‘तू मेरी बंदी होकर किसी और से बात करे ये मैं हरगिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकता.’
जानी-पहचानी लग रही होंगी न ये बातें. किसी फ़िल्म में, सीरियल में या किसी कहानी में सुनी ही होंगी. या फिर हो सकता है ये बातें आपसे कही गईं हो या आपने किसी से कहीं हों…
Stalking की वजह से आज तक देश में कई महिलाओं/लड़कियों की जान जा चुकी है. Stalking को ख़याली पुलाव मानने वालों के लिए हमने अपने एक लेख में कई सुबूत दिए थे.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, लड़के ने वही डायलॉग लड़की को मॉल के सामने भी कहा था, जहां वो किसी दोस्त के साथ थी. लड़की ने अपने माता-पिता को बताया पर उन्होंने शिकायत करना ज़रूरी नहीं समझा.
क्या कारण हो सकते हैं?
फ़िल्में, फ़िल्में और फ़िल्में
बॉलीवुड की कई फ़िल्मों ने प्रेम जैसे पाक एहसास की धज्जियां उड़ा दी हैं. चाहे वो कभी ख़ुशी कभी ग़म के राहुल-अंजली का प्यार हो या कबीर सिंह में कबीर-प्रीति का रिश्ता हो. कभी ख़ुशी कभी ग़म में राहुल के गाल पर किस करने की बात को बेहद सहजता से दिखाया गया है पर यहां कन्सेंट की बात ही नहीं कही गई है. कबीर-प्रीति के रिश्ते में वॉयलेंस तक दिखा दिया गया और फ़िल्म निर्देशक के अनुसार जिस प्रेम में मार-पीट नहीं वो प्रेम ही नहीं. रांझणा में कुंदन द्वारा ज़ोया का पीछा किया जाना और ज़ोया द्वारा उसे थप्पड़ मारने पर भी उसका कोशिशें करते रहने पर दर्शकों ने ख़ूब तालियां पीटीं.
‘Misguide’ करने वाले दोस्त
Stalk करो, लड़की पट जाएगी, उसकी ना में भी हां होती है ये सब फ़िल्मों सिर्फ़ फ़िल्मों की ही देन नहीं है. हम जहां रहते हैं उसके आस-पास का माहौल, हमारे यार-दोस्त भी इस तरह की भावनाओं में काफ़ी अहम भूमिका निभाते हैं. मुंबई वाले केस में ही देख सकते हैं, माता-पिता बेटे को पुलिस के पास ले जा सकते थे पर उन्होंने सबूत मिटाना ज़्यादा ज़रूरी समझा.
Ego
‘उसने मुझे मना कैसे किया’ वाला Attitude हमारे देश में काफ़ी सारे पुरुषों के मन में है, चाहे वो किसी भी आयुवर्ग का क्यों न हो? इस तरह के विचारों के लिए और कोई नहीं, माता-पिता ही ज़िम्मेदार हैं. बच्चे जैसा घर में देखते हैं उनके दिमाग़ में इसका गहरा असर पड़ता है.
शिकायतें न करने की भारतीयों की आदत
मुंबई वाली घटना का ही उदाहरण ले लेते हैं, अगर लड़की के माता-पिता ने कोई सख़्त कदम उठाया होता तो शायद लड़की की ज़िन्दा होती. रिपोर्ट्स के मुताबिक लड़की के पिता ने लड़के के पिता से बात की थी. मगर शायद इससे ज़्यादा गंभीर कदम उठाने की ज़रूरत थी.
वक्टिम/सरवाइवर की ग़लती निकालना और दोषी की ग़लती छिपाना
ये तो जैसे भारतीयों की हॉबीज़ में से है. चाहे वो छेड़छाड़ का मामला हो या रेप का, लड़कियों पर उंगली उठाने वालों की कमी नहीं है.
एक सवाल करना चाहूंगी, कुछ लोगों के Ego, बददिमाग़ी के कारण कब तक लड़कियां अपनी जान गंवाती रहेंगी?