भारत की कई विशेषताएं… संस्कृति, भाषाएं, खान-पान, लोक नृत्य-गान, प्राकृतिक खज़ानों आदि के बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे. पर एक और विशेषता है जिसके बारे में कम ही लोग जानते होंगे, वो है यहां की भीड़.


भीड़ की बहुत ही ज़रूरी भूमिका है हमारे यहां. चाहे किसी के लिए हो या किसी के ख़िलाफ़, भीड़ का जादू सबकुछ सेट कर सकता है…  

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अब इस भीड़ की कई समस्याएं हैं. हम भीड़ द्वारा हत्या की बात नहीं कर रहे तो आगे तक पढ़ने की क्षमता रखिए.


इस भीड़ के 98.9 प्रतिशत लोगों को लगता है कि किसी के कंधे पर हाथ रखकर बुलाना, साइड हटने को बोलना बहुत नॉर्मल है. 98.9 प्रतिशत लोगों को लगता है कि पुरुष हैं तो आराम से दूसरे पुरुष को और यदि वो महिला हैं तो बेहिचक दूसरी महिला को छू सकते हैं. 

आज न मैं इस ग़लतफ़हमी को जड़ से ही ख़त्म कर देने की कोशिश शुरू कर रही हूं. तो सर जी/मैडम जी मैं उन 1.1 प्रतिशत लोगों में हूं जिन्हें किसी अनजान व्यक्ति द्वारा छूना कतई पसंद नहीं आता. ये छुअन मुझे बहुत अजीब महसूस करवाता है.  

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मेरी भावना को एक उदाहरण से समझिए. मेट्रो एंट्री के वक़्त बैग मशीन में डालने के बाद चेकिंग के लिए जाते हैं. चेकिंग होगी ये सोचकर मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगता है क्योंकि मुझे पता होता है कि सामने वाली महिला मुझे छू-छू कर संदिग्ध चीज़े ढूंढेगी. मशीन होने के बावजूद महिला पुलिसकर्मी हाथ से चेक करती हैं. वो अपना काम करती है, मैं समझ रही हूं लेकिन वो कुछ सेकेंड मेरे लिए काफ़ी असहज होता है.


चेकिंग में लाइन लगाने से पहले कोई महिला अगर मुझ में एकदम चिपककर खड़ी हो जाए तो ये मुझे बहुत ही गंदा लगता है, मैं अकसर बोल देती हूं पीछे होकर खड़े रहिए, जगह तो है.  

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आमतौर पर महिलाएं या तो घूर कर रह जाती हैं या सॉरी कह देती हैं. एक बार एक महिला ने कह दिया, ‘अरे, लेडीज़ ही हैं. इतना क्या बोल रही हो मैडम?’


मुझे मन किया कि उन्हें अच्छे से समझाऊं पर सोचा जाने दूं क्योंकि ये पूरे देश की ही समस्या है. अगर मैं गिर रही हूं, मेरे साथ दुर्घटना घटने वाली है तो मुझे बचाने के लिए मुझे पकड़ना ग़लत नहीं है पर जब मुझे पता ही कि मेट्रो या बस से कैसे उतरना है तो मुझे पीछे से धकेलने का क्या पॉईन्ट है?  

लोगों को लगता है कि किसी अनजाने पुरुष को पुरुष द्वारा छूना और किसी महिला को अनजाने महिला द्वारा छुआ जाना काफ़ी नॉर्मल है. ये नॉर्मल नहीं हैं. सामने वाले को ये अच्छा नहीं लग सकता है. आपका फ़्रेंडली टच भी किसी को असहज महसूस करवा सकता है. 

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भीड़-भाड़ वाली जगह पर एक-दूसरे को टच किए बिना रहना नामुमकिन है. अगर आपको किसी से कुछ कहना है और उसने ईयरफ़ोन लगाकर रखा है तो भी बिना टच के बात नहीं किया जा सकता पर खाली जगहों पर? खाली बस, खाली मेट्रो, खाली बस स्टॉप?


कई बार तो अगर आप किसी का रास्ता रोके खड़े होते हो तो लोग बिना कुछ बोल अपने हाथों से आपको ज़बरदस्ती साइड करने से भी नहीं चूकते! 

एक ऐसा समाज जहां आज भी लड़का-लड़की के हाथ पकड़ने, पब्लिक में पति-पत्नी के प्यार ज़ाहिर करने, लिव-इन रिलेशनशिप पर भौंए तन जाती हैं, फुसफुसाहट होने लगती है वहां लोगों को पर्सनल स्पेस का मतलब क्यों नहीं समझ आता?