‘खाना बनाना नहीं सिखेगी तो ससुराल वालों के ताने सुनन पड़ेंगे.’


‘ये कैसी रोटियां बनाई हैं, नाक कटा देगी ससुराल जाकर.’ 

‘लड़कियों को तो खाना बनाना आना चाहिए.’  

कई लड़कियों को अपने घरवालों, रिश्तेदारों और यहां तक कि बॉयफ़्रेंड से भी ये सुनने को मिलता है. बॉयफ़्रेंड इसलिए लिखा क्योंकि मेरी कुछ सखियों को उनके बॉयफ़्रेंड्स ने ऐसे वाक्य कहे थे, ‘मुझे ने राजमा-चावल बहुत पसंद है, मम्मी से रेसिपी लेकर आया हूं, बनाना सीख लो.’


ख़ैर, अब आप कहेंगे कि ऐसा सबके साथ नहीं होता. जी हां, बिल्कुल नहीं होता. सभी घरों में भी नहीं होता और न ही सभी के बॉयफ़्रेंड ऐसा बोलते हैं. अगर समाज की बड़ी छवि की बात करें तो हक़ीक़त यही है.  

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अगर एक लड़की की बात हो रही हो तो उसकी सैंकड़ों क्वालिटीज़ में से एक ‘खाना बनाना आना चाहिए’ ज़रूर होनी चाहिए.


मुझे न ये बात समझ नहीं आई. मेरी मां ने मुझसे ‘खाना बनाना सीख वरना शादी कैसी होगी?’ टाइप बात नहीं कही. पर मैंने अपने आस-पास 7-8 साल की लड़कियों के खौलती चाय से जले हाथ और चावल के माड़ से जले पांव देखे हैं. मेरे घर पर मुझ पर खाना बनाना सीखने के लिए प्रेशर नहीं डाला गया तो क्या हुआ अगल-बगल की आंटियां कम थोड़ी ही होती हैं. उन लोगों ने मुझे प्यार से पुचकार कई बार खाना बनाना सीखने को कहा है. और ये तब की बात है जब मैं स्कूल में ही थी.  

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मैंने तो कुछ आंटियों को ये भी कहते सुना है कि वो सुबह उठकर कभी-कभी जानबूझकर खाना नहीं बनाती ताकि लड़कियां ख़ुद कुछ न कुछ बनाएं , भले ही मैगी बनाएं पर बनाएं! ज़ाहिर सी बात है ये उन आंटी के पति की ग़ैरमौजूदगी में ही होती होगी.


सबसे मजे़ की बात ये आंटियां अपने बेटों को एक ग्लास पानी भी ख़ुद से लेकर पीने नहीं देती थीं, खाना बनाना सीखने के लिए कहना तो दूर की बात है. ख़ैर ये तो उनका ‘निजी मामला’ है. 

शादी से पहले लड़की को खाना बनाना सिखाने की अगर मम्मी-चाची, पास की आंटियों की साज़िश फे़ल हो जाए बाक़ायदा ऐसे कोचिंग सेंटर हैं जहां ‘3 महीने में हर तरह की डिश बनाना’ सिखाया जाता है. सुसरालवालों को शिकायत का मौक़ा न देने की हर संभव कोशिश की जाती है.  

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हमारे यहां की फ़िल्मों और सीरियल्स ने भी इस सोच को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. हम साथ-साथ है का ये डायलॉग-


‘राम किशन जी, जहां खाने की टेबल पर हंसी-ठिठोली होती हो 
जहां घर की लेडिज़ और बच्चियां, हमें अपने हाथों से प्यार से खाना खिलाएं, वही घर, घर है.’  

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कई सीरियल्स में भी लड़कियों को खाना बनाने की ट्रेनिंग लेते हुए दिखाया गया है.


खाना… मेरी समझ में एक ऐसी चीज़ है जिसके बिना जी पाना नामुमकिन है. जब हर एक इंसान की ये बेसिक ज़रूरत है तो इस हिसाब से तो हर एक को अपना खाना बनाना आना चाहिए. लॉजिकल बात है कि नहीं? जब सबकुछ क्लियर है तो ये ‘लड़कियों के DNA में खाना बनाना होता है?’