करवा चौथ… फ़िल्मों और टीवी ने हमारे यहां के सैंकड़ों व्रत, त्यौहारों में से इसे कुछ ज़्यादा ही हाइप दे दिया है. थोड़ा बहुत गूगल करके ये पता चला कि करवा चौथ मुख्यत: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में ही मनाया जाता है. पर धीरे-धीरे लगभग पूरा देश ही इस व्रत को मनाने लगा है.
जब ग्रैजुएशन में थे तब लड़कियों को कोहनी तक मेंहदी लगाकर, लाल रंग का सूट पहनकर अपने बॉयफ़्रेंड से मिलने जाते देखा था. सच कहूं बहुत मज़ाक उड़ाया था. मतलब हमने उतनी सी उम्र में ही उन्हें काफ़ी जज कर लिया था. दोस्तों संग मिलकर खी-खी भी की थी. यही नहीं, ऐसी लड़कियों को कहीं न कहीं यही समझ लिया था कि वो सिर्फ़ अपने बॉयफ़्रेंड के लिए जीती हैं, उनका जीवन में कोई मक़सद नहीं. उम्र की नामसमझी कहिए या कुछ और पता नहीं, अब लगता है कि अगर वो अपने प्रेम को उस तरह से व्यक्त कर भी रही थी तो इसमें ग़लत क्या था?
बड़े हुए तो फ़ेसबुक ज़िन्दगी में आया और इसी के साथ आई Memes, Jokes, Tags वाले पोस्ट की बाढ़.
She : Mene tere liye vrat Rakha h
— अ-nil (@twiit_brain) October 17, 2019
& Nibba feels loved
Meanwhile she in hostel #KarwaChauth pic.twitter.com/EEEWENvJcY
#KarwaChauth
— BekaarAadmi🚶 (@RealFun14) October 17, 2019
Modern girls after 2 hours of fast pic.twitter.com/qmHrDhLSD0
एक वक़्त पर व्रत रखने वाली लड़कियों को मैं जज किया करती थी, पर अब उन पर बन रहे ये Memes अब अच्छे नहीं लगते. इन्हें बनाने वालों पर बहुत गुस्सा आता है. मन करता है कि शादी के बिना अपने बॉयफ़्रेंड/प्रेमी के लिए व्रत रखने वाली लड़कियों को जज करने वाले वो होते कौन हैं?
आसान नहीं यहां, भूखे रह पाना
अरे भाई, यहां आशिक़ बन जाना काफ़ी आसान है, भूखे रहना नहीं! और मेरे कॉलेज की वो लड़कियां किसी के लिए भूखे रहती थी. अगर घर में रह रही हों तो पेटदर्द का बहाना करके या फिर दिनभर घर से बाहर रहकर, मतलब किसी भी व्रत रखती थीं. अब सोचने बैठूं तो लगता है कि एक मैं हूं जो एक वक़्त का खाना भी नहीं छोड़ पाती हूं और एक वो थीं जो इतनी सी उम्र में किसी के लिए (जिनसे शादी हो ये ज़रूरी नहीं था) पूरे दिन भूखी-प्यासी रहती थीं.
सबसे अहम बात-क्यों जज नहीं करना चाहिए?
सीधे-सादे शब्दों में, ‘माई चॉइस’. उनकी ज़िन्दगी, उनकी मर्ज़ी. ये माना कि पितृसत्तात्मक सोच हमारे समाज में आलथी-पालथी लगाकर बैठी हुई है पर किसी इंसान की मर्ज़ी पर सवाल उठाना ग़लत है. कोई कैसे अपना जीवन बिताना चाहता है ये, उसका निजी मामला है और उस पर उसकी चॉइस के लिए उंगली उठाना उसके अस्तित्व पर प्रश्न उठाने जैसा है.
यहां ये कहना बहुत ज़रूरी है कि मैं ये व्रत नहीं रखती पर ये व्रत या कोई भी व्रत रखने वालों का मैं बहुत सम्मान करती हूं. कारण… सिंपल है. हमें हर स्थिति में दूसरों के चुनावों और पसंद नापसंद का सम्मान करना ही चाहिए. समाज में सही और ग़लत की बहस हमेशा की जा सकती है, लेकिन किसी के साथ जबरदस्ती करना या फिर उसके चुनावों का मज़ाक उड़ाना सही नहीं है.