सांड की आंख का टीज़र आज ही रिलीज़ हुआ है. फ़िल्म की कहानी दो बुज़ुर्ग शूटर दादियों की ज़िन्दगी पर बेस्ड है.
फ़िल्म का बैकग्राउंड उत्तर प्रदेश का है. टीज़र भी ज़ोरदार बना है और ज़ाहिर है कि फ़िल्म से उम्मीदें भी हैं. अनुराग कश्यप फ़िल्म के क्रिएटिव प्रोड्यूसर हैं. फ़िल्म में शूटर दादियों (चंद्रो और प्रकाशी तोमर) के रोल भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू निभा रही हैं. एक दर्शक के तौर पर आपको फ़िल्म, किरदार, उसकी कहानी में कोई कमी नहीं दिखती. बस एक बात दिल खट्टा कर देती है.
फ़िल्म में कहानी दो बुज़ुर्ग शूटर दादियों की है, तो इसके लिए दो यंग एक्ट्रेस को बूढ़ा दिखाने के बजाय, किसी बड़ी उम्र की एक्ट्रेस को नहीं लिया गया?
इस बात में कोई शक़ नहीं कि तापसी और भूमि अच्छी एक्टर हैं. उनकी एक्टिंग में कोई कमी आपको शायद फ़िल्म में दिखेगी भी नहीं लेकिन इतने अच्छे कॉन्सेप्ट के लिए आप आसानी से कोई दूसरा सीनियर कलाकार चूज़ कर सकते थे. ऐसा भी नहीं है कि हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐसे कलाकारों की कमी हो.
हमने ‘बधाई हो’ में सुरेखा सीकरी और नीना गुप्ता को जानदार Performance देते हुए देखा है. हमने शबाना आज़मी को ऐसे रोल्स करते देखा है, हमने तबु को सालों से ख़ुद को तराशते हुए देखा है. सीमा बिस्वास, रत्ना पाठक शाह को देखा है. ‘न आना इस देस लाडो’ में अपने किरदार में जान डालने वाली मेघना मलिक को कैसे भूल सकते हैं हम?
आप ये तर्क दे सकते हैं कि फ़िल्म के कुछ हिस्सों में जब इन महिलाओं के जवानी के दिन शूट किये गए होंगे, तो ये दोनों एक्ट्रेस उस लिहाज़ से बेहतर होंगी. आपकी बात एक हद तक सही है लेकिन इसके लिए आप इन दोनों के केवल ‘जवानी’ वाले सीन शूट कर सकते हैं. जब किसी फ़िल्म के कॉन्टेंट पर इतनी मेहनत की जाए, उसके एक-एक एक्टर को चुना जाए और उसमें ऐसी एक Opportunity को छोड़ दिया जाए, तो बुरा लगता है.
कुछ ऐसा ही मैरी कॉम की बायोपिक के साथ भी हुआ था. फ़िल्म अच्छी थी, प्रियंका की मेहनत भी दिखी लेकिन ये रोल नॉर्थ ईस्ट की किसी एक्ट्रेस को दिया जा सकता था.
‘सांड की आंख ‘ इस साल तक आ जाएगी. यकीन है फ़िल्म चल भी जाएगी और सभी की एक्टिंग पसंद की जाएगी. लेकिन फ़िल्म देखते हुए मन में हमेशा के लिए एक मलाल रह जाएगा कि हम किसी सीनियर एक्ट्रेस को लेकर एक स्टेटमेंट दे सकते थे. हिंदी सिनेमा में कुछ अच्छे बदलाव आ रहे हैं, ये भी एक Welcome Change होता.