एक बार फिर से दिल्ली की सड़कों पर मानवीय संवेदना का घिनौना रूप देखने को मिला. कार जल रही थी, उसके भीतर फंसा ड्राइवर मदद की गुहार लगा रहा था, लोग तमाशबीन बने देख रहे थे, मगर किसी ने उसकी जान बचाना मुनासिब नहीं समझा. दरअसल, मंगलवार को दिल्ली के वज़ीराबाद रोड स्थित मंडोली में देर रात टाटा इंडिगो कार में अचानाक आग लग गई. कार सड़क पर धूं-धूं कर जलती रही. आग इतनी तेजी से फै़ली कि कैब ड्राइवर को बाहर निकलने का मौका भी नहीं मिला और उसकी आग में झुलसकर मौत हो गई.

बताया जा रहा है कि ड्राइविंग सीट पर बैठा शख़्स कैब ड्राइवर था, जिसका नाम सचिन त्यागी था. उसकी उम्र तकरीबन 38 साल रही होगी और उस वक़्त वो अपने बच्चे के लिए गिफ़्ट खरीदकर कार में बैठा था.
बुरी तरह से जल जाने के बाद मृतक के परिजनों ने शव की पहचान की और वहां तमाशबीन बने लोगों को जमकर लताड़ा. परिजनों के मुताबिक, सचिन कार के भीतर जल रहे थे. मगर वहां मौज़ूद भीड़ इंसानियत और संवेदनाओं को ताक पर रख फ़ोटोज़ खींचने और वीडियो बनाने में व्यस्त थी. किसी ने सचिन की मदद करने की कोशिश तक नहीं की.
हैरान करने वाली बात ये है कि जब तक मृतक के परिजन घटनास्थल पर पहुंचते, तब तक सोशल मीडिया पर लाइक्स, कमेंट्स और शेयर के भूखे लोग व्हाट्सएप, फेसबुक और अन्य माध्यम के ज़रिये मरते हुए इंसान की तस्वीरों और वीडियोज़ को वायरल कर चुके थे.
पुलिस के मुताबिक, कार के रजिस्ट्रेशन नंबर से यह पता लगाया जा सका कि कार कौन चला रहा था. जांच में पता चला कि कार करीब डेढ़ साल पहले खरीदी गई थी और सचिन त्यागी उसे नोएडा की एक कॉल सेंटर कंपनी को पिक ऐंड ड्रॉप सुविधा देने के लिए चलाता था. ये घटना करीब रात 10:15 की है.
एक चश्मदीद के मुताबिक, त्यागी एक स्थानीय दुकान पर कुछ सामान खरीदने के लिए रुका था. जब वो सामान खरीदकर अपने कार में बैठा, तो उसे इंजन में आग लगने का आभास हुआ. तब तक उसने कार के दरवाज़े बंद कर लिए थे. उसके बाद उसने उसे खोलने की कोशिश की, मगर दरवाज़ा खुल नहीं पाया. उसने मदद के लिए आवाज़ भी लगाई. दमकल के आने से पहले ही महज 15 मिनट के भीतर त्यागी आग में जल कर मर गया.

पुलिस की मानें तो आग लगने के बाद कार का सेंट्रल लॉक सिस्टम जाम होने के कारण चालक को बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिला.
गौरतलब है कि सचिन त्यागी पिछले 15 सालों से अपनी मां, पत्नी, एक बेटा-बेटी और एक भाई के साथ गली नम्बर 13, मंडोली में रहता था.
हैरान करने वाली बात ये है कि आखिर हम इंसानों के भीतर से संवेदना मरती कैसे जा रही है? आखिर क्यों लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं? सरकार ने दुर्घटनाओं में मदद करने वाले शख़्स को सम्मानित करने की भी घोषणा कर दी है, फिर भी हमारे अंदर का इंसान क्यों नहीं जाग रहा है. अभी भी कुछ ऐसे सवाल हैं, जो हमें अपने अंदर के इंसान से पूछने की आवश्यकता है. एक बात याद रखना, जब खुद पर बीतेगी न, तब लोगों को समझ आएगा.