आम तौर पर आपने महिलाओं को ही पितृसत्ता के खिलाफ़ आवाज़ उठाते देखा होगा. ऐसा लाज़मी भी है क्योंकि ये महिलाओं के हक़ के लिए अच्छी नहीं है, ये समझना आसान है. असल में इसमें केवल महिलाओं का ही नहीं, पुरुषों का भी नुकसान है.

इस व्यवस्था में स्त्री और पुरुष को समाज द्वारा दिए गए कार्यों के अनुसार चलना पड़ता है. इन्हें हम आम भाषा में जेंडर रोल्स कहते हैं. जिस तरह महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वो घर संभालें, उसी तरह इस व्यवस्था में पुरुषों से भी कई अनकही अपेक्षाएं की जाती हैं. महिला होने के नाते जिस तरह महिलओं को हिदायतें दी जाती हैं, वैसे ही लड़कों से भी काफ़ी कुछ कहा जाता है.

हम आज उन डायलॉग्स के बारे में बात कर रहे हैं, जो अकसर लड़के सुनते हैं, पर उन्हें अहसास नहीं होता कि वो भी जेंडर रोल्स के इस भंवर में फंसते जा रहे हैं.

1.

बचपन से लड़कों को भावनाएं ज़ाहिर न करना सिखाया जाता है. इस तरह रहते-रहते एक समय ऐसा आ जाता है कि खुद को भावनात्मक रूप से ज़ाहिर नहीं कर पाते. जब उन्हें रोना आता है, तो वो इसी डर से उसे रोकने की कोशिश करते हैं कि लड़का हो कर रोना उन्हें शोभा नहीं देता, इस तरह लोग उन्हें कमज़ोर समझेंगे. छोटे बच्चे भी अगर खिलौना टूटने पर रोते हैं, तो मां-बाप उन्हें सिखाते हैं कि ‘लड़के रोते नहीं बेटा’. वैसे भी, समाज के हिसाब से तो मर्द को दर्द भी नहीं होता है.

2.

एक रिसर्च में सामने आया है कि लड़कों के साथ भी कभी न कभी यौन हिंसा या मोलेस्टेशन हुआ होता है. इसके बावजूद, वो कभी इसकी शिकायत नहीं कर पाते. ज़्यादातर ये सोच कर चुप्पी साध लेते हैं कि अगर इसके बारे में किसी को बताएंगे, तो उन्हीं का मज़ाक उड़ाया जाएगा.

3.

अगर किसी लड़के की डांस या आर्ट जैसी कलात्मक रूचि हो और वो उसमें आगे बढ़ना चाहता हो, तो ज़्यादातर परिवारों से सपोर्ट नहीं मिलता है. लड़कों को बचपन से कराटे, कुंग फू, स्पोर्ट्स जैसी चीज़ों में रुचि लेने को कहा जाता है.

4.

मर्दों का सेक्सुअली ज़्यादा एक्टिव होना अच्छा माना जाता है. लड़कों के सेक्सुअली ज़्यादा एक्टिव होने का स्टीरियोटाइप इतना मज़बूत है कि उन पर अच्छा परफ़ॉर्म करने का बेहद दबाव रहता है. इसकी वजह से कई बार वो अपने निजी पलों को एन्जॉय भी नहीं कर पाते और स्ट्रेस में रहते हैं.

5.

घरेलू हिंसा से केवल महिलाएं ही पीड़ित नहीं होतीं, पुरुष भी कई बार इसका सामना करते हैं पर इसके बारे में किसी को बताने या शिकायत करने से झिझकते हैं. वजह फिर वही होती है.

6.

जब घर में कोई मेहमान आ जाये, तो उससे सवाल होता है ‘चाय लेंगे या ठंडा?’ जवाब चाय हुआ, तो अकसर बहन किचन की ओर चल देती है और अगर जवाब ठंडा हुआ, तो भाई को भेज दिया जाता है ठंडा लाने. घर में भाई-बहन हों, तो बाहर से सामान लाने के लिए लड़के को ही भेजा जाता है. जिस तरह घर के काम करना औरतों की ज़िम्मेदारी समझी जाती है, उसी तरह मर्दों से भी अपेक्षा की जाती है कि वो घर के बाहर के सभी काम निपटाएं.

7.

बॉडी शेमिंग का शिकार सिर्फ़ लड़कियां ही नहीं होतीं. दुबले लड़कों को अकसर कमज़ोर समझा जाता है. जिस तरह लड़कियों से स्लिम और सेक्सी दिखने की उम्मीद की जाती है, उसी तरह लड़कों से भी आशा की जाती है कि वो शक्तिशाली ‘माचो’ जैसे दिखतें हों. उन्हें घर की महिलाओं का बॉडीगार्ड समझा जाता है. बॉडी गार्ड तो हट्टा-कट्टा ही होना चाहिए न.

8.

बीवी या गर्लफ्रेंड पर नियंत्रण रखने की चाह कुछ मर्दों पर इतनी हावी होती है कि उनके हर काम पर नज़र रखते हैं और उन्हें पाबंदियों में जकड़ कर रखते हैं. ऐसा न करने वाले लड़कों को अकसर ये बात सुननी पड़ जाती है.

9.

‘गुलाबी रंग लड़कियों का और नीला लड़कों का’, ऐसे बहुत से स्टीरियोटाइप बच्चों के दिमाग में बचपन से ही भर दिए जाते हैं. लड़कों के कपड़े काले, नीले, ग्रे जैसे रंगों में सिमट कर रह जाते हैं. अगर कोई लड़का गुलाबी कपड़े पहन ले, तो उस पर कोई न कोई कमेन्ट कर ही देता है.

10.

लड़कों को हमारा समाज ‘मर्द’ बनाता है. कदम-कदम पर उसे मर्द होने का अहसास दिलाता है. उसे मर्द के सांचे में ढालने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है, उसे हिंसक बनाना. रोड-रेज के जो किस्से सुनने को मिलते हैं, वो इसी का परिणाम हैं. ‘अगर कोई एक मारे, तो तुम दो मारना’, की सीख पर न चलने वाले भी इस तरह की बाते सुनते रहते हैं.

11.

भले ही सामान ज़्यादा भारी न हो, पर उसे उठाने की ज़िम्मेदारी लड़कों की ही होती है. किसी महिला के साथ सफ़र करते हुए आपने भी कभी न कभी ये महसूस ज़रूर किया होगा.

12.

लड़कों पर कमाने का दबाव लड़कियों से अधिक रहता है. अगर किसी की बीवी उससे ज़्यादा कमाती हो, तो इसके लिए भी मर्द को ताने मारे जाते हैं.

13.

कभी किसी लड़की के साथ डेट पर गए होंगे और बाहर खाना खाया होगा, तो वेटर भी बिल हर बार आपको ही थमा कर जात होगा. एक अच्छे बॉयफ्रेंड से अपेक्षा की जाती है कि खूब खर्चा भी करे.

अगर तुम्हें लगता है कि पुरुष होने के कारण तुम्हारे साथ ज़्यादती होती है, तो तुम्हें भी Feminism की ज़रुरत है, इसलिए इससे चिढ़ो मत और पितृसत्ता और जेंडर रोल्स के खिलाफ़ लड़ाई का हिस्सा बनो.