15 अगस्त को भारत देश के नागरिक अपनी आज़ादी की 73वीं वर्षगांठ मनाएंगे. ये आज़ादी हमें ब्रिटिश साम्राज्य से मिली थी. हमने आज़ादी से जुड़ी कई फ़िल्में देखी हैं. आज़ादी के नायकों के ऊपर कई फ़िल्में बनी हैं. 15 अगस्त-26 जनवरी के मौक़े पर हम इन फ़िल्मों कों दशकों से देखते आ रहे हैं.
अब ज़रूरत है कि हम आज़ादी के दूसरे मायनों पर ज़ोर दें. समाज के कई वर्ग आज भी आर्थिक, मानसिक और सांस्कृतिक ग़ुलामी में जी रहे हैं जिन्होंने असल में आज़ादी को नहीं चखा. ऐसे में हम आज़ादी की अन्य परतों पर बनी फ़िल्मों को भी 15 अगस्त की शाम को देख सकते हैं.
इन 10 फ़िल्मों ने अलग किस्म की और आज़ादी के मुद्दों को बेहतरीन तरीके से रखा है.
1. उड़ान
जो लहरों से आगे नज़र देख पाती, तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूं
ये पंक्तियां ही फ़िल्म का सार हैं. इस कविता को फ़िल्म के मुख्य किरदार ने लिखा था. हर पिता अपने बच्चे को सफ़ल बनाने की चाहत रखता है और अधिकांश मामलों में सफ़लता की परिभाषा पिता की ही होती है.
कभी-कभी परवरिश और कठोर अनुशासन की ग़ुलामी बच्चों के उन्मुक्त उड़ान को रोकती है. ये फ़िल्म इसी बारे में है. इसे फ़िल्म को विक्रमादित्य मोटवानी ने निर्देशित किया था और इसकी कहानी निर्देशक ने अनुराग कश्यप के साथ मिल कर लिखी थी.
2. लिप्सटिक अंडर माइ बुर्का
एक 55 साल की उम्रदराज़ महिला को लिप्सटिक के सपने आते हैं. वो सपने जिसे हमारा कथित नैतिक समाज अश्लील मानता है. साथ में ये कहानी है उस ‘बुर्के’ को हटाने की है जिसकी आड़ लेकर उन्हें लुक-छिप कर अपनी ज़िंदगी जीनी पड़ती है. फ़िल्म की कहानी छोटे शहर की महिलाओं पर है जिन्हें अपने हिस्से की छोटी सी आज़ादी चाहिए. जिसमें वो किसी भी उम्र में प्रेम कर सकें, किसी भी करियर को चुन सकें, कसी से भी शादी कर सकें. इसे लिखा है अलंक्रिता श्रीवास्तव ने और वो इस फ़िल्म की निर्देशक भी हैं.
3. पार्च्ड
इस बेहतरीन फ़िल्म को लिखा और निर्देशित लीना यादव ने किया है. राजस्थान का एक गांव है जहां पूरे भारत के अधिकांश गांवों की तरह पुरुषप्रधान समाज है. टूट जाने के हद तक शोषित होने के बाद और हर लड़ाई को हारने के बाद एक बेहतर जगह जाने के आस से गांव से भाग जाने तक की कहानी है पार्च्ड की.
4. इंग्लिश-विंग्लिश
अंग्रज़ी न जानने से आप दोयम दर्जे के इंसान नहीं हो जाते. यह मात्र एक भाषा है, इससे आपके ज्ञान को नहीं परखा जा सकता. इसकी कहानी बस इतनी नहीं है. आपको फ़िल्म में उस औरत का संघर्ष भी देखने को भी मिलेगा. इसमें आत्मसम्मान की लड़ाई है. यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस के आंकड़ों और आलोचकों को बड़ी पसंद आई थी. इसे गौरी शिंदे ने लिखा और डायरेक्ट किया था.
5. क्वीन
इस फ़िल्म को आप बस दो सीन में समझ सकते हैं. एक जब रानी(कंगना रनौत) विदेश जा रही होती हैं और दूसरा जब वह विदेश से लौटती हैं. इन दोनों सीन्स में आत्मविश्वास का जो अंतर है, वही इस फ़िल्म की कहानी है. औरतों को सहारे की ज़रूरत है.. हमें इस मानसिकता से निकलना होगा. ज़रूरी है ऐसी दुनिया बनाने की जहां सभी को एक से मौके मिलें. वो दुनिया घूमेंगी, ग़लतियां करेंगी, सबक सीखेंगे, आगे बढ़ेंगी, आज़ाद होंगी.
इस फ़िल्म और कंगना को नेशनल अवॉर्ड भी मिला था, इसे विकास बहल ने लिखा और डायरेक्ट किया था.
6. Highway
आप बड़े घर में पैदा हुए हैं. आपके पास तमाम ऐशो आराम मौजूद हैं. बावजूद इसके ये नहीं कहा जा सकता कि आप आज़ाद हैं. ये भी एक विडंबना है कि इस फ़िल्म में अभिनेत्री किडनैप होने के बाद आज़ादी को पहली बार महसूस करती है. इस फ़िल्म को लिखने और डायरेक्ट करने का काम इम्तियाज़ अली ने किया था.
7. तमाशा
हमारी ज़िंदगी की कहानी कैसी होगी, अक्सर दूसरे तय करते हैं. लोगों को क्या पसंद आएगा हम अपनी कहानी वैसी बुनते जाते हैं और अंत में हमें अपनी ही कहानी बोरिंग लगने लगती है. जब कथाकार हम ख़ुद हैं तो जैसी मर्ज़ी वैसी कहानी लिखेंगे.
इस फ़िल्म को लिखा इम्तियाज़ अली ने था और कैमरा के पीछे भी वही खड़े थे.
8. वेक अप सिड
एक अमीरज़ादे का बेटा. जिस चीज़ की चाहत थी वो चीज़ मिली. सारे ऐशो आराम आगे भी मिलती रहे इस बात के लिए पिता ने ये शर्त लगा दी कि उसे व्यापार में हाथ बंटाना होगा. यहां से वो अपनी ज़िंदगी के मायने अपने दम पर ढूंढने निकल पड़ा.
कहानी अयान मुख़र्जी की है और इसे डायरेक्ट भी अयान ने ही किया है.
9. Article 15
दो दलित लड़कियों ने अपनी दिहाड़ी में दो रुपये बढ़ाने की मांग की तो उनका रेप करके मार दिया गया. निर्देशक अभिनव सिन्हा का दावा है कि यह फ़िल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इसकी कहानी को अभिनव सिन्हा और गौरव सोलंकी ने मिलकर लिखा. फिल्म कुछ सप्ताह पहले ही रिलीज़ हुई है और अपने विषय की वजह से विवादों में रही है.
10. Fire
आज से 23 साल पहले दो महिलाओं के सेक्सुअल रिलेशन पर इस फ़िल्म को बनाया गया था. इसे आज भी वूमन सेक्सुएलिटी पर बनी सबसे अच्छी हिन्दी फ़िल्मों में रखा जाता है. जहां कुछ महीनों पहले कोर्ट ने धारा 377 को निरस्त किया है. ये तब भी विवादों में थी और आज भी इसे एक विवादित फ़िल्म ही माना जाता है. इस फ़िल्म को लिखा और डायरेक्ट दीपा मेहता ने किया है.