अकसर ऐसा होता है, अगर घर में दादी-बाबा हैं तो वो हमें अपने समय की कहानी बताने लगते हैं. चाहे वो सरहद पर शहीद हुए जवानों की वीर गाथाएं हों या इतिहास से जुड़ी कोई कहानी. मैं भी जब कभी अपनी दादी के साथ बैठती थी तो वो मुझे 1984 में हुए दंगे के बारे में बताती थीं. मैं उसे बड़े चाव से सुनती थी. आज मुझे अपनी दादी की कहानी इसलिए याद आई क्योंकि लोको पायलट हरिदास और गार्ड राजीव रायकवार भी मेरी दादी की तरह अपने पोते-पोतियों को आपबीती बताने की मंशा रखते हैं.

दरअसल, ये दोनों 02121 श्रमिक स्पेशल ट्रेन में ड्यूटी कर रहे हैं. ये ट्रेन उनके लिए सिर्फ़ ट्रेन नहीं है, बल्कि एक कहानी है जो वो अपने पोते पोतियों को तब बताएंगे, जब वो पूछेंगे कि दादा जी 2020 के लॉकडाउन में आपने क्या किया था?
कोरोनोवायरस के कारण हुए लॉकडाउन के चलते हरिदास अपने घर झांसी में रह रहे थे. तभी उन्हें ड्यूटी पर बुलाया गया और वो बेझिझक ड्यूटी के लिए निकल गए. वो पहले प्रवासी मज़दूरों को झांसी से लेकर लखनऊ गए. हरिदास की ये यात्रा भी प्रवासी मज़दूरों को नासिक पहुंचाने की यात्रा का एक हिस्सा थी.
इस यात्रा पर जाने से पहले हरिदास का परिवार बहुत चिंतित था. हरिदास ने PTI को बताया,
मेरे ड्यूटी पर जाने से मेरा परिवार थोड़ा परेशान है, लेकिन मैंने अपनी ड्यूटी के प्रति कर्तव्य निभाया है और मुझे कोई अफ़सोस नहीं है.

ये स्पेशल ट्रेन श्रमिकों के लिए रविवार की सुबह लखनऊ से चली थी, जिसने हफ़्तों से फंसे 800 प्रवासी मज़दूरों को महाराष्ट्र पहुंचाया था.
हरिदास ने आगे कहा,
मैं ख़ुश हूं कि मैंने श्रमिकों को उनके परिवारों से मिलवाया. मैं अपने पोते-पोतियों को लॉकडाउन के दौरान निभाए अपने इस कर्तव्य की कहानी सुनाऊंगा.
उनके साथ ट्रेन में मौजूद गार्ड राजीव रायकवार ने भी बताया,
मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है, जो भी मैंने किया. कुल मिलाकर, ये अनुभव अच्छा था. मैं भी अपनी लॉकडाउन की ये कहानी अपने पोते-पोतियों को सुनाऊंगा.

उन्होंने आगे कहा,
कोरोना वायरस के चलते परिवार ने मुझे इस यात्रा पर जाने से रोका था. मगर काम तो काम है. इसके अलावा ट्रेन में आरपीएफ़ के जवान समय-समय पर हमें बताते रहते थे कि यात्रियों को किसी भी स्टेशन पर नहीं उतरना है. सभी को लखनऊ में जांच के बाद ही अपने-अपने ज़िलों में जाने की अनुमति मिलेगी.
ट्रेन में 12 स्लीपर कोच, चार जनरल कोच और एक गार्ड कोच है, जिसमें रेलवे सुरक्षा बल के जवान भी थे. गार्ड के अनुसार सभी कोचों में सामाजिक दूरी सुनिश्चित की गई थी. श्रमिकों को लखनऊ से आगे ले जाने के लिए इस ट्रेन के अलावा बसों का भी इंतज़ाम किया गया था.
बस चालक निज़ामुद्दीन, जो कि बलिया ज़िले का रहने वाला है, उसने बताया,
मैंने पहली बार ऐसा नेक काम किया है जब मैं लोगों को उनके घर पहुंचाकर उनकी ख़ुशी का कारण बन रहा हूं. मैंने उरई, झांसी और ललितपुर के श्रमिकों को उनके घर पहुंचाया है.
उन्होंने आगे कहा,
मेरे बच्चे बहुत घबराए थे, लेकिन मुझे ईश्वर पर भरोसा है और विश्वास है कि बहुत जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा.
आपको बता दें, नासिक-लखनऊ ट्रेन देश के विभिन्न हिस्सों के प्रवासियों को उनके घर पहुंचाने के लिए चलाई गई है. ये शनिवार सुबह नासिक से निकलकर 11.55 बजे झांसी पहुंचती है. ये सिर्फ़ 5 मिनट के लिए स्टेशन पर रुकी थी तभी हरिदास और राजीव रायकवार इस पर सवार हो गए थे.
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