रही थी, लेकिन सितंबर 2018 में वित्तीय कारणों के चलते राजधानी दिल्ली के इतिहास का एक अध्याय हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्म हो गया. साल 1954 में आई मीना कुमारी की फ़िल्म ‘चांदनी चौक’ में भी इस दुकान के कई सीन फ़िल्माये गये थे.
क्या है ‘घंटेवाला’ का इतिहास?
जयपुर के आमेर के रहने वाले लाला सुखलाल जैन ने इस दुकान की शुरूआत की थी. दरअसल, सुखलाल जैन दिल्ली में कभी मिठाई का व्यवसाय करने की सोचकर ही यहां आए थे. यहां आकर उन्होंने पहले ठेले पर मिश्री-मावा बेचना शुरू किया. लेकिन जब लोग उन्हें धीरे-धीरे पहचानने लगे तो हर जगह उनकी मिश्री-मावे की मांग बढ़ने लगी. इसके बाद सन 1790 में उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक में मिठाई की एक दुकान खोली.
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कैसे पड़ा ‘घंटेवाला’ नाम
दिल्ली के चांदनी चौक में जब इस दुकान की शुरुआत हुई थी. उस समय दिल्ली में मुगल शासक शाह आलम द्वितीय का शासन हुआ करता था. शाह आलम की सवारी जब दुकान के सामने से गुज़रती थी तो उनका हाथी इस दुकान के आगे आकर रुक जाता था. वो जब तक यहां की मिठाई नहीं खा लेता था, तब तक आगे नहीं बढ़ता था और वहीं खड़े होकर अपने गले की घंटी बजाता रहता था. बस तभी से लोग इस दुकान को ‘घंटेवाला’ के नाम से जानने लगे. हालांकि, कुछ लोग ये भी कहते हैं कि शुरुआती दौर में लाला सुखलाल जैन घंटी बजाकर मिठाई बेचते थे, इसलिए इसका नाम ‘घंटेवाला’ पड़ा.
मुग़लों से लेकर अंग्रेज तक रहे दीवाने
चांदनी चौक (Chandni Chauk) की ऐतिहासिक और मशहूर मिठाई की दुकान ‘घंटेवाला’ की ‘मिठाइयों और नमकीन के शौक़ीन मुग़ल ही नहीं अंग्रेज़ भी थे. इसकी मिठाइयां दिल्ली में तो मशहूर थीं ही, साथ ही बाहरी राज्यों से आने वाले टूरिस्ट भी इस दुकान की मिठाई को चखने के लिए यहां आते थे. घंटेवाला की घी से बनी ‘जलेबियों’ और ‘सोहन हलवा’ के दीवाने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, मोहम्मद रफ़ी, मोरारजी देसाई भी थे. दीवाली के रात को यहां ग्राहकों की लाइन को कंट्रोल करने के लिए पुलिस तैनात होती थी.
‘घंटेवाला’ के मालिक के पास थी ‘इंपाला गाड़ी’
70 के दशक में ‘घंटेवाला’ के मालिक के वसंत लाल जैन ‘इंपाला गाड़ी’ में बैठकर दुकान पर जाया करते थे. उस दौर में पुरानी दिल्ली में इतनी महंगी गाड़ी केवल ‘जैन परिवार’ के पास ही थी. जब ये गाड़ी दुकान के बाहर खड़ी होती थी तो उसे देखने के लिए चांदनी चौक में लोगों की भीड़ लग जाती थी. ये दुकान पहले चांदनी चौक के ‘फौहारे चौक’ पर हुआ करती थी.
साल 1991 में उग्रवादियों ने बम से भरा थैला रख छोड़ा था. इस दौरान दुकान के कर्मचारी को उसकी भनक लग गई, जिसके बाद इस थैले को बाहर ले जाया गया. उसमें विस्फोट हो गया था, जिसमें कई लोग हताहत हो गए थे. आज भले ही ये दुकान बंद हो गई हो, लेकिन आज भी कई लोग इस दुकान को देखने के लिए आते हैं.
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