देश को आज़ाद हुए 70 साल हो गए हैं, इसके बावजूद हमारे पास इस बात का कोई अधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है कि आखिर देश का राष्ट्रीय गीत, ‘वन्दे मातरम्’ सबसे पहले किस भाषा में लिखा गया था. इस बात पर सबका ध्यान तब गया, जब ये सवाल मद्रास हाईकोर्ट के पास पहुंचा. इस सवाल में ख़ास बात ये भी है कि इसके सही जवाब पर किसी का भविष्य भी टिका हुआ है.
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दरअसल, ये मामला के. वीरमणि के साथ जुड़ा हुआ है. वीरमणि एक सरकारी स्कूल में BT Assistant की नौकरी के लिए इन्टरव्यू देने गए थे. वहां पर इन्टरव्यू में वीरमणि से पूछा गया कि राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्’ किस भाषा में लिखा गया है? इस सवाल का जवाब वीरमणि ने बांग्ला दिया.
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इन्टरव्यू लेने वाले पैनलिस्ट ने इस उत्तर को ग़लत बताया. उनका कहना था कि ‘वन्दे मातरम्’ संस्कृत में लिखा गया. जब रिज़ल्ट आया तो वीरमणि एक नम्बर से नौकरी पाने से चूक गए. नौकरी के लिए 90 नम्बर चाहिए थे, जबकि वीरमणि को 89 नम्बर मिले हैं.
इसके बाद वीरमणि इस मामले को लेकर कोर्ट में गए. वीरमणि ने कहा कि उन्होंने जिस किताब को पढ़कर उत्तर दिया है, उसमें लिखा गया है कि ‘वंदे मातरम्’ पहले बांग्ला में लिखा गया था, फिर उसका अनुवाद संस्कृत में किया गया. इसलिए उन्हें एक नम्बर और दिया जाए.
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अदालत में मामला जाने के बाद वीरमणि के वकील ने दलील देते हुए कहा कि ‘वंदे मातरम्’ बांग्ला और संस्कृत दोनों में लिखा गया है. जबकि सरकारी वकील का कहना था कि ‘वंदे मातरम्’ सिर्फ़ संस्कृत में लिखा गया है.
बहरहाल, ये मामला काफ़ी दिलचस्प हो गया है. अदालत ने एक अंतरिम आदेश पारित किया और सही जवाब का पता लगाने का निर्देश दिया है. इस मामले का फ़ैसला 11 जुलाई को आएगा और उसी दिन के. वीरमणि के भाग्य का भी फ़ैसला होगा.