भारत में आज अन्य खेलों के मुक़ाबले क्रिकेट को कुछ ज़्यादा तरजीह दी जाती है, लेकिन एक ज़माना था जब देश में हॉकी और फुटबॉल का बोल-बाला हुआ करता था. आज़ादी के दशक में हर भारतीय युवा हॉकी प्लेयर या फिर फ़ुटबॉलर बनाना चाहता था. क्रिकेट तो उस वक़्त सिर्फ़ अमीरों (जेंटलमेंस) का गेम हुआ करता था. इसलिए भी आम लोग क्रिकेट को इतनी तरजीह नहीं देते थे.

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सन 1930 से लेकर 1950 के दशक तक भारत में फ़ुटबॉल भी काफ़ी लोकप्रिय खेल हुआ करता था. आज़ादी के बाद भारतीय फ़ुटबॉल टीम ने पहली बार 1948 के ‘लंदन ओलंपिक’ में भाग लिया था. ‘लंदन ओलंपिक’ में भाग लेने वाली भारतीय फ़ुटबॉल टीम के कप्तान शैलेन्द्र नाथ मन्ना थे. वो विश्व के बेहतरीन खिलाडियों में से एक थे. शैलेन्द्र के नेतृत्व में ही भारतीय फ़ुटबॉल टीम ने पहली बार ओलंपिक के लिए क़्वालिफ़ाई भी किया था.

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सन 1948 का ‘लंदन ओलंपिक’ भारतीय टीम के लिए बेहद ख़ास रहा. इसके बाद 1956 के ‘मेलबर्न ओलंपिक’ में भारतीय टीम सेमीफ़ाइनल तक पहुंची थी. भारतीय टीम आख़िरी बार 1960 के ‘इटली ओलंपिक’ में नज़र आई थी. इसके बाद आज तक भारतीय फ़ुटबॉल टीम ओलंपिक के लिए क़्वालिफ़ाई तक नहीं कर सकी है. हालांकि, 1992 के बाद से ओलंपिक में केवल ‘अंडर 23 नेशनल टीम’ ही भाग ले सकती है.

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भारतीय टीम को देख दंग रह गई दुनिया  

दरअसल, 1948 के ‘लंदन ओलंपिक’ में भारतीय फ़ुटबॉल टीम ने वो कर दिखाया था जिसे देख पूरी दुनिया दंग रह गई थी. हुआ यूं था कि भारत ने फ़्रांस के साथ मैच 1-1 से बराबर किया था. ये ख़ास बात नहीं थी. असल बात तो ये थी कि इस दौरान हमारे खिलाड़ी फ़्रांस जैसी मज़बूत टीम के सामने मैदान पर बिना जूतों के खेल रहे थे. बावजूद इसके भारतीय खिलाड़ियों ने नंगे पैर ही मैच का पासा पलट दिया था.  

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खून से लतपथ थे भारतीय खिलाड़ियों के पैर 

इस दौरान जहां फ़्रेंच खिलाड़ी जूतों के साथ मैदान में उतरे थे वहीं भारत के अधिकांश खिलाड़ियों के पैरों में जूते तक नहीं थे. मैच के दौरान जब भारतीय खिलाड़ी फ़्रेंच खिलाड़ियों से भीड़ रहे थे तो उनके जूतों से भारतीय खिलाड़ियों के पैरों पर काफ़ी चोटें लग रही थीं, लेकिन खून से लतपथ होने के बावजूद भारतीय खिलाड़ियों के सामने फ्रांसीसी टिक नहीं पाये. हालांकि, ये भी मुक़ाबला आख़िर तक बराबरी पर छूटा. लेकिन भारतीय टीम ने दिखा दिया कि मुश्किल चाहे कोई भी क्यों न हो, आपके इरादे मजबूत होने चाहिए.   

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भारतीय खिलाड़ियों को क्यों नहीं दिए गए जूते?  

भारत सरकार ने खिलाड़ियों को जूते क्यों नहीं दिए, इसका जवाब तो तत्कालीन सरकार को देना चाहिए था? लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ओलंपिक से लौटने के बाद भी भारतीय फ़ुटबॉल टीम के खिलाड़ियों को जूते नसीब नहीं हुए. ये वो वक़्त था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कपड़े पेरिस से ड्राइक्लीन हो कर आते थे और साहब अपने कुत्ते के साथ प्राइवेट जेट में घूमते थे. लेकिन उनके पास खिलाड़ियों के लिए जूते ख़रीदने के पैसे नहीं थे.  

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इसका नतीजा ये हुआ कि FIFA ने 1950 के ‘World Cup’ में भारत को बैन कर दिया. क्योंकि FIFA ने 1950 फ़ुटबॉल वर्ल्डकप में भाग लेनी वाली सभी टीमों से साफ़ तौर पर कह दिया था कि उनका कोई भी खिलाड़ी नंगे पांव नहीं खेलेगा. इसके बाद भारतीय टीम दोबारा कभी ‘FIFA World Cup’ में नहीं खेल पाई. वर्तमान में भारतीय फ़ुटबॉल टीम की रैंकिंग 105 है.

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1950 फ़ुटबॉल वर्ल्डकप ब्राज़ील में होना था. भारत को ब्राज़ील जाने के लिए बर्मा से फ़्लाइट पकड़नी होती थी. जबकि उस वक़्त ये सवाल भी उठे थे कि भारत के पास इस ट्रिप के लिए पैसे भी नहीं हैं, पर ये ख़बर भी झूठी निकली. ऑर्गनाइज़र ने इस ट्रिप का सारा ख़र्चा उठाने की ज़िम्मेदारी भी ले ली थी. बावजूद इसके भारतीय टीम ने ब्राज़ील जाने से इंकार कर दिया.

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इस टूर्नामेंट में भारत की अगुवाई करने वाले शैलेन्द्र नाथ मन्ना ने बताया कि ‘भारतीय टीम इसलिए भी वर्ल्डकप में भाग लेना नहीं चाहती थी क्योंकि ‘ऑल इंडिया फ़ुटबॉल फ़ेडरेशन’ ओलंपिक की तरह फ़ुटबॉल वर्ल्डकप को गंभीरता से नहीं ले रहा था’.

1950 से आज तक इसी बात की चर्चा होती है कि क्या भारतीय टीम ने सचमुच में इसी वजह से ब्राज़ील जाने से इंकार कर दिया था? लेकिन इस बात में रत्तीभर की भी सचाई नहीं है. दरअसल, भारतीय टीम कम प्रैक्टिस, ग़लत टीम सिलेक्शन और AIFF के फ़ुटबॉल वर्ल्डकप को गंभीरता से न लेने के कारण ब्राज़ील नहीं गयी थी.