वो दिन भी किसी आम दिन जैसा ही था. रोज़ उठना, दफ़्तर आना, काम में लग जाना. काम के सिलसिले में ही मेरे एडिटर ने मुझे एक ट्वीट दिखाया.
पहली नज़र में कुछ समझ नहीं आया कि इसमें ऐसा क्या हो गया जो एडिटर मुझे ये ट्वीट देखने को कह रहे हैं. इसके बाद उन्होंने मुझे दूसरा ट्वीट दिखाया
I feel like indian railways sell anything but sanitary napkins..🙄 Can @RailwaySeva @RailMinIndia help me here. I need a sanitary pad very badly. I'm on train no 20814. Pnr 2465540607. Any help would be so so appreciated !!!
— Shruti Dwivedi (@She_elan) July 28, 2019
Women are tagging Railway Seva because they need sanitary pads. Seriously ladies? Download the period app and keep track of your dates. Carry it along when travelling. Women did travel and have their periods and manage just fine before Twitter too.
— Nupur J Sharma (@UnSubtleDesi) July 28, 2019
अब पूरा मामला धीरे-धीरे समझ आया. और जब समझ आया तो सोचा कि क्यों न ‘इस तरह के विचार’ रखने वालों से सीधे बात की जाए
‘अप्रिय’ शेफ़ाली वैद्द और इस टाइप की सोच रखने वालों,
कैसा चल रहा है सब, ठीक न? मेरा तो वही है रोज़ का उठना, ऑफ़िस जाना और फिर घर वापस आ जाना.
पीरियड्स, एक ऐसा शब्द जो मेरी ज़िन्दगी में 11 साल की उम्र से जुड़ा हुआ है. मेरी मां ने भी मुझे पीरियड्स पर उसकी मां द्वारा दी गई जानकारियां और अपने हिसाब से कुछ बातें बताईं. जैसे, पूजा न करना, मंदिर न जाना और डेट याद रखना या लिख कर रख लेना. पर पता है, ये डेट नोट करना मेरे किसी काम का था ही नहीं. क्योंकि शायद ही कभी मेरे पीरियड्स उसी डेट पर आए हों. स्कूल के बैग में मां ने टिफ़िन के साथ पैड भी देना शुरू कर दिया था, ताकी स्कर्ट गंदी न हो.
मतलब हद की भी हद, एक महिला होकर पैड को कोन्डम से कंपेयर कर रही है? दोनों सुरक्षा के लिए ही है पर क्या दोनों एक बात है?
आशा है कि ये बात आपकी भावशून्यता को ज़रा कम करने में मदद करेगा.