आज हम गणतंत्रत दिवस मना रहे हैं. पूरी दुनिया को हम अपनी ताक़त दिखा रहे हैं. हम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हैं. हमारे संविधान में देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार मिला है, मगर हक़ीकत कुछ और ही है. सन 1947 में हम इस उम्मीद में आज़ाद हुए थे कि हम हर मामले में समान होंगे. हमें प्रांत, जाति, धर्म, भाषा, बोली और क्षेत्र के आधार पर हमारा कोई विभाजन नहीं होगा. संविधान के प्रारुप समिति के अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर ने एक बेहतर हिन्दुस्तान की कल्पना की थी, मगर दुर्भाग्यवश ऐसा अभी तक नहीं हो पाया है.

प्रिंस अपनी मां के साथ दिल्ली स्थित इंडिया गेट के पास रोज़ सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक भुट्टा बेचता है. अभी प्रिंस की उम्र महज 9 साल है. इस उम्र में बच्चे स्कूल जाते हैं, मगर प्रिंस स्कूल नहीं जाता है. इसकी वजह पूछने पर प्रिंस की मां बताती हैं कि पैसे के अभाव में हम इसे पढ़ा नहीं सकते. किताब-कॉपी के अलावा जूते, ड्रेस और अन्य ख़र्चे होते हैं, जिनका हम वहन नहीं कर सकते. हालांकि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A में देश के 6-14 साल उम्र तक के बच्चों की पढ़ाई अनिवार्य है. सरकार इन बच्चों का ख़र्च वहन करेगी. मगर सरकारी प्रयास के बावजूद प्रिंस नहीं पढ़ रहा है?
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जिस भारत में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है, उस देश में बाल मज़दूरों की भरमार है. भारत में कितने बाल श्रमिक हैं, मगर इनकी संख्या 43 लाख से लेकर एक करोड़ तक बताई जाती है. हालांकि इससे निपटने के लिए सरकार ने एक कानून भी पारित किया है, जो पूरी तरह से अप्रासंगिक है. यूनीसेफ़ ने इसकी आलोचना भी की है. इस कानून के आधार पर 14 वर्ष के आयु के बच्चे अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए काम कर सकते हैं. अब सरकार पढ़ाने की बात भी कर रही है और बाल-मज़दूरी की भी. अब आप ही तय कर लें कि सरकार करना क्या चाहती है?

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सबसे दुख की बात ये है कि ‘भारत मां’ की कई संतानें अभी भी गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ी हुई है. यहां रह रहे सभी नागरिकों को 6 मूल अधिकार दिए गए हैं, जिनका मर्म ये है कि वो अपनी इच्छा से कहीं भी रह सकते हैं, कुछ भी बोल सकते हैं और कोई भी धर्म अपना सकते हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि देश में रह रहे कई लोगों को इन अधिकारों के बारे में जानकारी नही हैं. ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में आधुनिक युग के गुलामों की तरह जीने वालों की तादाद करोड़ों में है, जिनमें एक-तिहाई से ज्यादा आधुनिक गुलाम तो केवल भारत में ही हैं.

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संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार, राज्य का कर्तव्य है कि अपने देश के नागरिकों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध करवाए मगर यह एक छलावा है. Global Hunger Index के अनुसार, भुखमरी के मामले में भारत का स्थान 97वां है. अब आप ही इन आंकड़ों के आधार पर तय कर लें कि सच्चाई क्या है.

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हमारे देश के नेता बड़े शान से कहते हैं कि देश में 75 फीसदी आबादी युवाओं की है. मगर ये नहीं कहते हैं कि उन 75 फीसदी युवाओं में 53 प्रतिशत युवा बेरोज़गार हैं. सरकार मनरेगा जैसे सरकारी रोजगार कार्यक्रम चला कर देश को ग़रीबी से मुक्त करना चाह रही है, मगर इसका प्रभाव कुछ ख़ास नहीं रहा. हां, इस स्कीम से नेताओं और अफ़सरों की मोटी कमाई ज़रुर हो रही है. हाल के एक रिपोर्ट अनुसार, देश 2015-2017 में बेरोजगारी काफ़ी बढ़ी है और सरकार कह रही है कि देश में विकास हुआ है.

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इस देश में दलितों और मुसलमानों को सभी पार्टियां महज अपना वोट बैंक मानती हैं. उनके वोटों से सरकार बनाती हैं और उनके उम्मीदों को ताक पर रख देती हैं. सरकार में उनके विकास के लिए अलग से मंत्रालय भी बनाए गए हैं. जैसे- अल्पसंख्यक मंत्रालय, आदिवासी कल्याण मंत्रालय, मगर ये नेताओं के कल्याण के लिए ही हैं.

सदियों से इस देश में महिलाओं का सम्मान होता आया है. उन्हें देवी, शक्ति और न जाने कितनी उपमाओं से अलंकृत किया गया है, मगर स्थिति हम देख ही रहे हैं. बलात्कार, घरेलू हिंसा, छेड़-छाड़ तो इस समाज का सिलेबस है. हालांकि, महिलाओं की सुरक्षा और विकास के लिए भी अलग से कानून और मंत्रालय बनाए गए हैं, मगर इन सब के बावजूद महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं.

सरकारी कार्यक्रमों को देखें, तो पाएंगे कि देश में कई तरह के कार्यक्रम चल रहे हैं, जो समाज के सभी वर्गों के लिए लाभदायक हैं. अगर इन कार्यक्रमों का सही से प्रयोग हो गया, तो देश के जच्चा से लेकर बच्चा तक का विकास हो जाएगा, मगर सरकारी कार्यक्रम हमेशा सरकारी ही होते हैं, जहां दो चीज़ें महत्वपूर्ण होती हैं, ‘सर’ और ‘कार’. सर ‘कार’ में आते हैं….सर सोफे़ पर बैठते हैं. उनकी बातों पर सब लोग सर-सर करते हैं फिर सर अपना सर हिलाते हैं और सर ‘कार’ से चले जाते हैं.

सरकारी कार्यक्रमों को जानने के लिए यहां पढ़ें

सरकार आपके लिए ही चला रही ये स्कीम्स, जिनसे मिलेगी आर्थिक और सामाजिक समृद्धि- 

गणतंत्र का मतलब होता है, जनता का राज. वैसा देश, जहां की सत्ता जनता के हाथों में हो. वो जनता, जो अपने प्रतिनिधि को अपनी मर्जी से वोट देकर एक सरकार बनाती है. सरकार का काम सिर्फ़ जनता की भलाई होती है, मगर आज़ादी के 68 साल बाद भी हमारे पास पर्याप्त ऊर्जा, सड़क, भोजन, शिक्षा और अस्पताल नहीं हैं. सिर्फ़ है, तो जातिवाद, धर्मवाद और क्षेत्रवाद.

हमेशा की तरह इस बार भी राजपथ पर शान से गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा, जिसे देश की पूरी जनता लाइव देखेगी. परेड होगा, सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे, कई लोग सम्मानित होंगे, देश भक्ति के गाने बजेंगे और हम सब अपने तिरंगे को सलामी करेंगे, मगर कब तक ऐसा चलेगा?