दुनिया के दिलचस्प और रहस्यमयी विचारों में धर्म को भी शुमार किया जा सकता है. धर्म के प्रमुख तौर पर दो आयाम हैं. एक है संस्कृति, जिसका संबंध बाहरी दुनिया से है. दूसरा है अध्यात्म, जिसका संबंध अंदरुनी और आंतरिक विचारों से है. एक अलग परिपेक्ष्य में अगर देखा जाए तो उसी धर्म को विचारणीय समझा जाता है जो God Centric हो. कुछ विशेष विचारों के ज़रिए करोड़ों लोगों को अपना मुरीद बना लेने में धर्म सफ़ल रहा है. धर्म है तो प्रतीक भी होंगे ही. ज़्यादातर धर्म प्रतीकवाद से जुड़े हुए होते हैं. इनमें सबसे प्रमुख होती हैं तस्वीरें. किसी भी साधारण घर में आपको देवी-देवताओं की मूर्तियां मिल जाएंगी. मानने वालों का कहना है कि इन तस्वीरों से आत्मबल मिलता हैं.
घर में रखी ईश्वर की ये तस्वीरें भले ही आपकी अंदरूनी शांति के लिए ज़रूरी हों, लेकिन क्या आपने सोचा है कि दुनिया भर के प्रमुख धर्मों की महागाथाओं की खास तस्वीरों का महत्व क्या है? दुनिया में बेहतर होती तकनीक के ज़रिए धर्म का ग्लैमराइज़ेशन भी हुआ है और इसके चलते हम कई Iconic तस्वीरों के साक्षी बने हैं. लेकिन इन तस्वीरों का महत्व और प्रासंगिकता आखिर क्या है?
रथ पर भगवान कृष्ण के साथ सवार अर्जुन, महाभारत
महाभारत की ऐतिहासिक गाथा में छिपे संदेश को दरकिनार नहीं किया जा सकता. हिंदू धर्म के महाकाव्य का ये संदेश दरअसल हमारी कमियों और खासियतों के बीच होने वाला संघर्ष है. इस संघर्ष में भगवान कृष्ण, आत्मा या कहें ‘Higher intellect’ का नेतृत्व करते हैं और वे हमेशा से ही धर्म यानि मानवता के रास्ते की पैरवी करते आए हैं. ये संघर्ष हमेशा से जारी रहा है और आज भी जारी है.
ये तस्वीर हमारे मस्तिष्क और इंद्रियों को प्रशिक्षित करने का ज़रिया हो सकती है. इस तस्वीर में रथ शरीर है. इस तस्वीर में यात्रा करने वाला अर्जुन एक जीव है. सारथी कृष्ण, आत्मा है. ये सारथी, कौरवों (बुराइयां) और पांडवों (अच्छाइयां) के बीच चलने वाले युद्ध में इंसान का मार्गदर्शक होता है. तस्वीर में मौजूद घोड़ा इंद्रियां हैं, यानि शरीर के वे अंग (आंख, कान, नाक, जीभ) जिनसे आप चीज़ें महसूस करते हैं. घोड़े की लगाम मस्तिष्क है. मस्तिष्क को इंंद्रियों के रूप में मौजूद घोड़े पर लगाम कसनी होती है. इस मार्ग पर मनुष्य का ध्यान भटकाने के लिए ढेरों लोभ-लुभावनी वस्तुओं की मौजूदगी होती है.
अगर आप अपने लिए भगवान का साथ चाहते हैं और उन्हें अपना मार्गदर्शक बनाना चाहते हैं, तो आपको ये सुनिश्चित करना होगा कि आप दिव्य पथ का रास्ता चुनें. आपको धर्म का मार्ग अपनाना होगा, क्योंकि जहां धर्म है, वहीं भगवान है. इस रथ को आपको दिव्य पथ यानि धर्म के रास्ते पर ले जाना होगा. इसे आदर्श और आत्मज्ञान की दिशा में ले जाना होगा. अगर ये घोड़े थके हुए हों, रास्ते को ठीक से न देख पा रहे हों और अगर उनकी मंज़िल दूसरी हो तो आपके मार्ग में कई रुकावटें आ सकती हैं.
भगवत गीता को मोक्ष तक पहुंचने का ज़रिया माना गया है. ज़िंदगी में शांति और ज्ञान की प्राप्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है. हालांकि इस दुनिया में हम अकेले हैं और हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होती है, लेकिन हमारी आत्मा के सारथी कृष्णा अपने अंदर की कमियों के साथ संघर्ष में साथ देते हैं.
बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे महात्मा बुद्ध, बौद्ध धर्म
महात्मा बुद्ध का जन्म के समय नाम था ‘सिद्धार्थ’. वे एक हार्ड कोर अस्तित्ववादी और शून्यवादी थे. उनके पैदा होने से पहले भविष्यवाणी भी हुई थी कि वे या तो एक विख्यात राजा होंगे या मोह-माया की दुनिया से दूर लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाएंगे. एक राजा के घर में पैदा हुए सिद्धार्थ चाहते तो पूरी उम्र ऐशो-आराम और शानो-शौकत में गुज़ार सकते थे, लेकिन ज़िंदगी के प्रति उत्सुकता ने उन्हें एक संत बना दिया. ज़िंदगी के असल मतलब की खोज को लेकर सालों-साल संघर्ष के बाद ही वे इस बोधि वृक्ष के नीचे आकर बैठ गए थे.
उन्होंने प्रण कर लिया था कि वे इस जगह को तब तक नहीं छोड़ेंगे, जब तक उन्हें ज़िंदगी का असली मार्ग नहीं मिल जाता. बोधि वृक्ष के नीचे वे ध्यान की मुद्रा में 49 दिनों तक बैठे रहे. वे तकलीफ़ों, परेशानियों से मुक्ति के उपाय को लेकर प्रतिबद्ध थे. महात्मा बुद्ध का ध्यान भटकाने के लिए ‘मारा’ नाम के शैतान ने उन्हें कई प्रलोभन देने चाहे, ‘मारा’ चाहता था कि सिद्धार्थ अपने बारे में सोचने लगें और उनका ध्यान भंग हो जाए, लेकिन बुद्ध की अच्छाइयों ने उनके दिमाग को भटकने नहीं दिया.
ईशु मसीह को सूली पर लटका देने वाली मार्मिक तस्वीर, ईसाई धर्म
जीसस को सूली पर चढ़ा देने के इस मार्मिक चित्र से सभी वाकिफ़ हैं. हालांकि कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि जीसस की मृत्यु सूली पर चढ़ने से नहीं हुई. रोमनों द्वारा सूली पर चढ़ाए जाने के बावजूद वे बच गए थे और उनका बाकी जीवन भारत में बीता. हालांकि ईसाई धर्मगुरु इस बात से इंकार करते हैं कि ईशु मसीह कभी भारत आए थे.
एक पारंपरिक तरीके की जगह अगर जीसस की इस तस्वीर को अलग नज़रिए से देखा जाए, तो इसका राजनीतिक पहलू जान पड़ता है. जीसस को अथॉरिटी यानि प्रशासन ने अपने रास्ते से हटवाया. इसका एक कारण हो सकता है यीशु मसीह यानि जीसस का भगवान में अद्भुत विश्वास होना. इस कारण से वे उस समाज के ‘Radical Critic’ कहे जा सकते थे. जीसस को दरअसल इस सिस्टम ने मार डाला. जीसस की मौत दरअसल एक बड़ा उदाहरण है कि फ़ासीवाद स्तर का Domination system अक्सर अपने खिलाफ़ बोलने वालों को खत्म कर देता है.
इस क्रॉस का एक निजी और व्यक्तिगत पहलू भी है. यह तस्वीर आपकी ज़िंदगी में होने वाले सकारात्मक परिवर्तन का प्रतीक भी है. ये तस्वीर दरअसल आपके आध्यात्मिक, साइकोलॉजिकल परिवर्तन का प्रतीक है. एक ऐसा बदलाव जहां आप एक नई परिभाषा और एक उच्च चेतना यानि ‘Higher consciousness’ में मौजूद होंगे.
ध्यान मुद्रा में बैठे महावीर, जैन धर्म
ये तस्वीर महावीर की है. जैन धर्म और बौद्ध धर्म में काफ़ी समानताएं हैं. जहां बौद्ध धर्म महात्मा बुद्ध की ज़िंदगी से प्रेरित है, वहीं जैन धर्म का केंद्र महावीर का जीवन और उनके विचारों से प्रेरित है. बौद्ध धर्म का मकसद जहां ज्ञान की प्राप्ति और मोक्ष है, वहीं जैन धर्म के कई विचार अहिंसा और आत्मा की शुद्धि से जुड़े हैं.
इस्लाम धर्म
इस्लाम का केंद्र एकेश्वरवाद यानी एक अल्लाह का सिद्धांत रहा है. इस धर्म में अल्लाह के चित्रों और मूर्तियों का कोई स्थान नहीं है. हालांकि इस्लामी धार्मिक ग्रंथ कुरान में तस्वीर या मूर्ति बनाने पर प्रतिबंध का ज़िक्र ही नहीं है. अगर प्रतिबंध है तो किसी चित्र या मूर्ति की पूजा करने पर. इस्लाम के जानकारों के मुताबिक, जो बहुआयामी हो, जिसका कोई आदि और अंत न हो और जिसके जैसा कोई न हो, ऐसे सर्वशक्तिमान को चित्र या मूर्ति के सीमित दायरे से देखा-समझा नहीं जा सकता.
हिंदुओं का महाकाव्य, रामायण
यह तस्वीर भगवान श्रीराम के आदर्शों को हमारे सामने पेश करती है. श्रीराम ने अयोध्या छोड़ी, एक शानो-शौकत भरी ज़िंदगी की जगह 14 साल का वनवास चुना, लेकिन धर्म और आदर्श का साथ नहीं छोड़ा. यह दरअसल अच्छाई, बुराई और धर्म और अधर्म के निरंतर टकराव की गाथा है. ये टकराहट मनुष्य के सामने आज भी है, केवल उसका रूप बदल गया है.
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को उनके गुरु, उनके पिता, यहां तक कि उनकी माता ने भी धर्म मर्यादा भंग करने का अनुरोध किया, परंतु श्रीराम ने मर्यादा कभी भंग नहीं की. वह हमेशा ही धर्म की रक्षा करते रहे.