घर में शादी का माहौल हो तो वो ख़ुशी और वो पल देखने लायक होता है. सब अपने-अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश में लगे रहते हैं. ऐसा ही कुछ कानपुर के बाकरगंज में रहने वाले ख़ान परिवार में हो रहा था. उनकी बेटी की शादी थी और सब तैयारियों में जुटे थे. मगर 21 दिसंबर को बारात वाले दिन कानपुर में भी नागरिकता क़ानून को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया और सबकी ख़ुशी फीकी पड़ गई.
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ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ज़ीनत की बारात प्रतापगढ़ से आनी थी और कानपुर में इस तरह के माहौल के बाद बारातियों ने बारात लाने में असमर्थता ज़ाहिर की. दूल्हे ने फ़ोन कर लड़की वालों से कहा, प्रदर्शन के हालातों के बीच बारात लेकर पहुंचना आसान नहीं है, जिससे सभी लोग परेशान हैं और ज़ीनत के घरवाले भी उनकी बात सुनकर और हालातों को देखकर परेशान हो गए. शादी को कुछ दिनों के लिए टालने की बात कही जाने लगी.
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जैसे ही ये बात ज़ीनत के पड़ोसियों को पता चली उनके पड़ोसी विमल चपड़िया अपने साथी सोमनाथ तिवारी और नीरज तिवारी के साथ ख़ान परिवार से मिलने पहुंचे और उन्हें आश्वासन दिया कि बारात लेकर आइए कुछ नहीं होगा.
इसके बाद प्रतापगढ़ से शाम को क़रीब 70 बाराती कार और बस से बाकरगंज आए उनके स्वागत के लिए लगभग 50 हिंदू बारात को शादी की जगह पर पहुंचाने के लिए खड़े थे. पड़ोसियों के साथ और साहस की वजह से ज़ीनत की शादी हुसनैन फ़ारूक़ी से हो गई थी.
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बुधवार को ज़ीनत जब ससुराल से मायके आई तो सबको देखकर ख़ुश हो गई. सबसे पहले विमल के घर गई और उन्हें भाई बोलते हुए आशीर्वाद लिया. विमल ने कहा,
ज़ीनत मेरी छोटी बहन के जैसी है. मैं उसका दिल कैसे टूटने दे सकता था. हम पड़ोसी हैं और हम सभी को एक-दूसरे के सुख-दुख में काम आना चाहिए.
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उसने अपनी शादी का श्रेय अपने पड़ोसी विमल को देते हुए कहा,
इस तनाव भरे माहौल के चलते मैं और मेरा पूरा परिवार काफ़ी दिनों से परेशान था. कुछ दिन पहले ही लड़के वालों ने मेरे चाचा के पास फ़ोन कर बारात न ला पाने की बात कही तो मुझे लगा कि अब मेरी शादी नहीं हो पाएगी, लेकिन विमल भाई और उनके दोस्तों के साथ ने असंभव को संभव कर दिया.
आपको बता दें, ज़ीनत के पिता नहीं हैं, जब ज़ीनत 14 साल की थी तभी वो दुपनिया को अलविदा कह उससे दूर चले गए थे.
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