पिछले कुछ सालों में भारत के कई मशहूर रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने की खबरें सुर्खियां बनी हैं. हाल ही में भोपाल के ‘हबीबगंज रेलवे स्टेशन’ का नाम बदलकर ‘रानी कमलापति रेलवे स्टेशन’ कर दिया गया था. इसी साल दिवाली के मौके पर यूपी के ‘फ़ैज़ाबाद जंक्शन’ का नाम भी बदलकर ‘अयोध्या कैंट स्टेशन’ कर दिया गया था. साल 2018 में ‘मुग़लसराय रेलवे स्टेशन’ का नाम बदलकर ‘पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन’ तो 163 साल पुराना ‘इलाहाबाद जंक्शन’ अब ‘प्रयागराज जंक्शन’ के नाम से जाना जाता है. इस फेहरिस्त में अब यूपी के दादरी में स्थित ‘बोड़ाकी रेलवे स्टेशन’ का नाम बदलकर ‘ग्रेटर नोएडा रेलवे स्टेशन’ किये जाने की तैयारी है.
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अब सवाल ये है कि आख़िर भारत में ‘रेलवे स्टेशनों’ का नाम बदलने की प्रकिया क्या है?
भारतीय रेलवे (Indian Railways) को केंद्र सरकार चलाती है. कर्मचारियों को सैलरी भी केंद्र ही देता है. लेकिन ‘रेलवे स्टेशनों’ के नाम बदलने का विषय राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है. राज्य सरकार चाहे तो अपने राज्य के किसी भी रेलवे स्टेशन का नाम बदल सकती है. लेकिन इसके लिए उसे केंद्र सरकार से परमिशन लेनी पड़ती है.
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रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने की प्रक्रिया
इस दौरान सबसे पहले राज्यपाल केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) को एक अधिसूचना भेजता है. इसके बाद ‘गृह मंत्रालय’ इस बात को ‘रेल मंत्रालय’ के संज्ञान में रखता है. इस प्रक्रिया में ‘रेल मंत्रालय’ भी अहम भूमिका निभाता है. इस दौरान नाम बदलने की अनुमति देने से पहले गृह मंत्रालय अच्छे से इस बात की पुष्टि कर लेता है कि इस नाम का देश में कोई दूसरा रेलवे स्टेशन तो नहीं है.
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रेल मंत्रालय की क्या भूमिका है?
‘केंद्रीय गृह मंत्रालय’ से मंजूरी मिलने के बाद ‘रेल मंत्रालय’ इस पर काम शुरू कर देता है. इस दौरान सबसे पहले नये स्टेशन का यूनीक ‘कोड’ जेनरेट किया जाता है. इसके बाद नये नाम को ‘टिकटिंग सिस्टम’ में फीड किया जाता है. जबकि अंत में स्टेशन पर लगे बोर्ड, साइन और सिंबल्स बदले जाते हैं.
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नाम बदलने में कितने पैसे ख़र्च होते हैं?
किसी भी रेलवे स्टेशन का नाम बदलने के खर्च का सही अनुमान तो नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन ये राशि करोड़ों में होती है. इस संबंध में कोई डेटा भी उपलब्ध नहीं है. लेकिन अनुमान के तौर पर ये कहा जा सकता है कि केंद्र और राज सरकार के खजाने के साथ-साथ सरकारी व गैर सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों व आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है.
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क्यों बदले जाते हैं नाम?
इसके पीछे राजनीतिक, भौगोलिक और सामाजिक कारण ज़िम्मेदार होते हैं. ये बदलाव कभी जनता की सुविधा के लिए तो कभी राजनीतिक लाभ के लिए किये जाते हैं. ख़ासकर राज्य सरकारें ही ऐसा करती हैं.
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बता दें पिछले कुछ सालों से भारत में ‘शहरों’ और ‘रेलवे स्टेशनों’ के नाम बदले जाने से लोगों में नाराज़गी भी देखी जा रही है. बावजूद इसके सरकारें ‘विकास कार्य’ करने के बजाय नाम बदलने पर ज़ोर दे रही हैं.
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