बीते दो दिन पहले सैफ़ अली ख़ान और करीना कपूर एक बेटे के माता-पिता बने, पर हमारे तथाकथित देशभक्तों को ख़ुशी से ज़्यादा इस बात का गम था कि उन्होंने अपने बेटे का तैमूर रखा. इस तैमूर नाम को उन्होंने जालिम आक्रमणकारी तैमूर से जोड़ दिया, जिसने इतिहास में हिंदुस्तानियों का बड़ा पैमाने पर क़त्लेआम कराया था. सोशल मीडिया पर भी तथाकथित देशभक्तों का ज़मीर जाग गया और उन्होंने जम कर सैफ़-करीना को कोसना शुरू कर दिया.
खैर हमें इससे कोई मतलब नहीं कि इस नाम से किसे और क्यों परेशानी है, क्योंकि ये तो समाज का नियम है कि आपके हर काम पर कुछ लोग आपके साथ खड़े होंगे और कुछ टांग अड़ाने की कोशिश करेंगे. इस सब की टेंशन छोड़ कर आज हम ‘तैमूर’ नाम के इतिहास और इसके इर्द-गिर्द की हक़ीक़तों को जानने की कोशिश करेंगे.
सबसे पहले आते हैं नाम पर. इसे भारतीय संस्कृति का इतिहास ही कहिये कि हमारी कोशिश रहती है कि हम बच्चों के नाम, धर्म या ऐसी चीजों से जोड़ कर रखने की कोशिश करते हैं, जिसका पर्याय किसी शक्ति से हो.
अब जैसे निशांत को ले लीजिये, देश में न जाने कितने ही लड़कों का नाम निशांत होगा, इसका मतलब होता है निशा का अंत अर्थात सवेरे की शुरुआत. ऐसा ही कुछ सैफ़-करीना ने भी अपने बेटे के लिए सोचा होगा, जो उन्होंने अपने बेटे का तैमूर रखा, जिसका मतलब होता है ‘लोहा’.
अब इतना तो आप भी जानते होंगे कि लोहे का इस्तेमाल किस तरह से किया जाता है. अगर इंसान चाहे तो इससे हल बना कर ज़मीन से हरियाली पैदा कर सकता है और चाहे तो तलवार बना कर खून की नदियां बहा सकता है.
अब हमारे तथाकथित देशभक्त कहेंगे कि बच्चों का नाम रखने से पहले इतिहास को भी देख लेना चाहिए, तो आपको याद ही होगा कि निर्भया का बलात्कार करने वाले आरोपी में से एक का नाम ‘राम’ भी था.
बात साफ़ है कि इंसान की पहचान उसके नाम से नहीं, बल्कि उसके काम से होती है. यही वजह है कि रामायण के आखिर में खुद राम, लक्ष्मण को प्रचंड विद्वान और चारों वेद के ज्ञाता रावण को प्रणाम करने के लिए कहते हैं. बात करते हैं तैमूर के कत्लेआम की, तो दोस्त ये उसके कर्म ही थे, जो लगातार 35 साल जीतने के बावजूद वो 1405 में एक अपाहिज की मौत मरा.