देवों के देव महादेव शिव एक ऐसे देव हैं, जिनको ब्रह्मांड में एक महायोगी, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और कई अन्य उपाधियों से विभूषित किया गया है. हिन्दू मान्यताओं में शिव को एक देव के रूप में वर्णित किया गया है, तो उन्हीं को साधू और वैरागी भी माना गया हैं. वो गृहस्थ होकर भी गृहस्थ नहीं हैं. सृष्टि की रचना करने वाले त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक यानि कि महेश ही शिव हैं. वो आदि हैं और वो ही अनादि.
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि
भगवान शिव में अनगिनत विशेषताएं हैं कभी वो विध्वंसकारी बन जाते हैं, तो कभी एकदम शांत. अगर आज के वक़्त में सबसे प्रासंगिक कोई भगवान हैं तो वो हैं देवों के देव महादेव.
महायोगी शिव
माना जाता है कि पूरे ब्रह्माण्ड में भगवान शिव से बड़ा कोई योगी नहीं है. इसलिए उनको आदि योगी भी कहा जाता है. जिस प्रकार वो योग साधना में तल्लीन होकर अपने व्याकुल मन को शांत करते हैं वैसे ही अगर आज इंसान अपने अनियंत्रित मन को शांत करना सीख जाए तो उसकी आधी समस्याओं का अंत वहीं हो जाए. भोलेनाथ का योगी रूप इंसान को चंचल मन पर नियंत्रण करना सिखाता है. आज के दौर में अगर आप खुद पर नियंत्रण नहीं रखेंगे और मोह-माया के चक्कर में फंस जाएंगे, तो जीवन के लक्ष्य से दूर हो जाएंगे.
शांत स्वभाव
कई बार हमने धार्मिक और पौराणिक सीरियल्स में देखा है कि जब बाबा भोलेनाथ ध्यान लगाते हैं, तो बड़े से बड़ा तूफ़ान भी उनका ध्यान भांग नहीं कर सकता है. ठीक उसी प्रकार तनाव की स्थिति में अगर इंसान भी शान्ति बनाये रखे और धैर्य से काम ले, बजाये दूसरों को परेशान करने के, तो कई समस्याओं का हल आसानी से मिल सकता है. इसी प्रकार यदि इंसान भी अपने लक्ष्य की ओर अपना ध्यान केंद्रित करे और अपनी मज़िल को हासिल करने का प्रयास करे तो कोई भी रूकावट उसे उसके लक्ष्य से भटका नहीं सकती हैं.
मोह-माया से परे
अगर आप भगवान शिव की वेश-भूषा पर ध्यान दें, तो वो गले में सांप, शरीर पर शेर की छाल और भस्म लगाए, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिए घुमते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि भौतिक सुख सब मोह-माया और बाह्य आडम्बर हैं. आज जिस युग में हम जी रहे हैं वहां सिर्फ़ और सिर्फ़ मोह-माया का जाल है और हम उस जाल में फंसे हुए हैं. अधिक से अधिक धन-सम्पति की चाह, अच्छे से अच्छा रहन-सहन, खुद को सर्वोच्च दिखाने की होड़ में हम ये तक भूल चुके हैं कि इस दुनिया में हम खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना है. ये सब भौतिक सुख हैं, जो क्षणिक हैं. जो हमेशा साथ रहते हैं, वो हैं आपके अनुभव और अच्छी-बुरी यादें.
दूसरों की भलाई की भावना
शिव पुराण में आपने ये कहानी तो पढ़ी या सुनी होगी कि देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के दौरान जब समुद्रमंथन हुआ था तब एक-एक कर जो भी चीज़ें बाहर आ रहीं थीं उनका बंटवारा हो रहा था. पर जैसे ही विष का कलश बाहर आया तो किसी ने उसको लेने के लिए आगे कदम नहीं बढ़ाया. उस वक़्त भगवान शिव ने मानव जाति की रक्षा के लिए पूरा विष पी लिया था. इसीलिए उनको नीलकंठ भी कहा जाता है. लेकिन आज के समय में जब भाई-भाई की जान का दुश्मन है, तब अगर हम केवल अपने बारे में ना सोचकर की भलाई का सोचें, तो पृथ्वी से ज्यादा ख़ूबसूरत कोई दूसरी जगह नहीं होगी.
नारी सम्मान
आज हम उस दौर में जी रहे हैं, जहां स्त्री पुरुषों के बराबर कदम से कदम मिला कर चल रहीं हैं. लेकिन वहीं हमारे समाज में महिलाओं के प्रति लोगों की आपराधिक प्रवृत्ति प्रबल होती जा रही है. मगर आपको पता ही होगा कि भगवान शिव को अर्धनारीश्वर कहा जाता है और शिव जी का ये रूप बहुत लुभावना है. आज भी हर लड़की अपने लिए शिव जैसे पति कामना करती है. क्योंकि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार महादेव को सर्वगुण संपन्न पति माना जाता है. उन्होंने हमेशा पार्वती को सम्मान दिया और अपने बराबर रखा. अगर आज के पुरुष अपनी पत्नी और दूसरी महिलाओं को सम्मान देने लगें, तो महिलाओं की स्थिति सशक्त और सुदृढ़ हो जायेगी.
घमंड और दूसरों को तुच्छ समझने की भावना से दूर
वेद पुराण हों या पौराणिक सीरियल्स भगवान शिव की छवि हमेशा सौम्य और शांत दिखाई गई है. उनमें किसी तरह का कोई अहंकार, कोई छल-कपट नहीं है. वहीं आज के वक़्त में लोगों में अहंकार कूट-कूट कर भरा है, हर कोई अपने अहम में जी रहा है. मगर हम आपको बता दें कि जीवन की अधिकतर समस्याओं की जड़ ये अहंकार ही है. इंसान और उसकी सफ़लता के बीच अगर कोई सबसे रोड़ा है तो वो है अहंकार. अगर ये ‘मैं’ और ‘तू’ वाली भावना लोगों के मन से हट जाए तो संसार की काया ही पलट जाए. देशों के बीच युद्ध खत्म हो जाएं.
क्रोध को शांत करने की शक्ति
कहते हैं कि जब बुराई की अति हो जाती है और महादेव का गुस्सा अपने चरम पर पहुंच जाता है, तो उनकी तीसरी आंख खुल जाती है, वो रौद्र रूप धारण कर लेते हैं. इस रूप में उनको शांत करना मुश्किल है. मगर प्रेम ही एक ऐसी चीज़ है जो उनके क्रोध को शांत कर सकता है. यही चीज़ आज के इंसान पर भी लागू होती है, अगर हम किसी के साथ बार-बार बुरा सुलूक़ करते जाएंगे तो एक न एक दिन उसके सब्र का बांध टूट ही जाएगा और वो रौद्र रूप धारण कर लेगा. लेकिन यहां हम ये नहीं कह रहे कि आप हर समस्या का समाधान क्रोध के माध्यम से ही दिखाएं. बल्कि हमेशा प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहो. प्यार बांटते चलें.
अभिव्यक्ति की कला
कहते हैं कि भगवान शिव ने एक बार अपने क्रोध को व्यक्त करने के लिए तांडव किया था और पूरी सृष्टि अंत के कगार पर पहुंच गई थी. भले ही तांडव नृत्य का एक रूप है लेकिन शिव का तांडव उनके क्रोध की अभिव्यक्ति. आज भी कई बार लोग अपने अंदर की भावनाओं को बोल कर नहीं व्यक्त कर पाते हैं इसलिए वो अपने अंदर की कला जैसे नृत्य, संगीत, चित्रकारी के ज़रिये, गुस्सा करके या फिर रोकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं. इसलिए अपने आस-पास के लोगों की भावनाओं को समझो और उसका सम्मान करो, ना की उनका मज़ाक बनाओ.
सृष्टि के सबसे आदर्श पुरुष हैं भगवान शिव, तो क्यों न उनके व्यक्तित्व का कुछ अंश ग्रहण कर जीवन को सार्थक बनाया जाए. आज के भौतिक और आधुनिक वक़्त को मद्देनज़र रखते हुए ये कहना ग़लत नहीं होगा कि अगर आपने अपने अंदर भोलेनाथ की इन विशेषतओं को ग्रहण कर लिया, तो आप ज़िन्दगी की विषम से विषम परिस्थिति का सामना भी आसानी से कर लेंगे और अपनी ज़िन्दगी को सार्थक बनाएंगे.