आखिर इन रियासतों को भारत में विलय के लिए मनाना इतना आसान भी नहीं था. इतिहास में इस अविस्मरणीय कार्य के लिए सरदार बल्लभ भाई पटेल को याद किया जाता रहा है. लेकिन हकीक़त तो यह है कि इतिहास के पन्नों में गुमनाम एक शख़्स नहीं होता, तो शायद इन सभी रियासतों का विलय अर्थात देश का राजनीतिक एकीकरण संभव नहीं होता. इतिहास ने बल्लभ भाई को तो उनके योगदान के अनुरूप जगह दी, लेकिन ये बात भी सच है अगर भारत के तत्कालीन सलाहकार वी.पी. मेनन नहीं होते, तो शायद अकेले बल्लभ भाई पटेल भी भारत को एक नहीं कर पाते.

सालों की परतंत्रता के बाद भारत अब आज़ाद होने वाला था. सदियों की गुलामी के बाद अब स्वाधीनता की सुगबुगाहट होने लगी थी. अंग्रेज़ अब देश छोड़कर जाने वाले थे. सदियों की लड़ाई के बाद अब देश की आज़ादी का सपना साकार होने वाला था. लेकिन इस सपने के साकारीकरण के सामने एक बहुत बड़ी समस्या थी, भारत में बसे अलग-अलग 565 छोटे-बड़े रजवाड़ों-रियासतों के एकीकरण की. इन रियासतों के विलय के बिना आज़ाद मुल्क की कल्पना बेमानी थी.

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ऐसा माना जाता है कि भारत की संवैधानिक आज़ादी के लिए जो आधारभूत फार्मूला इस्तेमाल किया गया, वह मेनन ने ही प्रस्तुत किया था. लेकिन इतना कह देने भर से भारत के एकीकरण में मेनन की भूमिका का पता नहीं चलता. इसके लिए इतिहास को खंगालना होगा.

ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आज़ाद करने की घोषणा के बाद जब सत्ता हस्तांतरण का काम चल रहा था, तब अधिकतर रियासतों की प्राथमिकता भारत और पाकिस्तान से अलग स्वतंत्र राज्य के रूप में रहने की थी. आज़ादी की घोषणा के साथ ही देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य के रूप में अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़-सी लगी थी.

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भारत के लिए यह वक़्त किसी दु:स्वपन से कम नहीं था. जिस एकीकृत स्वतंत्र भारत की नींव शहीद क्रांतिकारियों ने रखी थी, वो नींव गिरने ही वाली थी. इस वक़्त में नेहरू और सरदार बल्लभ भाई के लिए कुछ भी फैसला लेना कठीन था. बल्लभ भाई किसी भी कीमत पर देश के विभाजन के पक्ष में नहीं थे, लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि अगर देश को आज़ाद रहना है, तो विभाजन के उस दौर से गुजरना ही होगा. लेकिन सभी रियासतों को अपने देश में शामिल करने के लिए कोई तरकीब भी नहीं थी. इस वक़्त सबसे ज़्यादा कोई काम आया, तो वो थे वी.पी. मेनन. दरअसल, वी.पी. मेनन भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे. मेनन भले ही ब्रिटिश राज के एक वफादार अधिकारी थे, लेकिन एक सच्चे देशभक्त और भारतीय भी थे. सरदार पटेल के मंत्रिमंडल में सलाहकार बनने के बाद मेनन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी, सभी रियासतों को भारत में विलय के लिए मनाना.

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सबसे खास बात तो ये है कि अगर भारत के छोटे-छोटे टुकड़े होते, तो शायद देश को घातक परिणाम भुगतने पड़ते. दरअसल, मेनन माउंटबेटन के काफ़ी करीबी भी थे, जो बाद में सरदार पटेल के भी करीबी बन गये. अगर वह सत्ता के माध्यम से कुछ भी मांगना चाहते, तो आसानी से मिल जाता. पर मेनन की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी.

इधर देश के सामने भारत में राज्यों के विलय की समस्या बनी हुई थी. अधिकांश राज्य और रजवाड़े भारत के साथ मिलना चाहते थे. लेकिन उस समय यहां के 562 रजवाड़ों में से तीन को छोड़कर सभी ने भारत में विलय का फ़ैसला किया. ये तीन रजवाड़े थे कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद.

हैदराबाद की आबादी का अस्सी फ़ीसदी हिंदू थे, जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने हुए थे.

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इन सभी राज्यों को भारत में मिलाए बिना देश का एकीकरण संभव नहीं था. इसके लिए सरदार पटेल और मेनन ने अपनी सूझ-बूझ का बेजोड़ परिचय देते हुए अंतत: इन्हें भारत में शामिल कर ही लिया.

वी.पी. मेनन ने राज्यों को भारत में मिलाने के लिए राजनीतिक परिपक्वता का बेहतरीन नमूना पेश किया. यहां तक कि उन्हें एक बार जान से मारने की धमकी भी दी गई थी. फिर भी उन्होंने भारत सरकार के संदेशों को रजवाड़ों तक पहुंचाने और उन्हें भारत में मिलाने का सिलसिला जारी रखा.

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जब इस समूचे प्रकरण में मुस्लिम लीग की रणनीति इस पर केंद्रित थी कि अधिक से अधिक रजवाड़े भारत में मिलने से इंकार कर दें, तब सरदार पटेल और वी.पी. मेनन ने एक ताल में काम करते हुए पाकिस्तान के सभी षडयंत्रों को विफल किया.

सच बात तो यह है कि अगर सरदार बल्लभ भाई को देश को एक करने के लिए जाना जाता है, तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि वी.पी. मेनन की भूमिका इसमें कहीं से कम थी. अगर वी.पी. मेनन का साथ सरदार को नहीं मिलता, तो शायद सरदार पटेल देश को एक करने में शायद सफल नहीं हो पाते. इसलिए देश के राजनीतिक एकीकरण में अगर मेनन की भूमिका की बात की जाए, तो यह अविस्मरणीय है.
Idea source: jamosnews and book
Feature image source: lighthouseinsights and kerlaclubdelhi