Dima ने अपनी नाज़ुक हथेली से अपने आंसू पोंछ लिए. 10 साल की Dima ने बहुत छोटी उम्र में अपने आंसू पोंछना सीख लिया था. Dima और उसका परिवार सीरिया से है और उस रात वो घर छोड़कर लेबनान जाने के लिए निकले थे, लेकिन क़िस्मत ने उन्हें रिफ़्यूजी कैंप पहुंचा दिया.

उस वक़्त अम्मी और मैं कार में थे. हम अब्बू का इंतज़ार कर रहे थे. अचानक एक रॉकेट सामने गिरा. मां मुझे लेकर कार से बाहर निकली. वहां हर तरफ़ बस धूल और धुआं था, सांस लेना भी मुश्किल था. लोग चीख़ रहे थे और आस-पास ख़ून फैला था. अब्बू कहीं नहीं दिखे. जूतों के सहारे पहचानी गयी एक लाश से लिपट कर, मां रोने लगी. मैं भी रोने लगी. अभी और हमले हो रहे थे, इसलिए सड़क पर टुकड़ों में बिखरी हुई लाश को छोड़कर सबको वहां से भगा दिया गया. मां मुझे वहां से लेकर जैसे-तैसे निकली और फिर हम रिफ्यूजी कैंप आ गए.
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Dima जैसे करोड़ों बच्चे हर साल देशों, संगठनों, विचारधाराओं और धर्मों की आपसी लड़ाई में बर्बाद होकर रिफ़्यूजी कैम्पों में जीने को मजबूर हो जाते हैं. इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, नाइजीरिया, सूडान आदि देशों में करोड़ों बच्चे ज़िन्दगी के नाम पर जो कुछ देख रहे हैं, वो उनके दिल-दिमाग़ को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. अपने आस-पास देखें तो भारत और पाकिस्तान के कश्मीर और बलूचिस्तान क्षेत्रों का विवाद भी वहां रहने वाले बच्चों और युवाओं के मानसिक, आर्थिक और सामाजिक विकास को प्रभावित कर रहा है.

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युद्ध और आतंकवाद के नाम पर इंसानों को जितना नुकसान ख़ुद इंसानों ने पहुंचाया है, उतना किसी प्राकृतिक आपदा ने कभी नहीं पहुंचाया. इंसानों ने कई बार लड़ाइयां लड़ी हैं, अपने लिए, अपने देश के लिए, अपनी विचारधारा के लिए और अपने धर्म के लिए. हर युद्ध न सिर्फ़ हज़ारों लोगों की मौत का कारण बनता है, बल्कि लाखों लोगों को बेघर, अनाथ, बेरोज़गार और विकलांग बनाता है. इन युद्धों में मरने वाले सबसे ज़्यादा बच्चे होते हैं और बचे हुए बच्चे इनके प्रभाव से ज़िन्दगी भर उबर नहीं पाते. बच्चों पर इनका प्रभाव इसलिए भी ज़्यादा पड़ता है क्योंकि उन्हें ऐसे वक़्त में ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है.

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UNICEF की एक रिपोर्ट के मुताबिक़-

1. दुनिया भर में पैदा होने वाले बच्चों में से 250 मिलियन बच्चे, यानि हर 9 में से एक बच्चा War Zone में रहने के लिए मजबूर हैं.

2. दुनियाभर के 3 से 18 साल के 75 मिलियन बच्चों ने युद्ध और आपदा के कारण कभी स्कूल ही नहीं देखा.

3. सिर्फ़ नाइजीरिया में ही 2009 में विद्रोह के बाद से बोको हरम ने अब तक लगभग 1200 स्कूल तोड़े और जला दिए और 600 शिक्षकों को मार डाला.

4. War Zone में मरने वाले 60% बच्चे बम धमाकों में मरते हैं. इनमें से 20% बच्चे स्कूल में ही मार दिए जाते हैं.

यक़ीन करना मुश्किल है, मगर 8 साल से लेकर 18 साल तक के 3 लाख से ज़्यादा बच्चे Child Soldier बना दिए गए, जिन्हें छोटी उम्र में ही बन्दूक उठानी पड़ी. ख़ैर ये तो सरकारी आंकड़े हैं, हक़ीकत इससे कहीं ज़्यादा दर्दनाक है. बचपन में ही मार-काट, ख़ून-ख़राबा देखने की वजह से ये बच्चे कई तरह की मनोवैज्ञानिक परेशानियों का शिकार हो जाते हैं.

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इतिहास का एक काला सच ये भी है कि स्त्रियां हमेशा से भोगने की वस्तु समझी गई हैं. युद्ध के समय औरतों और बच्चों से रेप, उनके साथ शारीरिक और मानसिक हिंसा, उन्हें अगवा करने, ग़ुलाम बनाने, बेचने और ग़लत काम करवाने के भी ढेर सारे मामले सामने आये हैं.

‘सबसे बड़ी चीज़ जो युद्ध में बच्चे खो देते हैं वो है ‘आशा’.

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Psychologist, Michael Wessells ने इन बच्चों के हालात पर कहते हैं, 

‘सबसे बड़ी चीज़ जो युद्ध में बच्चे खो देते हैं वह है ‘आशा’. वे ज़्यादातर हताश और निराश रहते हैं क्योंकि अपने भविष्य के लिए सही निर्णय लेने की उनकी स्थिति नहीं होती.’

जीवन से उनकी निराशा इस हद तक बढ़ जाती है कि लगभग 34 प्रतिशत बच्चे आत्महत्या की कोशिश करते हैं, ज़िन्दगी उन्हें ज़रा भी रास नहीं आती. ज़्यादातर बच्चे सिर दर्द, Panic Attack, Bed Wetting, कई तरह के Phobia और अन्य दिमाग़ी बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं.

एक दिल दहला देने वाला सच ये भी है कि जो बच्चे युद्ध में ख़ुद लड़ते हैं, जिन्होंने सामने से युद्ध की गतिविधियों को देखा या जिन्होंने Mental, Sexual, Emotional अत्याचार सहे हैं, वे दूसरे बच्चों की अपेक्षा ज़्यादा उग्र और हिंसक हो जाते हैं.

बच्चों को रिफ़्यूजी कैंप, हॉस्पिटल और स्कूलों से चुराकर बेच दिया जाता है

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तमाम बच्चों की मदद के लिए दुनियाभर के कई संगठन आगे आते हैं, मगर उनकी पहुंच सीमित बच्चों तक ही है. हर साल लाखों बच्चे अपनों से बिछड़ जाते हैं. लाखों की मौत हो जाती है और लाखों दिव्यांग हो जाते हैं. घर वालों से बिछड़े बहुत से बच्चों को रिफ्यूजी कैंप, हॉस्पिटल और स्कूलों से चुराकर बेच दिया जाता है. इसके बाद यही बच्चे ग़ुलामी करते हैं, भीख मांगते हैं या फिर इन्हीं में से कुछ बच्चे जिनके ज़ेहन में इन्तक़ाम का कीड़ा कुलबुलाता है, उन्हें बाग़ी या आतंकी बना दिया जाता है.

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इस विषय पर सीमित शब्दों में लिखना मुश्किल था. बहुत कुछ लिखने से बचा रह गया, जिसे फिर किसी किश्त में हम आप तक पहुंचाएंगे. मगर अंत में आपसे एक बात कहनी है.

इंसान ईश्वर की बनाई हुई सबसे ख़ूबसूरत और जटिल रचना है और इंसानियत उसका हमें दिया गया सबसे बड़ा उपहार. रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था कि हर बच्चा अपने साथ यह सन्देश ले आता है कि ईश्वर ने इंसानों से अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है. हमें आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और रहने लायक दुनिया देनी है, तो आपस के इन युद्धों का रुकना बहुत ज़रूरी है. 

किसी शायर का एक शेर याद आ रहा है-

ये दुनिया नफ़रतों की आख़िरी स्टेज पे है, इलाज अब इसका मुहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं…