‘कर्म करो, फल की चिंता मत करो’

गीता में कुल सात सौ श्लोक हैं, उनमें से एक ये भी है. महाभारत के धर्मयुद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही उपदेश दिया था, जिसके बाद अर्जुन ने युद्ध में विजय प्राप्त की थी.

दुनिया बहुत बड़ी है, ये तो सभी जानते हैं. भगवान ने हर किसी को एक समान नहीं बनाया है. दुनिया में कुछ लोग बहुत अमीर हैं, तो कुछ लोगों का गुज़र बसर हो जाता है. वहीं कुछ लोगों को ज़िंदगी की छोटी-छोटी ज़रूरतों पूरा करने के लिए काफ़ी मशक्क करनी पड़ती है.

क्योंकि ज़िंदगी बहुत बड़ी है, इसलिए ज़रूरी नहीं कि हर वक़्त सफ़लता आपके हाथ लगे. कुछ लम्हें ऐसे भी आते हैं, जब सिर्फ़ निराशा हाथ लगती है. जीत और हार, दोनों ही जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं. उतार-चढ़ाव से भरे इस जीवन एक चीज़ जो सबसे महत्वपूर्ण रोल अदा करती वो है ‘कर्म’.

जब किसी के साथ बहुत बुरा या अच्छा होता है, तो अकसर ये सुनने में आता है, कि ये सब कर्मों के फल हैं, जो भुगतने पड़ रहे हैं, या फिर ये कहा जाता है: ‘ ‘अरे वाह आपके साथ इतना अच्छा हुआ क्योंकि आपके ‘कर्म’ अच्छे हैं.’

हमने कुछ लोगों से बात कर ये जानना चाहा कि वो लोग कर्म के बारे में क्या सोचते हैं.

25 साल की प्रोफ़ेशनल, आकांक्षा अपना तजुर्बा शेयर करते हुए कहती हैं कि ‘मैनें हमेशा निस्वार्थ भाव से सभी के साथ अच्छा करने के कोशिश की है, क्योंकि मैं इस बात पर विश्वास करती हूं कि अच्छा या बुरा आप कुछ जो भी करोगे, उसका परिणाम आपको एक दिन ज़रूर भुगतना पड़ेगा.’

आकांक्षा बताती हैं कि उनके एक अकंल आर्थिक तौर पर काफ़ी मजबूत हैं. पैसे की किसी भी तरह की तंगी न होने के बावजद उनके परिवार में कोई ख़ुश नहीं है. इसकी वजह बताते हुए वो कहती हैं कि जब अंकल किसी मदद करते हैं, तो चारों तरफ़ इसका बख़ान कर देते हैं, जिससे सामने वाले को काफ़ी शर्मिंदगी महसूस होती है. लोगों के साथ गाली गलौज करना, बुरा बर्ताव करना, ये सब उनके लिए आम बात है.कहते हैं मां-बाप के कर्मों की सज़ा बच्चों को मिलती है और उनके बुरे कर्मों की वजह से उनकी फै़मली में कोई ख़ुश नहीं हैं.

अगली कहानी कॉलेज गर्ल की है जो आज एक बड़ी मीडिया कंपनी में काम करती है. अपनी हॉस्टल लाइफ़ को याद करते हुए इन्होंने बताया कि एक दिन ऐसा था जब मेरे पर्स में एक भी रुपया भी नहीं था, और उस दिन बैंक की हड़ताल थी. इतना बुरा दिन था कि जब खाने की तालाश में कॉलेज कैंटीन पहुंचे, तो वो भी बंद निकली. भूख़ की वजह से द़िमाग ने काम करना बंद कर दिया था.

अचानक एक सहेली को देखकर उम्मीद की किरण जागी, वो अपने बॉयफ्रेंड से मिलकर आई थी. उसका बैग चॉकलेट और तमाम सारी खाने की चीज़ों से भरा हुआ था. मेरी हालत जानने के बाद उसने फ़टाफट अपना बैग खोला और खाने का सामान मुझे दे दिया. कुछ खाना पेट में जाते ही, मैंने राहत की सांस ली.

थोड़ी देर बाद मानों भगवान मुझ पर फिर से महरबान हो गए, गुड़ खीर मेरी पंसदीदा डिश है. मेरी एक सहेली भंडारे में गई हुई थी. भंडारे में गुड़ खीर बनी थी, उसे याद था कि मुझे ये खीर पंसद है और वो मेरे लिए वहां से खीर लेकर आई, जिसे देखते ही मैं ख़ुशी से उछल पड़ी और उसे जी भर करके खाया. भरे हुए पेट के साथ मुझे अहसास हुआ कि शायद मैंने भी कभी किसी की मदद की होगी, इसलिए भगवान ने आज मेरी मदद करने के लिए इन दोनों सहेलियों को भेजा. संचिता पाठक

‘अकसर जब मैं परेशान होती हूं, या रोती हूं, तो मुझे लगता है कि मैंने जाने-अनजाने में किसी का दिल दुखाया होगा, इसलिए आज मैं परेशान और दुखी हूं.’ कोमल सिंह

ज़िंदगी दो पल की है. आप चाहें तो इसे दूसरों का अपमान या बुरा करने में व्यतीत कर सकते हैं, या फिर इसी ज़िंदगी को आप किसी की मदद करके भी सफ़ल बना सकते हैं. ‘Choice Is All Yours’, लेकिन इतना याद रहे कि आप अच्छा करें या बुरा, इसका फल परिणाम स्वरूप आपको यहीं देखने को मिलेगा.