Padma Awards 2021: बीते मंगलवार को राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक ‘दरबार हॉल’ में ‘पद्म पुरस्कारों’ के विजेताओं को सम्मानित किया गया था. इस दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) ने कर्नाटक के रहने वाले 65 वर्षीय हरेकाला हजब्बा (Harekala Hajabba) को शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक कार्य करने के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक पद्मश्री (Padma Shri) पुरस्कार से सम्मानित किया था.
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इस दौरान जब 65 वर्षीय हरेकाला हजब्बा का नाम पुकारा गया तो उन्हें देख लोगों की आंखें फटी की फटी रह गई. कैमरों के चमकते फ्लैश और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच हरेकाला हजब्बा जब बदन पर सफ़ेद शर्ट और धोती व गले में गमछा डाले नंगे पैर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से ‘पद्मश्री’ सम्मान लेने पहुंचे तो ये नाज़ारा देख हर कोई हैरान रह गया. दर्शकों को अंदाजा ही नहीं था कि जिस शख़्स को ‘पद्मश्री’ मिलने जा रहा है वो इतना साधारण इंसान भी हो सकता है.
कौन हैं हरेकला हजब्बा?
हरेकला हजब्बा कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ा के न्यूपाडपु गांव के रहने वाले हैं. ग़रीब परिवार से होने के चलते हजब्बा कभी स्कूल नहीं जा पाये. वो मैंगलोर के जिस गांव में पैदा हुए वहां स्कूल नहीं था, इसलिए भी वो पढ़ाई नहीं कर पाये. ग़रीबी और गांव में स्कूल नहीं होने के चलते हरेकला तो पढ़-लिख नहीं पाये, लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि एक दिन वो अपने गांव स्कूल ज़रूर बनाएंगे, ताकि गांव का कोई भी बच्चा अशिक्षित न रहे.
65 वर्षीय हरेकला हजब्बा मैंगलोर की सड़कों पर घूम-घूमकर संतरे बेचने का काम करते हैं. वो 1977 से मैंगलोर बस डिपो पर संतरा बेच रहे हैं. संतरे बेचकर उन्होंने जो कुछ भी जमापूंजी जोड़ रखी थी उससे उन्होंने अपने गांव में एक स्कूल खोला है. आज न्यूपाडपु गांव का ये स्कूल ‘हजब्बा का स्कूल’ के नाम से जाना जाता है. हरेकला हर साल अपनी बचत का पूरा हिस्सा स्कूल के विकास के लिए ख़र्च कर देते हैं.
जानिए कैसे मिली स्कूल खोलने की प्रेरणा?
हरेकला हजाब्बा बताते हैं, ‘मैं एक दिन मैंगलोर की सड़कों पर संतरे बेच रहा था. इस दौरान एक विदेशी कपल ने मुझसे संतरे की क़ीमत पूछी, लेकिन मैं समझ नहीं सका और वो बिना संतरे ख़रीदे ही चले गये. ये देखकर मुझे बेहद बुरा लगा. ये मेरी बदकिस्मती थी कि मैं स्थानीय भाषा के अलावा कोई दूसरी भाषा नहीं बोल और समझ नहीं सकता था. इसके बाद मैंने लिया कि गांव में एक प्राइमरी स्कूल ज़रूर होना चाहिए ताकि हमारे गांव के बच्चों को कभी इस स्थिति से गुज़रना ना पड़े जिससे मैं गुज़रा हूं’.
हरेकला हजब्बा सन 1978 में अपने गांव पहुंचे. इस दौरान उन्होंने गांववालों की मदद से स्थानीय मस्जिद में एक स्कूल की शुरुआत की. वो ख़ुद ही इस स्कूल में साफ़-सफ़ाई का काम और बच्चों के लिए पीने का पानी भी उबालने का काम भी करते थे. हजब्बा हफ़्ते में एक दिन छुट्टी करते ताकि वो गांव से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण कन्नड़ ज़िला पंचायत कार्यालय जा सके शिक्षा अधिकारियों से शैक्षणिक सुविधाओं को औपचारिक रूप देने की विनती कर सके.
आख़िरकार हरेकला हजाब्बा (Harekala Hajabba) की मेहनत रंग लाई और दो दशक बाद उनका ये सपना पूरा हो गया. साल 2000 में ज़िला प्रशासन ने दक्षिण कन्नड़ ज़िला पंचायत के अंतर्गत नयापुडु गांव में 14वां माध्यमिक स्कूल बनवाया. हजब्बा ने 28 छात्रों के साथ स्कूल शुरू हुआ था और वर्तमान में 10 वीं कक्षा तक के इस स्कूल में गांव के 175 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं.
पद्म पुरस्कार विजेता हरेकला हजब्बा (Harekala Hajabba) ने अब अपने गांव में और भी स्कूल-कॉलेज बनाने का लक्ष्य रखा है. शिक्षा के प्रति हजब्बा का समर्पण ऐसा था कि आज वो शिक्षितों के लिए भी मिसाल बनकर उभरे हैं. हजब्बा अपने इस नेक कार्य के लिए कई अन्य पुरस्कार भी हासिल कर चुके हैं.
बता दें कि साल 2020 और 2021 के लिए दो पद्म पुरस्कार समारोहों का आयोजन सोमवार को सुबह और शाम में किया गया. इस दौरान 7 पद्म विभूषण, 16 पद्म भूषण और 122 पद्मश्री पुरस्कार वर्ष 2020 और 2021 के लिए दिए गये. पद्म पुरस्कार 3 श्रेणियों पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री में दिए जाते हैं, जो प्रतिवर्ष ‘गणतंत्र दिवस’ की पूर्व संध्या पर घोषित किए जाते हैं. पद्म विभूषण असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए, पद्म भूषण उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा के लिए और पद्मश्री किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है.
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