सुबह उठ कर जब ब्रश कर रही होती हूं, तो शीशे में ख़ुद को घूरने की आदत है. घूरते हुए ध्यान माथे पर जाता है, यहां रोज़ By Default लाल कुमकुम लगा हुआ दिखता है. कौन लगाता है ये कुमकुम?
मम्मी
उनके रूटीन में है पूजा करना. आधा घंटा पूजा करने में उन्हें सुकून मिलता है. पापा भी पूजा करते हैं, लेकिन गिनती के 2 मिनट. पूजाघर के सामने गए, हाथ जोड़े, 10 सेकंड के लिए घंटी बजाई और Free.
मैं और मेरी बहन पूजा नहीं करते. मेरे पास टाइम नहीं और उसे भगवान में विश्वास नहीं.
हम सभी अपनी-अपनी जगह धार्मिक हैं. ये हमारा Faith है. मेरा Faith कहता है कि कोई है, जो ये ज़िन्दगी चला रहा है. मेरी मां के लिए वो Faith ‘भगवान’ है. पापा के लिए Faith, मम्मी की ख़ुशी है. मेरी बहन के लिए Faith किसी को न मानना है.
यही तो कहता है न धर्म?
ऐसा ही होना चाहिए न?
लेकिन ऐसा है नहीं!
अगर मैं यही बात किसी सोशल मीडिया Platform पर लिख दूं, तो मुझ पर या तो अधार्मिक होने के आरोप लगेंगे, या मेरे मां-बाप को कोसा जाएगा, कि इन्होंने इसे ढंग की परवरिश नहीं दी. धर्म का नाम सुनते ही सब इसके पैरोकार हो जाते हैं. सब ज्ञानी बने फिरते हैं कि उनका धर्म, दूसरे से बड़ा है. और हां:
‘पाकिस्तान चले जाओ’ वाला Template तो भूल ही गयी. एक-दो बार वो भी बोल दिया जाता है. लेकिन मैं ये Facebook या Twitter पर नहीं लिखूंगी, जानते हैं क्यों?
क्योंकि धर्म एक Sensitive मुद्दा है!
जो दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ होनी चाहिए थी, आज वो सबसे संवेदनशील चीज़ बन गयी है. ऐसा क्यों? हमने ऐसा क्या किया है कि कोई भी हमारे धर्म के ऊपर कुछ बोलता है, तो हम भड़क उठते हैं. मेरी सोच से अलग किसी ने मेरे धर्म के बारे में कुछ बोला, तो कैसे बोला? क्या मेरा धर्म, मेरी श्रद्धा, मेरा Faith इतना हल्का है कि किसी के बोलने भर से वो ओछा हो जाएगा?
ये तो वही बात हो गयी कि मेरी Shirt किसी को पसंद नहीं आई, तो मैंने बदल दी. क्यों बदलूं मैं Shirt और कब तक बदलूंगी? एक न एक दिन तो थक कर बैठूंगी कि भाई बोल लो. मुझे ये ही Shirt पसंद है, तुम्हें नहीं पसंद तो मैं क्या करूं?
जब हम बड़े हो रहे थे, तो हमें सभी धर्मों की इज्ज़त करना सिखाया गया था. ये नहीं सिखाया गया था कि फ़लाने का धर्म गंदा है और हमारा अच्छा.
लेकिन आगे आने वाली Generation के लिए हमने धर्म का अर्थ बदल दिया. 20 से 35 साल की उम्र में ऐसे कितने लोग होंगे, जो ये कहते हैं कि वो बिलकुल भी धार्मिक नहीं हैं. क्यों? क्योंकि उनके सामने धर्म सिर्फ़ ख़ून-खराबे, छल-दिखावे, ख़ुद को ऊपर दिखाने के रूप में सामने आया है. जिस धर्म को प्यार, शान्ति और सौहार्द का ज़रिया बनना था, वो आज आपसी रंजिश की वजह बन गया है.
फ़िल्मों में ज़रा सी आपके धर्म के बारे में बात हुई, तो आप आहत हो गए. क्योंकि हमें लगता है कि हमारे धर्म के ऊपर सिर्फ़ हमारा अधिकार है. उसके बारे में कोई कुछ बोल गया, तो कैसे बोल गया.
हाल ही में Immortals of Meluha और Naga Trilogy लिखने वाले Bestseller ऑथर, अमीश त्रिपाठी से मुलाक़ात हुई थी. उन्होंने एक बड़ी सटीक बात कही कि रामायण में कुछ अच्छे Characters थे, कुछ बुरे. इन पात्रों ने कुछ अच्छी बातें कही, कुछ बुरी. क्या आप सिर्फ़ रामायण को उन बुरी बातों से जज कर लेंगे? नहीं! आप उससे एक अच्छा मेसेज लेना चाहेंगे. भले ही ये बात उन्होंने किसी दूसरे सन्दर्भ में कही थी, लेकिन आज के माहौल पर बिलकुल सटीक बैठती है.धर्म क्या है?
क्या धर्म इंसानियत नहीं है? क्या धर्म किसी दूसरे इंसान की मदद करना नहीं है? क्या धर्म किसी रोते हुए को हंसाना, किसी भूखे का पेट भरना नहीं है? अफ़सोस, नहीं है. कितनी अजीब बात है न कि धर्म की पहचान आज रंगों से होती है. भगवा होगा तो हिन्दू होगा, हरा होगा तो पक्का इस्लाम. कोई ये बात नहीं करता कि धर्म की पहचान अच्छी सोच से होनी चाहिए.
जिनकी दुकान धर्म के नाम पर भड़काने से चलती है, वो कभी इसे बंद नहीं करेंगे. उन्हें पता है कि ज़रा सा कुछ किसी धर्म के खिलाफ़ बोलेंगे, तो तलवारें निकालने वाले यूं मिल जाएंगे. ये लोग कहीं और से नहीं आये, हम में से ही हैं. और ये Business चलता रहेगा.
कितना जानते हैं हम धर्म को?
मैं एक बहुसंख्यक हिन्दू ब्राह्मण हूं लेकिन मुझे अपने धर्म से जुड़ी कई धार्मिक किताबों के बारे में नहीं पता. मुझे नहीं पता कि गीता के कौन से श्लोक में कौन सी बात कही गयी है. मुझे नहीं पता कि नवरात्र के व्रत असल में क्यों रखे जाते हैं. लेकिन जैसे ही कोई मेरे धर्म के बारे में बोला, तो मैं ग्यानी बन जाउंगी. मारने को तैयार रहूंगी उसे. मेरे धर्म ने मुझे क्या शिक्षा दी है, ये जाने बिना उस बहस का हिस्सा बन जाऊंगी, जिसका कोई निष्कर्ष नहीं निकलने वाला. किसलिए? क्योंकि मेरे धर्म का झंडा ऊंचा रहे!
नास्तिक न बन जाऊं
मैं मानती हूं कि कोई ताकत है, जो इस दुनिया को चला रही है. कोई तो है, जो लाख ग़लत होने के बाद भी इस दुनिया में प्यार रखे हुए है. वो कोई शक्ति है, जिसके आगे Logic नहीं चलता, जिसके आगे Scientists के दावे खोखले पड़ जाते हैं. मैं इसी विश्वास के साथ ये ज़िन्दगी जीना चाहती हूं और इसी सोच के साथ मरना भी चाहती हूं. लेकिन इस वक़्त धर्म के नाम पर जो भी हो रहा है, वो मुझे और मुझ जैसे कईयों को किसी पर विश्वास न करने देने के लिए मजबूर कर रहा है. वो मेरे जैसे कईयों की ऐसी भीड़ जमा कर रहा है, जिनकी आस्था का कोई स्रोत नहीं है.
मैं नहीं चाहती कि दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ से मैं नफ़रत करने लगूं.