चुनावी मौसम में सभी राजनैतिक पार्टियां अपने-अपने घोषणा पत्र जारी कर रही हैं. इन्हें वो अपने हिसाब से बनाती हैं, जिनमें कई मुद्दे वर्षों से कुंडली मार कर बैठे हैं. जैसे गरीबी हटाओ, रोज़गार, महिला आरक्षण बिल आदि. मेरा ये मानना है कि जब समस्याएं हमारी हैं, तो हमसे पूछ कर घोषणा पत्र क्यों नहींं बनाए जाते? एक घोषणा पत्र जनता का भी होना चाहिए. इसके ज़रिये लोग अपनी-अपनी समस्याएं राजनेताओं तक पहुंचाएंगे और उनसे इसका हल मांगेंगे.
इसकी शुरुआत मैं ख़ुद से ही कर रहा हूं. मेरे घोषणा पत्र में ये मुद्दे होंगे:
मेट्रो का किराया
दिल्ली मेट्रो का किराया बहुत अधिक है. एक आम आदमी की पहुंच से बहुत दूर. मेरा मानना है कि इसका किराया कम किया जाना चाहिए. बहुत से लोगों ने अधिक किराया होने के चलते इससे सफ़र भी करना छोड़ दिया है. CSE की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मेट्रो का किराया बढ़ने के बाद से इसके 33 फ़ीसदी यात्री कम हो गए हैं.
अस्पताल
शहर में तो फिर भी प्राइवेट हॉस्पिटल से काम चल जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में नहीं. देश में अभी कई ऐसे क्षेत्र मौजूद हैं, जहां नज़दीक के अस्पताल तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर का सफ़र करना पड़ता है. अस्पताल तो दूर, यहां हर गांव में सरकारी डिस्पेंसरी तक नहीं है. इसका फ़ायदा झोला छाप डॉक्टर उठाते हैं और लोगों की जान ख़तरे में डालते हैं. ऐसे में अगर किसी को कैंसर जैसी बिमारी हो जाए, तो उस परिवार को दिल्ली- मुंबई जैसे शहर जाना पड़ता है. यहां ख़र्च इतना अधिक होता है कि किसी भी आम आदमी का दिवाला निकल जाए.
साफ़-सफ़ाई
पश्चिमी दिल्ली के मुंडका गांव में मेरा घर है. यहां सफ़ाई तो हो जाती है, लेकिन सफ़ाई करने के बाद जो कूड़ा-कचरा निकलता उसे उठाने में बहुत समय लग जाता है. इसके लिए कई बार ऑनलाइन कंप्लेन की, स्थानीय निगम पार्षद से भी सभी लोगों ने शिकायत की लेकिन इसका कोई स्थाई हल अभी तक नहीं निकला.
स्कूल
हमारे इलाके में प्राइवेट स्कूल तो कदम-कदम पर हैं, लेकिन सरकारी स्कूल सिर्फ़ एक ही है. इसकी भी क्षमता बहुत कम है. इसके चलते आम जनता को प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाना पड़ता है. प्राइवेट स्कूल पढ़ाई के नाम पर किस तरह से लोगों को लूटते हैं, ये भी किसी से नहीं छिपा.
प्ले ग्राउंड
बच्चों के खेलने की जगह तो अब कहीं बची ही नहीं. गलियों में बच्चे खेलते हैं, तो पड़ोसी शोर न मचाने और कहीं और जाकर खेलने की बात करते हैं. स्कूल में भी अब प्ले ग्राउंड ख़त्म होते जा रहे हैं.
ट्रैफ़िक
दिल्ली-एनसीआर में अपनी गाड़ी से कहीं भी जाने के लिए आपको सबसे पहले ट्रैफ़िक नाम की नदी पार करनी होती है. ट्रैफ़िक भी ऐसा, जो लोगों के सिर में दर्द कर दे. कई बार तो सड़कों पर वाहन रेंगते हुए नज़र आते हैं.
पब्लिक टॉयलेट
पहली बात तो ये दिल्ली में बहुत कम पब्लिक टॉयलेट हैं और जो हैं भी, उनकी हालत ऐसी नहीं होती कि आप उन्हें इस्तेमाल कर सकें.
प्रदूषण
दिल्ली के प्रदूषण का हाल किसी से छिपा नहीं है. प्रदूषण के मामले में ये विश्व की राजधानी बन चुकी है. सुप्रीम कोर्ट तक दिल्ली को गैस के चैंबर में रहने जैसा बता चुका है लेकिन फिर भी इस समस्या का भी कोई स्थाई समाधान किसी पार्टी के पास नहीं है.
अपना घोषणा पत्र बना कर नेताओं से सवाल पूछ कर तो देखो, क्या पता आपके इस छोटे से कदम से कोई बड़ा बदलाव देखने को मिले.