Dear Bollywood!
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वैसे तो मैं उतनी फ़िल्में नहीं देखती, जी हमें किताबों के एनाकोंडा ने निगला था तब से किताबों के बिना गुज़ारा नहीं होता और फ़िल्मी कीड़ा हमारे आस-पास नहीं फड़क पाया अभी तक तो पर बॉलीवुड के बारे में इत्ता-बित्ता ज्ञान है. तो मुंह में आई गाली थूक दीजिए बॉलीवुड जी.
अरे भाई, दिक्कत क्या है महिलाओं से… नहीं सीधे-सीधे बताओ. अभी होली के गानों को ही ले लो. अमा हर गाने में लड़की के साथ ज़बरदस्ती, काहे भाई काहे? आम ज़िन्दगी में किसी को ऐसा करते देखा है और देखा भी है तो उसे बग़ैर पिटे देखा है?
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होली की जितनी भी कहानियां सुनी हैं उनमें कहीं भी महिलाओं के साथ हो रही ज़बरदस्ती के बारे में तो नहीं सुना तो फिर अपने गानों में ये दिखा के साबित क्या करना चाहते हो? या मैं समझ लूं कि मनचलों को गानों के ज़रिए आईडिया बांटने का काम कर रहे हो. होली के गाने कि बात करें तो ‘अरे जा रे हट नटखट’ गाना बेहद उम्दा है. लड़की कन्सेन्ट के कन्सेप्ट पर बात तो कर रही है! ग़ौरतलब है कि गाने की आगे कि लाइनों में मेरे अरमान तार-तार होते हैं क्योंकि होली खेलने वाले को ‘गाली मीठी लग जाती है.’
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मतलब ख़त लिखते-लिखते कोई एक ऐसा गाना नहीं मिल रहा जहां सही मायनों में होली को दोनों ही जेंडर इक्वली एनजॉय कर रहे हो. हर हमेशा एक ही कहानी, लड़की मना करती है, लड़का ज़बरदस्ती करता है फिर लड़की मान जाती है और सब मिलकर होली खेलते हैं. मतलब हद है!
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PS: पाठक गणों! हो सकता है कि सामने वाले की नीयत ख़राब न हो पर अगर किसी ने रंग लगवाने के लिए मना किया है तो इसका मतलब मना किया है. किसी के साथ ज़बरदस्ती करना बिल्कुल ठीक नहीं है.