हाल ही में एक BSF जवान ने अपने वीडियो में ये कह कर सनसनी मैच दी थी कि पैरामिलिट्री और सेना के राशन में बहुत फ़र्क होता है. ये फ़र्क उनकी पेंशन, सैलरी, सालाना मिलने वाली छुट्टी और बाकी सभी सुविधाओं में भी होता है. इसके बाद कुछ और जवानों ने भी इस तरह के भेदभाव को बताने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया.

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इन वीडियोज़ के सामने आने के बाद आर्मी चीफ़, जनरल रावत का स्टेटमेंट भी आया कि अगर कोई जवान अपनी परेशानियों को सेना में न बता कर सोशल मीडिया के ज़रिये सार्वजनिक करने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ़ एक्शन लिया जाएगा.

भारत जैसे देश में, जहां सेना लगभग हर छोटे-बड़े सिक्योरिटी दस्ते का हिस्सा है, वहां ऐसी असंतुष्टि की बातें आना, सभी के लिए हैरान कर देने वाला है. क्योंकि लगभग हर भारतीय सेना पर बहुत गर्व करता है और उनके काम को सर्वोच्च देशसेवा से जोड़ कर देखता है. हमारे ज़ेहन में सेना ऐसी साहसी और परमवीर सैनिकों की संस्था है, जो विषम से भी विषम परिस्थितियों में देश की सुरक्षा करना और दुश्मन को मात देना जानती है.

लेकिन इस परसेप्शन (छवि) से इतर एक सैनिक की निजी ज़िन्दगी भी है, उसका रूटीन है और शायद इस बारे में हमें ज़्यादा नहीं पता. एक जवान की जब हम बात करते हैं, तो वो सेना की Hierarchy में सबसे निचले पॉइंट पर होता है. उससे ऊपर कई अफ़सर और पोस्ट होती हैं. यानि उसकी दिनचर्या और कठिन और सहूलियतें और कम होती हैं.

नौकरी में झुंझलाहट सबको होती है, एक फ़ौजी को नहीं हो सकती?

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वो सभी लोग जो नौकरी कर रहे हैं, उन्हें कभी न कभी अपने काम से झुंझलाहट होती रहती है, इसमें कुछ भी नया नहीं है. एक मीडियाकर्मी होने के नाते मुझे भी अपने काम से झुंझलाहट होती है. भले ही ये फील्ड मैंने अपनी मर्ज़ी से चुना था, लेकिन कई चीज़ें ऐसी होती हैं, जिनके लिए आपने वो नौकरी या फील्ड नहीं चुना. कैसा लगेगा जब कोई आपको कहे, किसने कहा था ये नौकरी करने को? परेशान होने का हक़ हम सभी को है और बेमतलब की परेशानियां हर किसी की नौकरी में आती हैं. एक फ़ौजी भी नौकरी ही कर रहा है, भले ही वो देशसेवा है, पर है तो नौकरी ही. तो आप उसे इतना सा हक़ नहीं दे सकते कि वो अपनी जॉब के बारे में क्रिब करे?

या ये हक़ हमें किसने दे दिया कि उस फ़ौजी को बोलें, ‘किसने कहा था फौजी बनने को’.

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हमारे प्रोफ़ेशन की तरह इनके काम में भी ऐसी कई अड़चनें होती होंगी, जिनके बारे में इन्हें भर्ती करने से पहले नहीं बताया हो. आपको जंग लड़नी है, ये हर फ़ौजी को बताया जाता है, देश की सेवा करनी है, ये भी बताया जाता है, पर ड्यूटी के साथ अफ़सर के बूट भी पॉलिश करने हैं, ये कभी नहीं बताया जाता.

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तेज बहादुर यादव और उसके जैसे जिन भी जवानों ने सोशल मीडिया पर सेना में मिल रही सुविधाओं पर सवाल किया, हो सकता है सवाल करने का रास्ता ग़लत चुना हो. उन्हें लोगों तक ये बात पहुंचाने के बजाये ख़ुद प्रशासनिक तरीके से अपनी बात को कहना चाहिए था. लेकिन ScoopWhoop से बात करने पर इस CRPF जवान ने जो बातें बतायीं, उन्हें जानने के बाद शायद उनका ये फ़ैसला ग़लत न लगे.

ScoopWhoop की इस जवान से हुई बातचीत के कुछ अंश:

एक फ़ौजी का डेली रूटीन कैसा होता है?

एक फ़ौजी 24*7 ड्यूटी पर होता है, कोई सन्डे नहीं, कोई छुट्टी नहीं. हमारा दिन 6 बजे शुरू होता है, फिर रोल कॉल और एक्सरसाइज़ होती हैं. 1-2 घंटे की एक्सरसाइज़ के बाद नाश्ता और फिर जिस हिसाब से ड्यूटी मिली, उस जगह मार्च करना होता है. कभी कैंप की रक्षा करनी होती है, कभी ROP (रोड ऑपरेटिंग पार्टी) के तौर पर एक जगह की 12 घंटे तक मुस्तैदी से ड्यूटी करनी होती है.

हर ROP टुकड़ी 12 घंटे तक वहीं रहती है, इस बीच 5 मिनट में उन्हें चाय-बिस्कुट और बाकी नाश्ता करने का टाइम दिया जाता है. इस ड्यूटी में एक सिपाही दूसरे से कुछ क़दमों की दूरी पर रहता है. आपकी आंखें चौकस होनी चाहिए, उंगलियां गन के ट्रिगर पर. आप हिल-डुल नहीं सकते और न ही बैठ सकते हैं. आपको 15 मिनट का ब्रेक दिया जाता है नहाने-धोने के लिए. और हां, इस वक़्त मोबाइल फ़ोन भी नहीं इस्तेमाल किया जाता.

अगर एक सिपाही एनकाउंटर के वक़्त ड्यूटी दे रहा है, तो उसे तब तक खड़ा रहना है, जब तक एनकाउंटर ख़त्म नहीं हो जाता.

खाने के बारे में बताईये?

घर जैसा तो नहीं होता. जो भी मेस में बनता है, आपको वही खाना होगा. ज़्यादातर दाल-रोटी और कभी-कभी नॉन-वेज मिलता है. नाश्ते में पूरी और चाय.

खाने के स्वाद के बारे में कभी कंप्लेंट की है?

हमारे पास खाने के लिए बस 30 मिनट होते हैं. उसमें अगर कंप्लेंट करेंगे, तो फिर सारे दिन भूखा रहना पड़ेगा. इसलिए कोई कुछ कहता नहीं है, खाना कितना भी बुरा क्यों न हो. हम एक-दूसरे से कह देते हैं. एक फ़ौजी होने के नाते आप कभी न नहीं कह सकते. खाने को लेकर ना-नुकुर करना अनुशासनहीनता समझा जाता है. कई इसलिए नहीं बोलते क्योंकि उन्हें डर होता है कि कहीं बड़े साहब उनके खिलाफ़ एक्शन न ले लें.

बात बढ़ने पर या तो आपके सर्विस रिकॉर्ड पर दाग लग जाएगा या फिर ज़िन्दगी भर के लिए आपका कोई प्रमोशन नहीं होगा.

लेकिन, क्या अच्छा भोजन आपका अधिकार नहीं है?

एक फ़ौजी के लिए खाने की क्वालिटी बहुत अच्छी होना चाहिए. लेकिन इस देश में किसी ने कभी रूल फॉलो किये हैं?

क्या फ़ौज में भी भ्रष्टाचार होता है?

मैं इस बात को ऐसे समझाऊंगा कि एक दादा अपने पोते को 100 रुपये देता है. ये 100 रुपये उसके बेटे के हाथ आते हैं और वो सोचता है कि उसके बेटे को 100 रुपये की क्या ज़रूरत? वो 20 रुपये अपने पास रख, 80 रुपये बेटे को दे देता है. बेटे के पास 80 रुपये आते हैं, यानि उसे जो भी करना है इन 80 रुपयों में करना है, वो भी जो चीज़ 100 रुपये में आती है.

ये जो अभी वीडियो आये हैं कि फ़ौजियों को खाना नहीं मिल रहा और बाकी जो परेशानियां हैं, क्या वो सच हैं?

हां, ये सच है. लेकिन ज़रूरी नहीं, ये जगह हो रहा हो. ये सब बातें आपके अफ़सर और कंपनी कमांडर पर निर्भर करती हैं. अगर वो अच्छा है, तो ऐसी कोई दिक्कतें नहीं होंगी.

लेकिन आर्मी और BSF/ CRPF की सैलरी और पेंशन में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है. उनके साथ एक ही बाप के दो बेटों अजिसा व्यवहार होता है. नेताओं को इतनी मोटी सैलरी बिना टैक्स के मिलती है, और वो फ़ौजी जो अपनी पूरी जवानी देश के नाम कर देता है, उसकी इतनी कम पेंशन पर भी टैक्स लगता है. बताईये , क्या ये सही है?

पैसे, फ़ैमिली, अपनी जान की कीमत… इन सब बातों से स्ट्रेस नहीं होता?

आपको पता है, एक फ़ौजी को ‘आधा पागल’ बोला जाता है. वो हर वक़्त अपन परिवार के बारे में सोचता है. कभी इस बारे में कि उसकी बीवी या मां घर कैसे चला रही होंगी? कईयों ने तो अपनी बहन की शादी मिस कर दी, कईयों ने बच्चों का मुंह नहीं देखा. उसे घर की याद भी आती है, तो भी वो किसी से कह नहीं सकता. वो ख़ुद से बात करता है, अकेले में बड़बड़ाता है क्योंकि वो किसी से अपने दिल की बात नहीं कह सकता.

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और फिर हमारे देश वाले कहते हैं, ‘ये क्या कर रहे हैं, ड्यूटी ही तो कर रहे हैं’. 

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