यूं तो देश के कई राज्यों में इस साल चुनाव होने जा रहे हैं, मगर पूरे देश की नज़र उत्तर प्रदेश पर है. कहा भी जाता है कि यही एक ऐसा राज्य है, जो किसी भी पार्टी को केंद्र और राज्य में सत्ता का स्वाद चखा सकता है. इस लिहाज़ से यहां का चुनाव बेहद दिलचस्प होता है. हालांकि, आज हम यूपी इलेक्शन के बारे में चर्चा नहीं करेंगे, बल्कि आज हम मेनिफेस्टो के बारे में चर्चा करेंगे. हिन्दी में इसे चुनावी लोभ कहेंगे, तो ग़लत नहीं होगा. सभी पार्टियां चुनाव प्रचार के दौरान जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए लोक-लुभावनी सौगातों की भरमार कर देती है.
कोई ग़रीबी हटाने की बात करता है, तो कोई रोज़गार देने की बात. मगर आज हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि चुनाव चाहे कोई भी हो, मगर मेन मुद्दा हमेशा गौण रहता है. जी हां मेन मुद्दा. देश में कोई ऐसी पार्टी नहीं है, जो पर्यावरण के मुद्दे पर जनता से वोट मांगती हो. दरअसल, पार्टियों के लिए पर्यावरण कभी मुद्दा रहेगा भी नहीं. लेकिन हक़ीक़त यही है कि ये आम जन का मुद्दा है. अगर हमारा वातावरण स्वस्थ नहीं रहा, हमें पानी स्वच्छ नहीं मिला, हवा साफ नहीं मिली तो हम कितने दिन तक इस पृथ्वी पर टिक पाएंगे?
कुछ लिखने से पहले मैं आपको ये वीडियो दिखाना चाहता हूं
ये वीडियो यूपी चुनाव पर आधारित है. सामाजिक संस्था CEED ने इसे बनाया है, जिसमें यूपी के सभी कलाकार वोटर्स से पर्यावरण के मुद्दे पर वोट देने की बात कर रहे हैं. CEED ने यूपी की जनता से इस वीडियो के माध्यम से अपील किया है कि आप उसी उम्मीदवार को वोट दें, जो पर्यावरण के मुद्दे पर बात करता हो.
इस मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता अभिषेक कुमार चंचल कहते हैं कि
ख़ैर, ये एक सराहनीय प्रयास है, जिसका हमें समर्थन करना चाहिए. अच्छा तब लगता, जब कोई राजनीतिक पार्टी अपने घोषणापत्र में पर्यावरण के मुद्दे को तवज्जो देती.
देश में कभी भी पर्यावरण मुद्दा नहीं रहा
चूंकि हम एक विकासशील देश हैं, इसलिए हम अपना विकास पर्यावरण को ताक पर रख कर रहे हैं. ओजोन परतें कमज़ोर हो रही हैं, देश की नदियां नालों में तब्दिल हो चुकी हैं. इतना ही नहीं, ज़हरीली और रासायनिक खादों ने खेतों के द्वारा हमारे शरीर पर असर भी दिखाना शुरु कर दिया है.
वर्तमान सरकार ने पर्यावरण को ध्यान में रख कर एक अलग मंत्रालय भी बनाया है, मगर ये भी एक खानापूर्ति ही है. तमाम प्रोजेक्ट्स बने हुए हैं, मगर असरहीन हैं. 2017 में चुनाव होने हैं, ऐसे में सभी पार्टियां अपनी-अपनी ताल ठोंक रही हैं. मगर मुद्दे अभी भी जात-पात और वंशवाद है. हम कई उदाहरणों द्वारा आपको समझाने की कोशिश करेंगे कि सरकार पर्यावरण के मुद्दे पर कितनी असंवेदनशील है.
देश कई समस्याओं से जूझ रहा है. आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनने में हम अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. ये बात हम भले ही नहीं समझ रहे हों, मगर आने वाला समय अच्छे से समझा देगा. हमें कोशिश करनी चाहिए कि चुनाव में पर्यावण भी एक मुद्दा हो.