दुनिया का कोई भी इंसान किसी भी तरह की परतंत्रता के बंधन में नहीं रहना चाहता. हर इंसान खुलकर अपने विचार रखने का हिमायती है. इसी तरह हिंदुस्तान की नौजवान पीढ़ी, आज के आज़ादी के माहौल में खुलकर अपने विचार रखती है और ऐसा ही पसंद करती है. साथ ही सरकार की आलोचना भी करती है. लेकिन ज़रा सोचिए, अगर नौजवानों या फिर किसी भी उम्र के लोगों को सोशल मीडिया अर्थात फेसबुक की हर पोस्ट पहले सरकार को भेजनी पड़े और सरकार जो चाहे वही फेसबुक पर दिखे तो क्या होगा? अगर, ट्विटर, व्हाट्सएप के मैसेज पर सेंसर लग जाए, टीवी पर वही दिखे, अखबार में वही छपे, जो सरकार चाहे. यानि बोलने-लिखने-सुनने की आज़ादी पर पाबंदी लग जाए तो क्या होगा? आज की पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती, लेकिन जिन लोगों ने 41 साल पहले आपातकाल का दौर देखा है, वो जानते हैं कि तब क्या हुआ था?

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आज हम आपको किसी घटना का ज़िक्र किये बगैर, आपातकाल के बारे में बताएंगे. हम आपको बताएंगे कि आखिर वो कौन-सी स्थितियां और परिस्थितियां हैं, जिनमें आपातकाल अर्थात् इमरजेंसी लागू हो जाती है या लागू हो सकती है. तो चलिये जानते हैं ‘आपातकाल’ को.

दरअसल, देश में आंतरिक अशांति को खतरा होने, बाहरी आक्रमण होने अथवा वित्तीय संकट की स्थिति में आपातकाल की घोषणा की जाती है. अर्थात हमारे संविधान में तीन तरह के आपातकाल की व्यवस्था की गई है.

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भारतीय संविधान में वर्णित तीन आपातकाल-

1. राष्ट्रीय आपात – अनुच्छेद 352

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राष्ट्रीय आपात की घोषणा काफ़ी विकट स्थिति में होती है. इसकी घोषणा युद्ध, बाह्य आक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर की जाती है. आपातकाल के दौरान सरकार के पास तो असीमित अधिकार हो जाते हैं, जिसका प्रयोग वह किसी भी रूप में कर सकती है, लेकिन आम नागरिकों के सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं. राष्ट्रीय आपात को मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है.

इस आपातकाल के दौरान संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 19 स्वत: निलंबित हो जाता है. लेकिन इस दौरान अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 अस्तित्व में बने रहते हैं.

2. राष्ट्रपति शासन अथवा राज्य में आपात स्थिति- अनुच्छेद 356

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इस अनुच्छेद के अधीन राज्य में राजनीतिक संकट के मद्देनज़र, राष्ट्रपति महोदय संबंधित राज्य में आपात स्थिति की घोषणा कर सकते हैं. जब किसी राज्य की राजनैतिक और संवैधानिक व्यवस्था विफल हो जाती है अथवा राज्य, केंद्र की कार्यपालिका के किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने में असमर्थ हो जाता है, तो इस स्थिति में ही राष्ट्रपति शासन लागू होता है. इस स्थिति में राज्य के सिर्फ़ न्यायिक कार्यों को छोड़कर केंद्र सारे राज्य प्रशासन अधिकार अपने हाथों में ले लेती है. कुछ संशोधनों के साथ इसकी अवधि न्यूनतम 2 माह और अधिकतम 3 साल तक हो सकती है. अकसर जब राज्य सरकारें संविधान के अनुरूप सरकार चलाने में विफल हो जाती हैं, तो केंद्र की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा आपात घोषित कर दिया जाता है.

3. वित्तीय आपात – अनुच्छेद 360

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वित्तीय आपातकाल भारत में अब तक लागू नहीं हुआ है. लेकिन संविधान में इसको अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है. अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा तब की जाती है, जब राष्ट्रपति को पूर्ण रूप से विश्वास हो जाए कि देश में ऐसा आर्थिक संकट बना हुआ है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है. अगर देश में कभी आर्थिक संकट जैसे विषम हालात पैदा होते हैं, सरकार दिवालिया होने के कगार पर आ जाती है, भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर आ जाए, तब इस वित्तीय आपात के अनुच्छेद का प्रयोग किया जा सकता है. इस आपात में आम नागरिकों के पैसों एवं संपत्ति पर भी देश का अधिकार हो जाएगा. राष्ट्रपति किसी कर्मचारी के वेतन को भी कम कर सकता है.

गौरतलब है कि संविधान में वर्णित तीनों आपात उपबंधों में से वित्तीय आपात को छोड़ कर भारत में बाकी दोनों को आजमाया जा चुका है. भारत में कभी वित्तीय आपात लागू न हो, इसकी हमें प्रार्थना करनी चाहिए. आपातकाल का सीधा सा मतलब होता है, आम नागरिकों के सारे मौलिक अधिकारों का ह्रास. इस दौरान आम नागरिकों की हालत ऐसी हो जाती है, जैसे उन पर कोई निरंकुश शासक राज कर रहा हो.

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हालांकि, इन तीनों आपात उपबंधों का अपना एक सीमित क्षेत्र और दायरा है. लेकिन चाहे किसी भी तरह का आपात हो, इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव आम जनता पर ही पड़ता है. 

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