Dear Parents, Family Members!

न्यूज़, वाट्सऐप फ़ॉरवर्ड्स और सोशल मीडिया से आपको पता ही चला होगा कि सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु हो गई है. पुलिस ने जांच के बाद इसका कारण आत्महत्या बताया. 

I am Glade

इसके साथ ही मेन्टल हेल्थ पर फिर से बातचीत, वाद-विवाद शुरू हो गया है. कई रिपोर्ट्स में ऐसा कहा गया है कि सुशांत डिप्रेस्ड या अवसाद ग्रसित थे, उन्हें ऐंटी-डिप्रेसेंट्स भी दिए गये थे.

कई लोगों को अक़सर ऐसा लगता है कि Anxiety, Depression, Panic Attacks, Over stressed होना मॉर्डनिज़्म का हिस्सा है और पुराने ज़माने में ऐसा नहीं होता था, कहने का मतलब है आपके ज़माने में ऐसा नहीं होता था. 
सोशल मीडिया पर भी बहुत लोग इस नैरेटिव को हवा दे रहे हैं कि ‘अपने माता-पिता को देखो, कितनी ख़ुशहाल थी उनकी ज़िन्दगी, इसकी वजह थी वे परिवार के क़रीब थे, उनमें प्रेम था, कम में ख़ुश होना जानते थे, धार्मिक प्रवृत्ति के थे’ वगैरह वगैरह.    

एक सवाल आप सबसे पूछना चाहूंगी, और मैं चाहूंगी कि एक सवाल आप अपने आप से करें, क्या आप सच में ख़ुश थे? किसी को जवाब देने की ज़रूरत नहीं है, ख़ुद से पूछिए और ख़ुद को जवाब दीजिए. क्या आप पूरी तरह से तनावमुक्त थे, क्या आपने दिल से प्रेम किया था या ज़िम्मेदारियों ने प्रेम सीखा दिया.

अगर आपने ये ख़त यहां तक पढ़ा है तो इसके लिए शुक्रिया. 
हम अक़सर मानसिक स्वास्थ्य को युवाओं या मिलेनियल्स के चोंचले, या आजकल के लोगों में ही होता है या अमीरों को ही होता है जैसे कैटगरीज़ में बांट देते हैं.   

ऐसा करते हुए हम कई बातें भूल जाते हैं, कई डेटा को इग्नोकर कर देते हैं, नज़रअंदाज़ कर देते हैं. इसकी कई वजहें हो सकती हैं, हमारी असंवेदनशीलता, हमारे किसी अपने के साथ कुछ ग़लत न होना, हमारे जीवन के अन्य संघर्षों का हम पर हावी होना आदि.

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर दिन 28 छात्र, ख़ुदकुशी कर लेते हैं. ज़रा सोचिये ये डेटा कितना भयानक है. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक़, बीते 3 दशकों में भारत में मानसिक स्वास्थ्य के केस दोगुने हो गये हैं. यहां ये बताना भी ज़रूरी है कि मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित होने की कोई निहित उम्र नहीं होती. बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक अवसाद ग्रसित हो सकते हैं. 
किसानों की आत्महत्या की रिपोर्ट तो आपने भी अख़बारों में देखी ही होंगी.   

कोई भी केस उठाकर देख लीजिए, वजह एक ही मिलेगी, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी भ्रांतियां और जानकारी की बेहद कमी होना.

तो वो क्या वजह है जो आपको ये कहने या सोचने पर मजबूर कर रही है कि ‘हमारे घर पर सब सही है, हमारे बच्चे के साथ, हमारे परिवार वालों के साथ सब ठीक है.’? 
अगर आप भी मानते हैं कि आपके ज़माने में ऐसा नहीं होता था, तो ये बताइए, बंद कमरों के अंदर होने वाली घरेलु हिंसा, बच्चों पर ग़ुस्सा उतारना, शराब पीकर परिवार के लोगों को परेशान करना क्या था? ये सब तनाव के कारण ही होता है न? दुनिया में काफ़ी कम लोग होंगे जिन्हें दूसरे को कष्ट पहुंचाकर सुकून मिलता हो, और वो परिवार जिस प्रेम से आपने बनाया था उसी परिवार के लोगों के प्रति अब्यूज़ीव हो जाने की वजह क्या मानसिक स्वास्थ्य का ठीक होना नहीं है? 
सोचिए, विचार करिए, परिवार में बात करिए. शास्त्रों का हवाला तो दे देते हैं, फ़िल्मों और सीरियल्स में भी दिखा देते हैं पर अपनों के साथ इन गंभीर विषयों पर चर्चा क्यों नहीं करते? किस बात का डर है आपको? जिस तरह फ़ैमिली डिनर करते हैं, किसी के बीपी, डायबटीज़ या अन्य रोग पर चर्चा करते हैं, क्या मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करना इतना मुश्किल है?   

कोशिश तो करके देखिए, घर के बच्चे अपने मम्मी-पापा से बात कर सकते हैं और मम्मी-पापा बच्चों से. बात करने से हर समस्या का हल निकलता है और यहां एक इतने गंभीर विषय पर बात करने में हिचकिचाहट कम करने की कोशिश करनी होगी.

एक ख़ुशहाल समाज के लिए बहुत ज़रूरी है कि घर पर मेन्टल हेल्थ को लेकर बातचीत शुरू हो. अगर आप शुरुआत करने के लिए तैयार हैं तो रास्ता भी मिल जायेगा, ऑनलाइन ऐसी बहुत सी जानकारियां हैं, बस ज़रूरत है तो क़दम बढ़ाने की.  

एक बेहतर समाज की उम्मीद के साथ

– संचिता 

Pak Peek

इस ख़त के साथ मैं एक और बात जोड़ना चाहूंगी, भारत में मानसिक स्वास्थ्य एपिडमिक की अवस्था में पहुंच चुका है लेकिन अभी तक भारत सरकार जागरूक नहीं है और न ही हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े प्रोफ़ेशनल्स की तादाद बहुत ज़्यादा है. इसके ऊपर इलाज का ख़र्च इतना ज़्यादा है कि एक ख़ास वर्ग के लोग ही उसका ख़र्च उठा सकते हैं. 

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