गंगा जिसकी पवित्रता अपने आप में एक पैमाना है, आज इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि सारे पैमाने तोड़ कर प्रदूषित नदियों की सूची में शीर्ष पर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने से पहले और बाद में गंगा की सफ़ाई की बातें तो खूब कीं, लेकिन उनकी बातें महज बातें ही रह गईं. केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आश्वासन दिया हुआ है कि गंगा नदी की सफ़ाई सरकार के इसी कार्यकाल में पूरी हो जाएगी, लेकिन गंगा की मौजूदा हालत देखकर तो नहीं लग रहा कि सरकार अपना लक्ष्य हासिल कर पाएगी.

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एनडीए सरकार गंगा की सफ़ाई को लेकर भले ही हमेशा फ्रंट पर रही हो, लेकिन गंगा की सफ़ाई की शुरुआत सबसे पहले साल 1985 में कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने की थी. गंगा की सफ़ाई का काम तो शुरू हुआ, लेकिन 15 साल तक हज़ारों करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी गंगा की हालत जस की तस बनी रही. 2009 में गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी ने एक बार फिर सफ़ाई का बेड़ा उठाया, लेकिन बात नहीं बनी. साल 2015 में मोदी सरकार ने गंगा की सफ़ाई के लिए ‘नमामि गंगे’ परियोजना की शुरुआत की.

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सफ़ाई हो न हो, लेकिन जनता का पैसा पानी की तरह गंगा में बहा दिया गया है. साल 1985 से साल 2000 तक गंगा की सफ़ाई में करीब 1010 करोड़ रुपये और 2014 तक कुल 4,168 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. इस सरकार द्वारा पांच साल के लिए 20 हज़ार करोड़ के करीब बजट जारी किया गया है. पांच साल में हज़ारों करोड़ रुपये खर्च कर के गंगा को स्वच्छ बनाने की तैयारी है, लेकिन सरकार तीन साल में तय किए बजट का केवल 9 प्रतिशत ही खर्च कर पाई है. दावे के सामने गंगा के हालात अब भी पुराने जैसे ही हैं.

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गंगा को बीमार करते हैं ये शहर

कम आबादी और छोटे शहर की श्रेणी में आने वाले 6 शहर ऐसे हैं, जिनके नालों का गंदा पानी गंगा को प्रदूषित कर रहा है. इनमें बबराला, उझेनी, बदायूं, एटा, हरिद्वार और कानपुर शामिल हैं. इन शहरों का सीवेज सीधे गंगा में गिर रहा है. इसके अलावा फ़र्रुखाबाद, मिर्ज़ापुर, मुगलसराय, गाज़ीपुर, सैदपुर, गढ़मुक्तेश्वर, बिजनौर, अनूपशहर और चुनार जैसे और भी शहर हैं, जो गंगा को गंदा कर रहे हैं.

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इस सरकार ने अब तक क्या किया

साल 2014-15 के केंद्रीय बजट में 2,037 करोड़ रुपयों के साथ नमामि गंगे नाम की एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना शुरु की गई, तब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि गंगा की सफ़ाई और संरक्षण पर बहुत बड़ी राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन गंगा नदी की हालत में कोई अंतर नहीं आया. सरकार का ध्यान इस बार कई सालों से नदी में छोड़े जा रहे सीवेज और औद्योगिक कचरे पर गया, जिस कारण नदी की हालत इतनी खराब हुई है. सरकार ने गंगा के किनारे लगी ऐसी फ़ैक्टरियां, जो भारी मात्रा में गंदगी गंगा में छोड़ रही हैं, उन्हें बंद करने का फ़ैसला लिया है. 2500 किलोमीटर लंबी गंगा की सफ़ाई के लिये गंगा के किनारे 118 नगरपालिकाओं में वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाये जाने की घोषणा भी की गई है.

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सबसे प्रभावी कदम

गंगा की दुर्दशा को गंगा के पास जाकर न सिर्फ़ देखा जा सकता है, बल्कि महसूस भी किया जा सकता है. लोगों को येेसमझना होगा कि नदियां मानव जीवन के लिए कितनी उपयोगी हैं. इनका अस्तित्व में रहना हमारे अस्तित्व के लिए ज़रूरी है. इस अभियान में सबसे बड़ी बाधा होगी गंगा में गिरने वाले शहरी और औद्योगिक कचरे को रोकना. ये समस्या हमारी सरकार और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है. एक सर्वेक्षण के अनुसार, गंगा में हर रोज़ 260 मिलियन लीटर रासायनिक कचरा गिराया जाता है, जिसका सीधा संबंध औद्योगिक इकाइयों और रासायनिक कंपनियों से है. सरकार इसे नियंत्रित करने के लिए सीवेज ट्रिटमेंट प्लांट लगाने की योजना बना रही है. मनरेगा के तहत गंगा के घाटों की सफ़ाई, जल परिवहन को बढ़ावा दे कर गंगा को साफ़ करना. सरकार ने गंगा की सफ़ाई की जिम्मेदारी संवेदनशीलता के साथ उठाई हो या नहीं, लेकिन कोर्ट ने गंगा और यमुना को जीवित व्यक्ति के अधिकार ज़रूर दिए हैं.

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गंगा ही नहीं, दूसरी नदियां भी हैं खतरे में

पवित्र जीवनदायिनी नदियां आज कराह रही हैं, दम तोड़ रही हैं. गंगा के अलावा यमुना, घाघरा, बेतवा, सरयू, गोमती, काली, आमी, राप्ती, केन, मंदाकिनी आदि नदियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है. देश में बढ़ते औद्योगिक विकास से भारत की सभी नदियों का अस्तित्व खतरे में है. इन सभी नदियों के दम तोड़ने का कारण औद्योगिक कचरे का नदियों में बहाया जाना और लोगों की नदियों के प्रति असंवेदनशीलता है.

वो देश जिन्होंने साफ़ कर ली नदियां

कुछ ही साल पहले जर्मनी की नदियों में इतनी गंदगी थी कि मछलियां अल्सर से मर रही थीं. आज ये नदियां एकदम साफ़ हैं. जर्मनी की एल्बो नदी के साथ-साथ अन्य नदियां भी काफी प्रदूषित थीं, जिन्हें साफ़ करने के लिए पुरानी फैक्ट्रियों को बंद किया गया. गंदे पानी को बार-बार साफ़ किया गया. नदियों की सुरक्षा के लिए नियम और कानून को सख्ती से लागू किया गया.

लंदन की आबादी बढ़ने के साथ ही टेम्स नदी में भी प्रदूषण बढ़ रहा था. टेम्स नदी की सफ़ाई के लिये समय-समय पर जन अभियान शुरू किये गए. 1958 में मॉडर्न सीवेज सिस्टम की योजना बनाई गई, साथ ही टेम्स नदी के साथ-साथ सड़क बनाई गई और ट्रीटमेंट प्लांट्स लगाए गए.

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इन उदाहरणों से हमें सीखने की ज़रूरत है. सीवर मैनेजमेंट और लोगों में जागरूकता फैला कर नदियों को साफ़ किया जा सकता है.

दुनिया की पांच सबसे साफ़ नदियां

दुनियाभर में पांच ऐसी नदियां मौजूद हैं, जो अपनी स्वच्छता के कारण मशहूर हैं. वहीं, भारत की गंगा और यमुना नदी दुनिया की शीर्ष पांच प्रदूषित नदियों में शामिल हैं.

टेम्स नदी, लंदन: टेम्स नदी दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी है. इसे लंदन की गंगा भी कहा जाता है. इस नदी की कुल लंबाई 346 किलोमीटर है. पहले यह नदी काफ़ी प्रदूषित थी, इसके बाद इसकी सफ़ाई की गई और ये दुनिया की सबसे स्वच्छ नदियों में शुमार की जाने लगी है.

तारा (ड्रिना) नदी, मोंटेनेग्रो और बोस्रिया: दुनिया की दूसरी सबसे स्वच्छ नदी में तारा (ड्रिना) नदी का नाम लिया जाता है. यह नदी मोंटेनेग्रो और बोस्रिया के बीच बहती है. इसकी लम्बाई 78 किलोमीटर है. इसे यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया है.

सेंट क्रोइक्स नदी, अमेरिका: सेंट क्रोइक्स नदी को दुनिया की तीसरी सबसे स्वच्छ नदी है. इसे मिसिसिपी की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है. इस नदी की कुल लम्बाई 272 किलोमीटर है.

टॉर्न नदी, स्वीडन: स्वीडन में टॉर्न नदी को टॉर्नियों के नाम से भी जाना जाता है. यह दुनिया की चौथी सबसे स्वच्छ नदी है.

ली नदी, गुआंग्जी, चीन: दुनिया की सबसे स्वच्छ नदियों में चीन के गुआंग्जी क्षेत्र में बहने वाली ली नदी भी शामिल है. स्वच्छता के मामले में इसका नाम पांचवें नम्बर पर आता है.

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भारत के लिए गंगा सिर्फ़ नदी ही नहीं, जीवनदायिनी भी है. जिसकी बूंद-बूंद लोगों के लिए वरदान है. गंगा जो मन से देवी और तन से पानी है भारत के 40 करोड़ लोगों से सीधे जुड़ी है. गंगा का महत्व मानव जीवन से अधिक जलीय जंतुओं के लिए भी है. गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है. जिससे दर्जनों बीमारियां पैदा होती हैं. गंगा के प्रदूषित होने से कैंसर जैसे खतरनाक रोग से लोगों को संक्रमण का खतरा है. गंगा की सफ़ाई का काम तभी सफल होगा, जब इससे सीधे लोगों को जोड़ा जाएगा. लोगों को यह बताना होगा कि गंगा का अस्तित्व में रहना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है.