अपना कुछ होश नहीं, पर दुनिया पर नज़र रखते हैं, बेख़बर अपने दर्द से, लोगों के दर्द की ख़बर रखते हैं.

पत्रकारों के बारे में क्या कहें, चाहे लोग कितने भी विशेषण जोड़ दें, पर आप भी ये मानते होंगे की बिना उनके हमारी ज़िन्दगी न जाने कैसी होती? ख़ुद पत्रकारिता से ताल्लुकात रखती है, इसलिए ऐसा कह रही है ग़ज़ब पोस्ट वाली….. मुझे भी कुछ दिनों में ही बहुत विशेषण मिल गए.

पर एक दफ़ा सोचिए, पत्रकारिता न होती तो क्या होता? या फिर अपना देश कोई तालिबानी कानूनों वाला देश होता, तो क्या होता? ये जो मुंह उठा के किसी भी पत्रकार को बिकाऊ से लेकर उसके और उसके परिवारवालों की तारीफ़ों के पुल बांध दिए जाते हैं, ये भी नहीं होता अगर पत्रकारिता आज़ाद नहीं होती.

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आज World Press Freedom Day है, तो सोचा कि कुछ लिखूं. टीम हेड से Discuss भी कुछ और ही किया था और उस पर रिसर्च में अपने सुबह की नींद की भी कुर्बान कर दी थी, पर जब Keyboard पर उंगलियां चलाने लगी, तो लगा कि जब मैं ख़ुद एक Semi-Journalist हूं, तो थोड़ा खुद के बारे में भी जोड़ना चाहिए. Press Freedom पर जो भी बात करूंगी, कम समझ के अनुसार ही करूंगी, तो पहले से ही गुस्ताख़ी की माफ़ी.

Press Freedom, यानि कि बिना सरकार की दखलअंदाज़ी के, स्वेच्छा से कुछ भी छापना. कोई भी देश तभी आज़ाद कहलाया जा सकता है, जब उस देश की पत्रकारिता आसानी से, खुली हवा में सांस ले सके और पूरी तरह से आज़ाद हो. पत्रकार जहां सुरक्षित नहीं हैं, उस देश की हालत किसी से भी छुपी नहीं है.

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Reporters Without Borders, हर साल अलग-अलग देशों को Press Freedom के आधार पर सूचीबद्ध करती है, यानि जिस देश में पत्रकार सबसे ज़्यादा बेख़ौफ़ होकर लिख या बोल सकते हैं, उस देश को पहला स्थान मिलता है. 2017 में ये खिताब Norway ने हासिल किया है. अब आप भारत का भी रैंक जानना चाहेंगे, जो कि वाजिब भी है. बड़ा फ़क्र हो रहा है ये बताने में, कि भारत ने पिछले साल के मुक़ाबले इस साल अवनति की है और इस साल भारत को 136वां स्थान मिला है.

हैरान करने वाली बात है, जब इतने सारे स्कैम को उजागर करने वाले भारतीय पत्रकार भी आज़ादी के मामले में 136वें स्थान पर हैं, तो क्या सच में भारत में पत्रकार आज़ाद हैं? Commitee to Protect Journalists के अनुसार, भारत में 1992 से अब तक 27 पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं. जब बात पत्रकारों की सुरक्षा की हो रही है, तो यहां ये बता दूं की Turkey में हाल ही में 120 से ज़्यादा पत्रकारों को बंदी बना लिया गया है. जुर्म? बेबाक राय रखना.

Turkey ही क्यों, North Korea को ले लीजिए, आबादी के 9.7 प्रतिशत लोगों के पास ही स्मार्टफ़ोन है. वे चाहकर भी कोई जानकारी नहीं जुटा सकते. हां, कुछ लोगों के पास चीन से Smuggle किए हुए स्मार्टफ़ोन हैं. वहां के लोग अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं पढ़ सकते, विशेषण युक्त Facebook Comment करना तो दूर की बात है.

Telesurtv

दुनिया के वो देश, जहां Press Freedom नहीं है, वहां के पत्रकारों के साथ जानवरों से बद्तर सलूक किया जाता है. Syria की जो भी ख़बर हम तक पहुंचती है, वो किसी पत्रकार से ही होकर आती है, अपनी जान की परवाह न करते हुए किसी ने दुनिया के सामने सच लाने की ठानी थी, इसलिए हमें Syria के बद से बद्तर होते हालातों का पता चला. चीन भी अपने पत्रकारों के साथ हैवानियत से पेश आता है. वहां तो पत्रकारों को कहां मार के फेंका जाता है इसका भी पता नहीं चलता.

अगर बात भारतीय पत्रकारिता की करें, तो आज हम सब पत्रकार है, थैंक्स टू सोशल मीडिया. पर पत्रकारिता, एक ज़िम्मेदारी भी है. छोटा मुंह बड़ी बात, पर चंद Views के लिए नीच हरकतें कर देना, पत्रकारिता नहीं है.

Qha

हिन्दुस्तान का संविधान जितना लंबा है उतना ही मज़ेदार भी है. इतने सारे नियम और उपनियम और दायरे बना दिए हैं कि समझ ही नहीं आता है कि क्या सही है क्या गलत. जिसके जो जी में आता है, वही करता है. बहुत आसान होता है पत्रकारों को दो बातें सुनाना. पर जिस स्मार्टफोन के दम पर आज हम ज्ञानी बन बैठे हैं, बहुत से लोगों को वो भी नसीब नहीं है.

Press Freedom के साथ ही अब True Journalism का भी Index निकालना चाहिए. क्योंकि आज कहीं न कहीं देश में कई पत्रकारों के लिए सिर्फ़ पैसे कमाने का ज़रिया बनकर रह गई है पत्रकारिता. सच तो न जाने कितनी बेड़ियों में बंधा ही रह जाता है. जो सच कहने का दम रखते हैं वे या तो गरियाए जाते हैं, या फिर टपका दिए जाते हैं.

बड़ी ही असमंजस और डांवाडोल वाली स्थिति है, पर Press Freedom का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. पत्रकारिता की आज़ादी को अगर खतरा है, तो ये देश के लिए भी खतरा है. World Press Freedom Day पर विश्व शांति की आशा के साथ, पत्रकारिता को समर्पित ये लेख.