जिस देश में कभी रोटी, कपड़ा और मकान की बातें होती थीं, आज वहां डिजिटल इंडिया की बातें हो रही हैं. खाने से लेकर पीने तक सब ऑनलाइन हो रहा है. देखा जाए, तो कुछ मायनों में यह सही भी है. लेकिन सवाल ये है कि अमेरिका जैसा देश जब पूरी तरह से कैशलेस नहीं हो सका है, तो भारत कैसे हो सकता है? Avendus Capital के अनुसार, भारत में करीब 28,500 करोड़ रुपये का ई-कॉमर्स का बाज़ार है. इंटरनेट एक्सेस के मामले में हम दुनिया में सिर्फ़ चीन से पीछे हैं. हालांकि, प्रतिशत के हिसाब से देश की 15 प्रतिशत आबादी ही इंटरनेट यूज़ कर रही है. सबसे अहम सवाल ये है कि जिस देश का इंफ्रास्ट्रकचर अभी भी पीछे हो, वहां डिजिटल होने का क्या मतलब हो जाता है?
क्या लोग इंटरनेट से आएंगे-जाएंगे? क्या खाना इंटरनेट से पक जाएगा? क्या खेती इंटरनेट से हो जाएगी? मैं कोई क्रांतिकारी बातें नहीं कर रहा हूं, बल्कि आपको एक आईना दिखाने जा रहा हूं.
हमारे साथ काम करने वाली स्मिता सिंह ने कुछ महीने पहले दिल्ली के एक मॉल से घड़ी ख़रीदी. उस घड़ी की कीमत 2500 रुपये थी. इसके लिए उन्होंने अपने डेबिट कार्ड से पैसे चुकाए, मगर ट्रांजैक्शन फेल हो गया. हालांकि, उनके पैसे कट गए, मगर दुकानदार के अनुसार, उन्हें पैसे नहीं मिले. घड़ी का बिल चुकाने के लिए उन्हें दुबारा अपने कार्ड से पेमेंट करना पड़ा. इस वजह से उन्हें उस घड़ी के लिए 5000 रुपये चुकाने पड़े. उस घटना को हुए 8 महीने हो गए, मगर वो पैसे अभी तक नहीं आए. इस संबंध में उन्होंने दुकानदार और बैंक के कस्टमर केयर नंबर से बात की, मगर हर बार वो इसे टालकर या एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी थोपकर अपना पल्ला झाड़ लेते थे. इतना ही नहीं, उनके साथ 4 ऐसी घटनाएं हुईं. अब वो ऑनलाइन शॉपिंग करने से डरती हैं. सोचने वाली बात ये है कि वो पढ़ी-लिखी एक वर्किंग गर्ल हैं. मगर ऑनलाइन पेमेंट के कारण फंस गईं.
इस कहानी से आपको समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि दिल्ली में रहने वाली एक पत्रकार को अपने पैसे के लिए 8 महीने तक का इंतज़ार करना पड़ रहा है, तो झारखंड के रहने वाले आदिवासी को तो सालों इंतज़ार करना पड़ेगा? सवाल ये है कि हम किस तथ्य पर अपने देश को कैशलेस बनाने की बात कर रहे हैं? अगर ऑनलाइन दुनिया में आपके साथ कोई धोखाधड़ी हो जाए, तो उसके लिए क्या व्यवस्था है?
एक सहकर्मी हैं कुंदन, उनके भी ऑनलाइन रिज़र्वेशन के पैसे फंस गए और वापस नहीं मिले. सवाल ये है कि ये छोटे या बड़े कैश अमाउंट आपके कार्ड से तो चले जाते हैं, लेकिन बीच में रह जाते हैं. न तो बैंक उसकी ज़िम्मेदारी लेते हैं और न ही दुकानदार. अपने एक-एक रुपये के लिए कोई ग्राहक कस्टमर केयर, बैंक, दुकानदार या कंज़्यूमर फोरम तक कैसे पहुंच सकता है?
देश में कानून व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए कई ट्रिब्यूनल्स बनाए गए हैं, जो त्वरित सुनवाई करती है. जैसे पर्यावरण के लिए ग्रीन ट्रिब्यूनल बनाए गए है, वैसे ही ऑनलाइन धोखाधड़ी से निपटने के लिए साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल है, जो दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित है. सबसे अहम सवाल ये है कि शिकायत करने के बावजूद भी आपको न्याय वहां से मिलेगा कैसे, क्योंकि बीते 4 सालों से यहां कोई जज ही नहीं है.
इसकी जानकारी से पहले आपको ऑनलाइन धोखाधड़ी के बारे में बताते हैं. वहां आप कैसे शिकायत कर सकते हैं.
सबसे पहले राज्य के संबंधित न्यायिक अधिकारी के यहां अपील करें.
न्यायिक अधिकारी राज्य के इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय का सचिव होता है.
देश के किसी भी राज्य के न्यायिक अधिकारी के फैसले को दिल्ली के साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जा सकती.
यानी अगर तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कश्मीर या राजस्थान में भी आपके साथ कोई धोखाधड़ी हो तो न्यायिक अधिकारी के फैसले को दिल्ली में ही चुनौती दे सकते हैं. अगर आप सीधे हाइकोर्ट में भी जाते हैं तो कोर्ट मामला इसी ट्रिब्यूनल में भेज देती है. यानी ये एक तरह का कोर्ट ही है, जिसमें करीब 100 मामले लंबित हैं लेकिन सुनवाई कोई नहीं.
ये ट्रिब्यूनल भारत सरकार के इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी मंत्रालय के तहत काम करता है, जिसके मंत्री रविशंकर प्रसाद हैं. वे कहते हैं कि ‘हम जल्द ही यहां कोई जज तैनात करेंगे. यह मामला मंत्रालय में विचाराधीन है.’
NDTV से ख़ास बातचीत में साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने बताया था कि ‘ये आम जनता के मौलिक अधिकारों का हनन है, क्योंकि लोग इंसाफ़ के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाते हैं लेकिन अगर 4-5 साल से वहां कोई जज ही न हो, तो न्याय कैसे मिलेगा?’
ऑनलाइन, डिजिटलाइजेशन, ई-सर्विस, सुनने में कितना अच्छा लगता है, मगर बात तो वही हुई कि सारस को घड़े की जगह थाली में खाना देना.