पिछले कुछ वर्षों में हिंदुस्तान ने काफ़ी तरक्की की है. बस अफ़सोस इस बात का है कि आज भी समाज लोगों को उनकी क़ाबिलियत नहीं, बल्कि पहनावे से आंकता है. अगर आप किसी कंपनी के बॉस हैं, तो आपको सूट-बूट में नज़र आना ज़रूरी है. लड़कियों को संस्कारी दिखना है, तो सलवार-कमीज़ पहनना ज़रूरी है.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2019/11/5dc50f6f9d041372d2764e7d_7e432492-6dfd-499a-8fd7-375aedc376c6.jpg)
मतलब हर किसी के लिये ड्रेस कोड निर्धारित है. ये सब देख बुरा लगता है, पर उससे भी ज़्यादा बुरा तब लगता है जब किसी स्कूल में इस तरह का छोटा और ओंछा मामला देखने को मिलता है.
अब ये तस्वीर देखिये:
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2019/11/5dc50f6f9d041372d2764e7d_78c8572d-ef22-4ad5-b8df-c5f1e68d300f.jpg)
ये नोटिस बोर्ड किस स्कूल का है ये, तो पता नहीं लगाया जा सका है. इस पर लिखे नोट के मुताबिक, जो पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने आ रहे हैं, वो पूरे कपड़ों में आयें. यानि कि पैंट्स में.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2019/11/5dc50f6f9d041372d2764e7d_3a9e9130-ea14-4b43-940b-fe79f87e7a85.jpg)
इस बात का क्या मतलब समझा जाये, क्योंकि पेरेंट्स पूरे कपड़ों में आये या आधे इससे क्या फ़र्क पड़ता है. वैसे ही उन्हें सुबह-सुबह हज़ार काम होते हैं. बच्चों को तैयार करने से लेकर उनका बैग पैक करने तक. कभी-कभी उन्हें ये तक पता नहीं होता कि ऑफ़िस क्या पहन के जाये, तो हबड़-तबड़ में वो ये कैसे याद रख सकते हैं कि हम बच्चों पूरे कपड़े पहन कर ड्रॉप करने जायें या आधे?
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2019/11/5dc50f6f9d041372d2764e7d_8422a324-f13c-4f34-8ffb-dfc36aa6b4a1.jpg)
दूसरी ओर पेरेंट्स स्कूल में पढ़ने नहीं आ रहे हैं, पढ़ना बच्चों को है. इसके साथ ही पूरे कपड़ों का क्या मतलब बनता है?
इस बारे में आप क्या सोचते हैं अपनी राय कमेंट में पेश कर सकते हैं.
News के और आर्टिकल पढ़ने के लिये ScoopWhoop Hindi पर क्लिक करें.