अकसर लोग कहा करते हैं कि गरीबों के पास धन भले नहीं होता, मगर उनका दिल बहुत बड़ा होता है. इसकी जीती-जागती मिसाल हैं मैसूर के रहने वाले गरीब सईद इराक. सच कहूं, तो सईद इराक गरीब होते हुए भी शिक्षा की ऐसी अलख जगा रहे हैं, जिसे देखकर उनके पड़ोस में रहने वाले धनी लोगों को शर्म आनी चाहिए. 60 साल के बुज़ुर्ग सईद नाले की सफ़ाई करने का काम करते हैं और मुश्किल से दिन भर में सौ-दो सौ रुपये कमा लेते हैं.

आपको जानकर हैरानी होगी कि सईद खुद अनपढ़ हैं, मगर अब कोई उनके इलाके में अनपढ़ ना रहे, इसलिए वो अपनी एक छोटी सी झोपड़ी में मुफ़्त सार्वजनिक लाइब्रेरी चलाते हैं. सबसे खास बात ये है कि वो अपनी कमाई खुद पर खर्च नहीं करते, बल्कि कमाए हुए पैसे को सार्वजनिक लाइब्रेरी के रख-रखाव में व्यय करते हैं.

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बंगलुरु मिरर रिपोर्ट के मुताबिक, जहां वे रहते हैं वहां पर लगभग दस हज़ार मकान हैं, मगर एकमात्र उनकी लाइब्रेरी ही पूरे इलाके को अपनी सेवा देती है.

गौरतलब है कि सईद जीवन जीने के लिए नाले की सफ़ाई करने का काम करते हैं. जब जल निकासी अथवा नाले की सफ़ाई का काम नहीं होता है, तो वो कंस्ट्रकशन का काम करने लगते हैं. वो पूरी तरह से भले ही अनपढ़ हैं, मगर ज्ञान के प्रति प्यार और बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से उन्होंने पांच साल पहले ही अपनी छोटी सी झोपड़ी में एक सार्वजनिक लाइब्रेरी खोली थी. इनकी ये लाइब्रेरी मैसूर के राजीव नगर इलाके में अम्मर मस्जिद के पास एक फुटपाथ के नजदीक है.

इनकी लाइब्रेरी में 17 अलग-अलग भाषाओं के न्यूज़पेपर आते हैं और कुछ कन्नड़ भाषा की किताबें भी होती हैं. लाइब्रेरी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की तस्वीरों से पूरी तरह सजी होती है.

स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक, इस महान कार्य में हर महीने की लागत करीब पांच हज़ार रुपये के आस-पास पड़ती है. जो पाठक शाम के 6 से 7 बजे के करीब रहते हैं, उन्हें सईद चाय भी मुहैया कराते हैं.

उनके इस सराहनीय और महान कार्य को वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के द्वारा सम्मानित भी किया गया है.