मां कहती है कि रात में सोने से पहले अच्छी बातें याद किया करो, अच्छे विचार लाया करो, कुछ पढ़ना या देखना भी है तो वो मज़ाकिया टाइप हो. मेरी कोशिश भी यही रहती है. या तो कार्टून देखती हूं या फिर हल्का-फुल्का सा ही कुछ पढ़ती हूं. सोशल मीडिया से थोड़ा फ़ासला भी बना लेती हूं.


रात तक़रीबन 10 बजे के आस-पास मुझे एक दोस्त ने एक ख़बर भेजी, WhatsApp पर… साथ ही ज़ुबान पर ज़िप वाली और उदास वाली इमोजी.  

Navbharat Times

कान में साएं से कुछ हुआ. ऐसा लगा आंखों से आग निकल रही हो. इंद्रप्रस्थ पार्क, जिसे निज़ामुद्दीन स्टेशन से निकलकर कई बार देखा है वहां झाड़ियों में एक लड़की का रेप हुआ है. अकेली लड़की को देखकर 2-4 लोगों ने उसे खींच लिया और गैंगरेप किया, मारा-पीटा और मरने के लिए छोड़ दिया.


ख़बर में ये लिखा था कि लड़की की हालत इतनी गंभीर है कि वो बार-बार बेहोश हो रही है और होश आने पर एक ही बात कह रही है 
‘मुझे छोड़ दो भैया… मुझे छोड़ दो.’  

उस लड़की की हालत इतनी गंभीर है कि उसे ये भी बताने के लायक नहीं कि कितने दरिंदे थे. पुलिस ने 7 टीमें बना तो ली हैं पर दरिंदे खुली हवा में सांस ले रहे हैं. शायद ये सोच रहे होंगे कि उनका अगला शिकार कौन होगा. ख़बरों में ये पढ़ा कि वो लड़की सड़क पर ही रहती थी. मैंने दिल्ली में कई बार मेरे या मेरे से कम उम्र की लड़कियों को बच्चा गोद में लिए सड़क पर रात-बेरात भीख मांगते देखा है और हर बार मेरे दिल में यही बात आती थी कि अगर कोई इन्हें उठा ले तो क्या होगा, या कोई खींच ले तो क्या होगा? बच्चे को मार डाले तो… एक बार मैंने एक से पूछ भी लिया था तो उसका जवाब ये था,

‘दीदी जी भूख के कारण तो करना ही पड़ेगा. क्या लगता है ये बच्चा किसका है?’  

The Telegraph

मैं सन्न रह गई थी कि ये किस समाज, किस देश, किस संविधान का रोना रो रहे हैं? दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का ख़्वाब आंखों में लेकर हम आगे तो बढ़ रहे हैं पर ज़मीनी हक़ीक़त है वो लड़की जिससे मैंने बात की थी और जिसके सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.


जिस चीज़ को जितना न देखने, पढ़ने या सुनने की कोशिश करो वो किसी न किसी तरह से नज़रों के सामने आ ही जाती हैं. मुझे रेप के NCRB के डेटा पता हैं पर मैं ऐसी ख़बरों से जितना हो सके दूरी बनाती हूं. कारण? ख़बर की एक-एक लाइन मेरे दिमाग़ में फ़िल्म की तरह चलने लगती है. लड़की की चीखें, कपड़े फटने से लेकर रेप की झाड़ी, गाड़ी, घर, खेत. बलात्कारियों की हंसी भी. ये मानसिक स्थिति हो गई है अभी से जबकि मास कम्युनिकेशन जॉएन करके सबसे पहले दिन प्रोफ़ेसर से ये कहा था कि क्राइम रिपोर्टर बनना है.  

किसी नामचीं संत ने 2012 निर्भया केस के लिए कहा था कि अगर वो लड़की बलात्कारियों के पैर पकड़कर ‘भैया’ बोल देती तो उसका बलात्कार नहीं होता. दिल्ली के इंद्रप्रस्थ पार्क में जिस लड़की का रेप हुआ वो भी उनसे ‘मुझे छोड़ दो भैया, मुझे छोड़ दो’ ही कह रही थी. 

Dangerous Women Project

इंद्रप्रस्थ पार्क की सुंदरता देखकर मेरे मन में कई बार ये बात आई कि क्या यहां भी दिल्ली के सेंट्रल पार्क(यहां वो कपल्स आते हैं जिन्हें कमरा, कोना या घर नहीं मिलता) वाला नज़ारा दिखता होगा? कभी अंदर जाने का मौक़ा नहीं मिला और अब शायद जाने की हिम्मत भी न हो. इस घटना से पुलिस, प्रशासन सब पर उंगलियां उठती हैं. क्या इतने बड़े पार्क की सुरक्षा कड़ी नहीं होनी चाहिए थी? क्या प्रशासन और पुलिस को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि इतने बड़े पार्क में रेप, गैंगरेप, हत्या कि घटनाएं हो सकती हैं. मुझे तो अब भी पूरी यक़ीन है कि इस वीभत्स घटना के बाद ही शायद ही प्रशासन जागे. 

Wikipedia

सिर्फ़ इंद्रप्रस्थ पार्क ही क्यों दिल्ली में ऐसे कई जगहें हैं जहां महिलाओं पर हमला हुआ है. Times of India की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, नेलसन मंडेला मार्ग पर एक बस स्टॉप के पीछे एक के बाद एक दो लड़कियों पर हमला हुआ. पत्रकार सौम्या विश्वनाथन और कॉलसेंटर एक्ज़ेकेटिव, जिगिशा घोष की हत्या हुई थी उस जगह पिछले महीने एक जेएनयू की छात्रा के साथ रेप किया गया.


सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो कोई सरकार किसी भी लड़की का रेप होने से कभी नहीं रोक सकती क्योंकि वे रोकना ही नहीं चाहते. महिला सुरक्षा, छेड़खानी रोकना ये सब किसी सरकार के मैनिफ़ेस्टो में नहीं आता है. किसी के मैनिफ़ेस्टो में गाय आती है तो किसी के मैनिफ़ेस्टो में सरकार की बुराईयां गिनवाना.  

ऐसे हालात में बेहतर तो यही होगा न कि 4 लोग झुंड बनाकर निकले और सबसे बेहतर होगा कि निकले ही न?