इंटरनेट कैसे सूचना के पूरे परिदृश्य को बदल रहा है, ये हम सब जानते हैं. पाठकों को क्या पसंद आएगा, किसे वो चाव से पढ़ेंगे, किसे पढ़ कर वो भड़क जायेंगे, इंटरनेट मीडिया पर डाली जाने वाली हर चीज़ इस बात को ध्यान में रख कर तैयार की जाती है. इंटरनेट मीडिया के पाठकों के व्यवहार के बारे में ऑनलाइन प्रकाशनों के कुछ संपादकों से बात करने पर कई ऐसी बातें सामने आयीं, जो शायद आप नहीं जानते होंगे.

Huffingtonpost

आज हम आपको ले जाना चाहते हैं इंटरनेट के परदे के पीछे की दुनिया में, जहां लेखक आपके लिए स्टोरीज़ लिखते हैं, उन पेज एडमिन्स की दुनिया में, जिनके लिए सबसे ज़्यादा शब्द इस्तेमाल किया जाता है, जो अव्वल दर्जे के बेवकूफों के लिए लोग आम भाषा में इस्तेमाल करते है. शब्द अभद्र है, इसलिए यहां उसका इस्तेमाल नहीं करेंगे. वो क्या है न कि कमेन्ट में हर गाली चलती है, पर आर्टिकल से तो संस्कारों की ही उम्मीद की जाती है.

किसी भी पेज पर चले जाइए, आपको किसी न किसी महानुभाव का ये कमेन्ट ज़रूर मिल जायेगा “बेवक़ूफ़ एडमिन! ढ़ंग के पोस्ट डाला कर”. ज़ाहिर है कि ये महानुभाव खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी जानते हैं, तभी इन्हें लगभग सभी एडमिन ‘बेवक़ूफ़’ नज़र आते हैं. अब एक बात आपको हम भी बता दें कि ज्ञानी हों या न हो, आपको इंटरनेट ने शक्तिशाली बहुत बना दिया है. इतना शातिशाली, जितना पाठक कभी नहीं थे. आज आप किसी पेज पर जा कर चुप-चाप अपनी पसंद का पोस्ट पढ़ सकते हैं. किसी को पता नहीं चलेगा कि आप ये जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आपकी राशि के हिसाब से आपको कौनसी सेक्स पोज़ीशन ट्राई करनी चाहिए. आप बस उस पोस्ट पर एक अच्छा सा कमेंट कर देना, जिसमें महिलाओं को बराबर हक़ देने की बात की जा रही है, और लोग समझेंगे कि आप तो बड़े समझदार और खुली सोच वाले हैं. आपने क्या पढ़ा, वो लोग नहीं जान पाएंगे, पर आपका ये कमेन्ट कई लोग ज़रूर देख सकते हैं. ये निजता और साथ में कुछ भी कह देने की आज़ादी इंटरनेट ही ने तो उपलब्ध करायी है न.

Bigshocking

अब अन्दर की बात सुनिये, ये जो बेवक़ूफ़ एडमिन होता है न, इसे सब पता चलता है. उसे पता चलता है कि आप क्या पढ़ रहे हो, कितनी देर पढ़ रहे हो, किस पोस्ट की बस हैडलाइन देख कर आगे बढ़ जा रहे हो. इसलिए जब आप सेक्स से जुड़े किसी पोस्ट को बड़े चाव से पढ़ते हो, उसे लाइक भी नहीं करते और जाते-जाते पेज को कमेन्ट बॉक्स में गरियाना भी नहीं भूलते, तो वो कभी-कभी आप पर हंसता भी है. आप कहते हैं कि हम कल्चर के दुश्मन हैं. पर उसे ये भी पता चलता है कि सीरिया के संकट में मर रहे बच्चों के बारे में जानने में आपको कहां इतना इंटरेस्ट आता है, जितना ये जानने में आता है कि आपके कानों का आकार आपके बारे में क्या बताता है.

वेबसाइट्स के डाटा एनालिसिस से पता चलता है कि इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा सेक्स से सम्बंधित पोस्ट पढ़े जाते हैं, इसके अलावा पाठक ह्यूमर और अजीबोगरीब चीज़ों पर भी पोस्ट पढ़ने में काफी दिलचस्पी दिखाते हैं.

Googleusercontent
“इंटरनेट पर पाठकों का दोहरा रवैय्या देखने को मिलता है. धर्म के आगे वो सही-गलत की समझ को मायने नहीं देते, पर इनकी पसंद कतई धार्मिक नहीं होती. कमेंट इस तरह के करते हैं कि सोशल मीडिया पर उनकी इमेज संस्कारी बनी रहे, मॉरल पुलिसिंग करने का ये कोई मौका नहीं गंवाते. कुछ पाठक ऐसे भी होते हैं, जो वाकई अच्छे कंटेंट को पसंद करते हैं, पर ज़्यादातर का रवैय्या कई बार हताश करने वाला होता है.” निशांत (बदला हुआ नाम)एक लोकप्रिय ऑनलाइन प्रकाशन के एडिटर

लेखक की कलम से तो आपकी मांगें निकलती हैं. क्या छपेगा, इसकी पावर आपके हाथ में भी तो है. ऐसा नहीं है कि हर पाठक केवल वर्जिनिटी और सेक्स में ही दिलचस्पी रखता है, अपवाद हर जगह होते हैं. और रही बात संस्कारी होने की, तो इन पाठकों के कमेंट में लिखी गयी गालियां चीख-चीख कर इनके संस्कारों का परिचय दिया करती हैं. एक तरफ़ आप धार्मिक एकता के पक्ष में कमेन्ट कर रहे होते हैं और वहीं आप किसी पोस्ट को ‘हिन्दू-विरोधी’ या ‘मुस्लिम-विरोधी’ करार दे कर सारे सौहार्द को ताक पर रख देते हैं.

“जिस तरह लोगों की पर्सनालिटी अपने मम्मी-पापा के सामने कुछ और दोस्तों के सामने कुछ और होती है, वैसे ही कुछ ऑनलाइन पाठक भी अपनी छवि सोशल मीडिया पर तो अच्छी बनाये रखना चाहते हैं, पर असल में बेहद उग्र होते हैं, जो गाली देने से पहले शायद एक पल भी नहीं सोचते. हम पूरी तरह उनके अनुरूप नहीं चलते, पर अप्रत्यक्ष तौर पर उनकी रुचियों का असर कॉन्टेंट पर पड़ता है.” अनुप्रिया (बदला हुआ नाम)एक प्रतिष्ठित ऑनलाइन प्रकाशन की एडिटर इन चीफ़
Theblaze

आप लिख कर जाते हो “अब ऐसे पोस्ट मत डालना”, पर ऐसे पोस्ट आते रहते हैं, आप उन्हें पढ़ते रहते हैं, आप उन्हें गरियाते रहते हैं. जब आप वाकई इन्हें न देखना चाहें, तो बस इतना करना कि इन्हें पढ़ना भी बंद कर देना, जब आप पढ़ेंगे नहीं, तो हम वो लिखेंगे भी नहीं. पर ऐसे कैसे होगा कि आप पढ़ना भी चाहते हैं और हमें संस्कारी भी बनाना चाहते हैं? ये तो आप तय करते हैं न कि क्या पढ़ना है, और क्या नहीं. यकीन मानिए, हम आपकी बहुत सुनते हैं. आज आपके लिए जो एडमिन बेवक़ूफ़ है, वो समझदार भी हो जायेगा जब आपकी पसंद समझदार हो जाएगी.

दरअसल, लेखकों की कलम भी बहुत हद तक पाठकों की मांग के अनुरूप चलती है, क्योंकि प्रकाशन का मकसद होता है अपनी पहुंच बढ़ाना, अपने पाठकों के दिल में जगह बनाना. भले ही आप हमें बेवक़ूफ़ समझते हों, पर हम आपको बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं. हम आपको समझदार समझते हैं, इसलिए वो भी लिखते हैं, जिसे चुप-चाप पढ़ना आपको पसंद है. हम तो आपकी मांगों का ख़याल रख रहे हैं, अगर इसके आधार पर आप हमें बेवक़ूफ़ समझते हैं, तो हम बेवक़ूफ़ किस के लिए बने हैं?