आदतन और काम की वजह से उस दिन भी फ़ेसबुकिया (न्यूज़ फ़ीड स्क्रॉल) रही थी. फ़ेसबुकियाते हुए एक तस्वीर पर नज़र पड़ी.

कई बार आंखों देखी पर यक़ीन नहीं होता, इस तस्वीर को देखकर कुछ वैसा ही एहसास हुआ. दिमाग़ में एक साथ कई प्रश्न दौड़ गए. 5डब्लू, वन एच (किसी भी ख़बर में ढूंढे जाने वाले 6 सवाल, What? Who? Where? When? Why? How?) के अलावा भी कई सवाल दौड़ गए. अगर ये कहूं कि सोचने-समझने की शक्ति कुछ पलों के लिए शिथिल पड़ गई तो ये कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
तस्वीर के बारे में और जानकारी इकट्ठा करने के लिए फ़ेसबुक से लेकर ट्विटर तक का दरवाज़ा खटखटाया. बच्चे के माता-पिता या ये देश के किस कोने की तस्वीर है इस बारे में तो कोई जानकारी नहीं मिली. इतना पता चला कि ये किसी सोसाइटी के फ़ैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता की तस्वीर है. और इस बच्चे को इस प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार दिया गया है.
school function m is bachy kii 1st postion aee
— jimmy_boii (@jamshedghaffar2) August 24, 2019
Topic : I ARGUED WITH MY WIFE
😂😅 pic.twitter.com/5TleGtKwCw
Fancy dress competition. I argued with my wife 😂😂😂 pic.twitter.com/8YwbP5R4gm
— Bharath (@bharath_selva10) August 20, 2019
The boy won first prize in school fancy dress competition. His title was “I argued with my wife”.😅😜 pic.twitter.com/izd7fIQ2EF
— The funny drug dealer (@funnydrugs) August 18, 2019
This boy won first prize. Concept of fancy dress competition-“I argued with my wife”.So funny can’t help posting tho risking feminist wrath pic.twitter.com/cVNsc6Y4fb
— MadhuPurnima Kishwar (@madhukishwar) October 11, 2017
2018 में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक रिपोर्ट के मुताबिक,15 साल से ऊपर की देश की हर तीसरी महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है. 31% शादीशुदा महिलाएं शारीरिक, सेक्सुअल या इमोशनल हिंसा का शिकार होती हैं और ज़्यादतर मामलों में अपराधी उनका पति ही होता है. देश की महिलाएं सबसे ज़्यादा शारीरिक हिंसा (27%) का शिकार होती हैं.
इस सर्वे में जो सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई वो ये थी कि सिर्फ़ 14% महिलाएं ही मदद मांगती हैं और ज़्यादतर चुप्पी साध लेती हैं.
एक मिनट रुकिए और सोचिए जिस देश में घरेलू हिंसा के इतने बुरे रिकॉर्ड हैं, जहां आज भी मैरिटल रेप अपराध की श्रेणी में नहीं आता, जहां आज भी चंद कागज़ के टुकड़ों के लिए महिलाओं को जीते-जी जला दिया जाता है वहां इस तरह का घटिया मज़ाक करने की सोच किसी माता-पिता के दिमाग़ में कैसी आई? क्या दोनों में से किसी को भी इस विषय की गंभीरता का अंदाज़ा नहीं था या फिर उनके लिए घरेलू हिंसा इतनी आम बात है कि वो मज़ाक का विषय बन चुकी है?
जिन महानुभावों को ये प्रस्तुति प्रथम पुरस्कार लायक लगी ये उनकी घटिया सोच या यूं कहें कि विचारशुन्यता को ही दर्शाता है. बच्चे को क्या पता, उसे पुरस्कार मिल गया और वो ख़ुश हो गया. क्या सही है और क्या ग़लत है ये बताना तो बड़ों का फ़र्ज़ था जिसमें वो बुरी तरह फ़ेल होते दिखाई दिए हैं.
मेरा मानना है कि इस तरह का प्रदर्शन न सिर्फ़ घरेलू हिंसा का शिकार हुई महिलाओं पर घटिया मज़ाक है बल्कि उन पुरुषों के दर्द की भी हंसी उड़ाना है जो सचमुच घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं. कई Men’s Right Movements का मानना है कि भारत में पहले के मुक़ाबले पुरुषों के साथ घरेलू हिंसा होने के केसेस में इज़ाफ़ा हुआ है.