स्कूल के लिए जब मैं टाइम पर नहीं उठती थी, तो मम्मी बस एक लाइन मारा करती थी और मेरा सारा आलस गायब हो जाता था. वो लाइन थी, ‘जब मैं स्कूल जाती थी… मम्मी जैसे ही ये बोलती , मुझे पता था मेरी शामत आने वाली है. मैं जल्दी से स्कूल की ड्रेस पहनती, शूज़ ढूंढती… बैकग्राउंड में तब भी मम्मी का रेडियो चलता रहता था, ‘बेटा तेरी उम्र में मैं दो-दो पहाड़ क्रॉस कर के स्कूल जाती थी. वापस आकर घर का काम भी करती थी और नाना जी की हेल्प भी.’ इतने सालों में मुझे आगे की सभी Lines रट चुकी हैं.

मम्मी-पापा के इन एवरग्रीन डायलॉग्स को Avoid करने वाली सिर्फ़ मैं नहीं हूं, मेरी पूरी Generation है. आज मुझे इसी Generation से बात करनी है. ये वो Generation है, जो अपनी पूरी सैलरी शॉपिंग, पार्टी और खाने-पीने में उड़ाना Cool समझती है. वो Generation, जो बड़े मज़े से बताती है कि उसे खाना बनाना नहीं आता. और वो Generation, जिसे लगता कि उसके जीवन के Struggles सबसे बड़े हैं. मैं भी इसी Generation का हिस्सा हूं और आप सभी से ये कहना चाहती हूं कि जिन्हें हम लोग Struggle समझने की ग़लती करते हैं, उन्हें स्ट्रगल नहीं कहते.
ख़ुद की आरामदायक ज़िन्दगी को Life Struggle का नाम देना बंद कीजिये!

माना हम अपने छोटे शहरों से, अपने घरवालों को छोड़ कर बड़े शहर में नौकरी कर रहे हैं, लेकिन ये Struggle नहीं है. ये आपकी, मेरी या किसी तीसरे इंसान की हकीक़त है.

सुबह ऑटो वाले के साथ पैसों को लेकर बहस को अगर आप स्ट्रगल समझते हैं, रात को देर तक किसी शो के सारे एपिसोड देख कर सुबह कॉलेज लेट जाने को अगर आप स्ट्रगल समझते हैं या फिर Month End में सिर्फ़ Maggi से गुज़ारा चलाने को अगर आप स्ट्रगल समझते हैं, तो ज़रा अपने मुंह पर ज़ोर से एक मग पानी का डालिए! ये स्ट्रगल नहीं है. ये आपके आलस, आदतों का नतीजा है, जिसे आप ज़िन्दगी समझ कर जी रहे हैं.

प्राइवेट नौकरी करने वाली हमारी आधी जेनरेशन ऑफ़िस जाना भी स्ट्रगल समझती है. उन्हें Boss की डांट सुनना स्ट्रगल लगती है और जब वो उस Pressure झेल नहीं पाते, तो आसानी से कह देते हैं, ‘I Need A Break’. यहां मैं भले ही Old School तर्क दूं, लेकिन सुविधा के इस ज़माने में स्ट्रगल कम ही लोगों की झोली में गिरता है.

हम में से आधे तो खाना भी डिलीवरी आउटलेट और Maid के भरोसे खा रहे हैं. अगर ये दोनों बंद हो जाएं, तो ये न जाने कैसे ज़िंदा रहेंगे. आप सोचिये आप अपने हर काम के लिए एक इंसान पर Dependent हैं. चाहे वो खाना हो, चाहे आपके कपड़े धुलना हो या आपका रूम साफ़ करना और आप इसे Cool समझते हैं? ऐसा नहीं है कि दुनिया में लोग मेड नहीं रखते हैं, लेकिन उन पर इस हद तक निर्भर हो जाना कि आप एक काम भी न कर पाएं ग़लत है.

हमारे लिए शादी मुसीबत है, एक नया पड़ाव नहीं. इसकी वजह शादी न करने का मन नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी से भागना है. हम किसी भी तरह की ज़िम्मेदारी से भागना चाहते हैं और ख़ुद को Lost Soul कह कर दोस्तों के बीच Popular होने की कोशिश करते हैं. शायद यहां पर मुझे मां-बाप की वो बात बिलकुल सही लगती है, कि जब किसी को सब कुछ कर के दो, तो उसे उस चीज़ की कद्र नहीं होती, वो उल्टा उसी में कमियां निकालने लगता है.
ख़ुद को Modern कहलाने वाले हम लोग अगर West के लोगों से अपनी तुलना कर रहे हैं, तो ज़रा अपने किसी ऐसे दोस्त से बात करना जो किसी दूसरे देश में रह रहा हो. उनके बच्चे न तो सुबह जल्दी उठने को ‘Old School’ समझते हैं और न ही साइकिल रिपेयर करने को छोटा काम. हम उनकी नक़ल कर तो रहे हैं, लेकिन अपनी Convenience के हिसाब से.
भीड़ का हिस्सा बनने के लिए आप ग़लत को सही कह सकते हैं, मैं नहीं. मेरे लिए लिए ग़लत Cool नहीं है और न ही मेरी आसान ज़िन्दगी स्ट्रगल से भरी हुई.
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