भारत (India) में आज भी कई के अल्पसंख्यक समुदाय बहुपतित्व की प्राचीन हिंदू परंपरा का पालन कर रहे हैं, जो कभी भारत में व्यापक रूप से प्रचलित थी. पुरुष प्रधान क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के आमतौर पर एक से अधिक पति होते हैं. ऐसा माना जाता है कि भाईचारे की बहुपति प्रथा लोकप्रिय संस्कृत महाकाव्य ‘महाभारत’ से उत्पन्न हुई, जिसमें पंच के राजा की बेटी द्रौपदी ने अपने पांच भाइयों से ‘पांचाली विवाह’ विवाह किया था. ये भी माना जाता है कि ये प्रथा परिवार में खेत रखने का एक तरीका है. आधुनिकता की प्रगति ने अधिकांश क्षेत्रों में इस प्राचीन प्रथा को काफ़ी हद तक समाप्त कर दिया है, लेकिन भारत, चीन और तिब्बत समेत कुछ देशों में महिलाओं की कमी ने इस परंपरा को पत्नी खोजने में आने वाली कठिनाइयों के समाधान के रूप में जीवित रखा है.
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21वीं सदी के भारत में एक गांव ऐसा भी है जहां की महिलाओं को आज भी ‘महाभारत’ के दौर में रहना पड़ रहा है. इस गांव की महिलाएं पांडवों की पत्नी द्रौपदी का जीवन जी रही हैं और उन्हें इस बात का कोई मलाल नहीं है. उत्तराखंड (Uttarakhand) के एक गांव के लोग आज भी 5 भाईयों की 1 पत्नी वाली प्राचीन परंपरा में विश्वास रखते हैं. इस गांव में आज भी महिलाओं के लिए अपने पति के भाइयों से शादी करने की परंपरा है.
उत्तराखंड के गांव में ‘पांचाली विवाह’
उत्तराखंड (Uttarakhand) की राजधानी देहरादून (Dehradun) में स्थित ये वही गांव है जिस पर साल 2003 में ‘मातृभूमि’ नाम की एक बॉलीवुड फ़िल्म भी बन चुकी है. हालांकि, फ़िल्म में बिहार के एक गांव की कहानी दिखाई गई थी. फ़िल्म में शुरू से लेकर अंत तक रोंगटे खड़े देने वाली कहानी दिखाई गई थी. चलिए अब फ़िल्म की कहानी से निकलकर सीधे असल ज़िंदगी की कहानी की ओर बढ़ते हैं.
आज हम आपको उत्तराखंड (Uttarakhand) के इस गांव की एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं जिसकी शादी 5 भाइयों से हुई है. 23 साल की राजो वर्मा (Rajo Verma) अपने पति और उनके भाईयों के साथ एक ही घर में रहती हैं. राजो ये भी नहीं जानती कि उसके 5 पतियों में से कौन उसके 4 साल के बेटे का पिता है. दरअसल, उसे हर रात अलग-अलग भाई के साथ रहना पड़ता है.
राजो वर्मा और गुड्डू वर्मा की शादी हिंदू रीति-रिवाज के तहत दोनों परिवारों की रजामंदी से हुई थी. इसके बाद राजो ने अपने पति के चारों भाईयों बैजू, संतराम, गोपाल और दिनेश से भी शादी कर ली है. लेकिन आज भी गुड्डू ही राजो का पहला और एकमात्र आधिकारिक जीवनसाथी है. आज ये सभी मिल-जुलकर एक ही घर में रहते हैं, साथ खाते हैं और साथ सोते हैं. सभी भाईयों को एक दूसरे से कोई ईर्ष्या भी नहीं है.
Daily Mail की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, राजो वर्मा ने अपने पहले अनुभव को लेकर बताया कि उसे शुरू में ये परंपरा थोड़ा अजीब सी लगी, लेकिन बाद में वो इसे समझ गयीं. क्योंकि उसकी मां की शादी भी 3 भाइयों से हुई थी, इसलिए वो जानती थी कि उसे अपने पतियों को कैसे स्वीकार करना है.
गुड्डू वर्मा का कहना है कि, राजो हम सभी भाईयों की पत्नी है. इसलिए उस पर सभी का बराबर हक़ है. उसे गांव की अन्य महिलाओं की तुलना में अधिक प्यार और देख रेख मिलती है. हम सभी उसके साथ पति-पत्नी वाला संबंध रखते हैं, लेकिन कोई भी एक दूसरे से ईर्ष्या नहीं रखता. हमारा परिवार ख़ुश है.
हिमाचल प्रदेश की जनजाति का वीडियो:
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