होली के दिन दिल खिल जाते हैं,
आज मैं अपना आर्टिकल इस गाने से शुरू कर रही हूं क्योंकि चाहे कितने ही गाने होली पर क्यों न बन जाएं पर ये एक ऐसा गाना है जो होली पर हर मोहल्ले, गली-कूंचे में सुनाई पड़ता ही है. शायद इसलिए क्योंकि इस गाने में होली के असल मायने बताये गए हैं.
पिछले 5-6 सालों से मैंने होली नहीं खेली है, पर होली खेलना मुझे बहुत पसंद है. एक टाइम ऐसा था कि जब सुबह-सुबह जल्दी उठकर मैं होली खेलने के लिए सबसे पहले तेल-वेल लगाकर तैयार हो जाती थी. और उसके बाद मोहल्ले की सहेलियों के साथ टोली बनाकर एक-एक कर सबके घर जाकर होली खेलती थी. पर अब जाने क्यों ऐसा लगता है कि जैसे होली के मायने बिलकुल बदल गए हैं. क्या आपको ऐसा नहीं लगता है…

होली रंगों का त्यौहार है, रंगों का केवल ये मतलब नहीं कि दूसरों पर रंग फेंकना, बल्कि समाज पर चढ़े बुराइयों और कुरीतियों के मैल को साफ़ करना भी है. अगर आपको होली मनाने की असली वजह पता होगी तो आपको याद होगा कि सदियों से होलिका दहन का क्या महत्व है. फिर क्यों हम भूलते जा रहे हैं होली का असल महत्व.
आज के वक़्त की होली यानि शराब, नशा, फूहड़ता, लड़कियों के साथ छेड़खानी, अभद्रता, अपशब्दों और लड़ाई-झगड़े वाली होली के पीछे पहले वाली अच्छाई, प्यार और सौहार्द्र भाव फैलाने वाली होली कहीं छुप गई है. आज होली के रंग नेचुरल न होकर तरह-तरह के केमिकल्स से बनने लगे हैं. पिछले कुछ सालों में मैंने देखा है कि होली-होली न रह कर कुछ और ही बन गई है.
जैसे चौराहों पर होलिका दहन के लिए इकट्ठी की जाने वाली लड़की और गोबर के उपलों की जगह कूड़ा-करकट ने ले ली है. होलिका दहन के बहाने लोग अपने घरों के पुराने, सड़े-गले सामान और फटे कपड़ों को होलिका में डाल जाते हैं. और जब होलिका दहन किया जाता है, तो पॉल्यूशन के सिवा कुछ और नहीं होता. पहले के टाइम में ये भी माना जाता था कि होलिका दहन के बाद उठने वाले धुंए से बीमारी फैलाने वाले कीड़े-मकौड़े, मक्खी-मच्छर मर जाते हैं. पर आज तो उल्टा बीमारियां और बढ़ जाती हैं. वर्तमान में होलिका दहन में प्यार या सद्भाव नहीं बढ़ता, बल्कि हर तरह से संस्कारों, सभ्यता, मर्यादा और सामाजिकता का दहन होता है.

अब अगर बात करें होली खेलने की तो आज लोगों का होली खेलने का तरीका भी बदल गया है, आज के टाइम में कुछ लोग रंग लगाने के बहाने अपनी गन्दी मानसिकता को पूरा करने की मंशा करने लगे हैं. ‘बुरा न मानो होली है’ के बहाने अपनी नियत दिखा देते हैं. मैं मानती हूं कि होली में हंसी-ठिठोली, मज़ाक-मस्ती होती है, लेकिन इसकी आड़ में अपनी इच्छाओं को पूरा करना क्या जायज़ है…

होली रंगों का त्यौहार है और रंग लगेगा तो पानी भी चाहिए होगा उसको हटाने के लिए, लेकिन जहां हमारे देश में पानी की किल्लत के कारण फसल बर्बाद होने की वजह से किसान मर रहा है, किसान सूखे की मार झेल रहा है, वहां हम हज़ारों लीटर पानी होली में बर्बाद करते हैं. ऐसा नहीं है कि पहले ऐसा नहीं होता था, लेकिन तब रंगों में केमिकल्स नहीं होते थे और वो जल्दी उतर जाते थे. ख़ैर, इस पर ज़्यादा बोलना ठीक नहीं होगा क्योंकि इससे कई तथाकथित समाज के ठेकदारों की भावनाएं आहत हो जाएंगी.

वहीं आजकल एक ट्रेंड और है कि न्यूक्लियर फ़ैमिली के इस दौर में लोग होली या किसी और भी त्यौहार पर अपने घर अपने पेरेंट्स के पास जाने के बजाए कहीं घूमने-फिरने निकल जाते हैं. जबकि किसी भी त्यौहार का असली मज़ा परिवार के साथ ही है, ना कि अकेले घूम कर.
कुछ लोगों के लिए आज होली का मतलब सिर्फ़ और सिर्फ़ नाशा करना और पड़े रहना मात्र रह गया है, जबकि मेरा मानना है कि अगर आप होली न भी खेलें पर अपने परिवार के साथ बैठें, तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान खाएं, ठंडाई पिए, लोगों से मिले, नाचे-गायें और जश्न मनाएं, तो आपको किसी भी त्यौहार का बहुत आनंद आएगा
पर अब तो ऐसा लगने लगा है कि होली ने अपने ऊपर एक उदासी ओढ़ ली है. क्या आपको भी ऐसा ही लगता है… अगर हां तो अपनी राय आप हमारे साथ शेयर कर सकते हैं.
होली रंगों का त्यौहार है, रंग बदलने का नहीं. अपनों के साथ मनाएं इस बार की होली.