2019 लोक सभा चुनाव शुरू होने में बस कुछ ही दिन बचे हैं और ऐसे में राजनीतिक पार्टियां जनता को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं. एक तरफ़ जहां राजनीतिक पार्टियां रैलियों और कैंपेन में बिज़ी हैं, तो वहीं दूसरी ओर उनके समर्थक भी पार्टियों को जिताने की भरपूर कोशिश में लगे हुए हैं. वो कभी गली-मोहल्ले में पार्टी का प्रचार करते नज़र आते हैं, तो कभी सोशल मीडिया में अपनी पार्टी की तारीफ़ के पुल बांधते नज़र आते. 

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इस चुनाव में सोशल मीडिया की भी अपनी अहम भूमिका है, जिसके ज़रिये हमें रोज़ाना पक्ष-विपक्ष के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलता है. फिर चाहें वो ग़लत हो या सही. आपकी फ़्रेंड लिस्ट में कई लोग ऐसे होंगे, जो हर रोज़ अपनी पार्टी के समर्थन में या विपक्ष के लिये कुछ न कुछ लिखते रहते होंगे.  

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हांलाकि, राजनीतिक पार्टियों के बारे में लिखते समय कई बार हम अपना आपा खो देते हैं और कुछ ऐसा लिख जाते हैं, जो शायद नहीं लिखना चाहिये या फिर कमेंट में दूसरों से लड़ने लग जाते हैं. इस दौरान हम ये भी नहीं देखते हैं कि वो रिश्तेदार या फिर करीबी दोस्त हैं. क्या करें राजनीति का प्यार ही ऐसा होता है.  

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राजनीतिक पार्टियों को लेकर सभी की अपनी निजी राय हो सकती है, जैसे आपकी है. इसलिये ये ज़रूरी नहीं है कि आप जिस पार्टी को सपोर्ट कर रहे हैं, सामने वाला भी उसी पार्टी को पसंद करे.  

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मुद्दा यहां किसी पार्टी के समर्थन का नहीं है, बल्कि उसके कारण निजी रिश्तों के होने वाले नुकसान का है.  

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इलेक्शन के समय हर बंदा अपनी फ़ेवरेट पार्टी को जीतता हुआ देखना चाहता है, पर इसके लिये दूसरों से लड़ने या उन्हें अपशब्द कहने की ज़रूरत नहीं है. अगर कोई किसी राजनीतिक दल के ख़िलाफ़ है, तो उसे भी अपने पॉइंट और बातें रखने का उतना ही हक है, जितना आपको. ये मत भूलिये भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां हर किसी को अपनी बात कहने की आज़ादी है.  

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हर राजनीतिक दल में कुछ अच्छाईयां होती हैं, तो कुछ बुराईयां भी. देश का नागरिक होने के कारण अगर कोई किसी पार्टी के काम से संतुष्ट नहीं, तो उसे अपनी राय रखने का पूरा हक है. क्योंकि हम किसी व्यक्ति पर अपनी निजी राय नहीं थोप सकते और न ही ऐसा करने का हमें किसी ने हक दिया है. इसके अलावा ये भी सोचिए, क्या पक्ष-विपक्ष आपस में इतना बैर रखते हैं, जितना हम उन्हें समर्थन देने के लिये आपस में लड़ रहे हैं. सत्ता में किसी एक दल का आना-जाना लगा रहता है और आगे भी ये सिलसिला चलता रहेगा. पर अगर इसकी वजह किसी से हमारे संबंध ख़राब हो जाएं, तो शायद उसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता.  

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इलेक्शन की वजह से निजी संबंधों पर आंच न आने दें, राजनीतिक पार्टी को समर्थन करना अच्छा है, लेकिन रिश्तों को दांव पर लगा कर नहीं. अपनी बात रखिये, लेकिन दूसरों की बातों को सुनना भी सीखिये और हां वोट देने ज़रूर जाना. क्या पता आपके एक वोट से किसी अच्छे नेता को काम करने का मौका मिल जाये.