रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
गेट पर पहुंची तो Gym वाला वहीं खड़ा था, मतलब फ़ुल टू शाहरूख़ ख़ान, जया बच्चन वाला पल. ख़ैर, 5% उम्मीद लेकर गई थी पर अंदर जाकर मानो दुनिया बदल गई. इतना खुला-खुला Gym… न पसीने की बदबू न ही धक्का-मुक्की का डर. मन तो बना ही लिया था कि यहीं आना है पर चट से हां नहीं करनी चाहिए इसलिए ट्रायल के लिए बात करके आई.
अगले दिन ट्रायल पर गई. अब शुरू होने वाली थी शरीर की असली मज़दूरी. ट्रेनर ने नाम और काम-धाम पूछा ट्रे़डमील पर 5 मिनट के लिए तेज़-तेज़ चलने को कहा और ट्रेडमिल ऑन कर दिया और स्पीड वगैरह बढ़ाने-घटाने का प्रोसेस बताकर चला गया. जैसा की डर था 30 सेकेंड चली ही थी कि कुछ तो हुआ और धड़ाम…
वॉकिंग के बाद आई साईक्लिंग की बारी. ट्रेनर ने 7 मिनट साईक्लिंग करने का निर्देश दिया. तो मैं तो पूरा ‘आला आला मतवाला बर्फ़ी’ फ़ील में साईक्लिंग करने लगी. सच बताऊं बचपन याद आ गया, ग्रैजुएशन के बाद अब जाकर साइकिल चला रही थी. हां ये अजीब लग रहा था कि कहीं पहुंच नहीं रही थी और ठंडी हवा भी महसूस नहीं हो रही थी. दिमाग़ में ‘बर्फ़ी’ गाना बज ही रहा था कि एक शख़्स ने आवाज़ लगाई, ‘हेलो, फ़र्स्ट डे?’ नज़रे घुमाईं तो देखा एक लड़की खड़ी मुस्कुरा रही है. उस वक़्त किसी से भी बात करने का मूड नहीं था, फिर भी मैं मुस्कुरा दी. इतने में मेरा ट्रेनर आ गया और कुछ ज़्यादा ही प्यार से उससे बातें करने लगा. मेरे दिमाग़ ने कहा, ‘ओह… तब वो वीडियोज़ वाली बात सही होती है.’
सोचते-सोचते साइकिल से उतरी ही थी कि एक बंदे की ज़ोर-ज़ोर आवाज़ें आने लगी, मानो शरीर की सारी एनर्जी निकल रही हो. हां तो वो जनाब डंबल उठा रहे थे. ट्रेनर ने एक दूसरी मशीन की तरफ़ इशारा करते हुए उसे चलाने को कहा. ये मशीन के साथ मेरी पहली मुलाक़ात थी, ट्रेनर ने उस पर भी 5 मिनट तक चलने को कहा. मज़ेदार मशीन थी. हाथ और पैर दोनों की कसरत होती थी.
मतलब इससे ज़्यादा बेइज़्ज़ती हो सकती है भला? पहला दिन और 1 नहीं 2 हरकतें? ख़ैर जैसे-तैसे सब ख़त्म हुआ और ट्रेनर ने घर जाने बोल दिया. 2 बार गिरकर अपनी बेइज़्ज़ती करवाने के बाद भी Gym से निकलते हुए मुझे अलग सी फ़्रेशनेस महसूस हो रही थी. घर जाकर मैंने पक्का वाला तय कर लिया कि खाने से प्यार थोड़ा कम करके वर्जिश से मोहब्बत करने की कोशिश करूंगी.
मेरी कोशिश रहेगी कि ज़िन्दगी में ये अच्छा बदलाव जारी रख सकूं.