‘जल्द ही मेरी शादी मौत से होगी’… ये शब्द उस वीर क्रांतिकारी के थे जिसने विदेश जाकर जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए अंग्रेज़ गवर्नर माइकल ओ’डायर पर गोलियां बरसा कर उसको मौत के घाट उतारा था. ये साहसी वीर जवान कोई और नहीं सरदार ऊधम सिंह थे. गवर्नर को मारने की सज़ा के रूप में 31 जुलाई, 1940 को इस महान क्रान्तिकारी को अंग्रेज़ों ने फांसी पर लटका दिया था.
आइये जानते हैं इस क्रांतिकारी और अंग्रेज़ गवर्नर को मारने के बारे में:
ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर, 1899 को पंजाब के संगरुर इलाके के सुनाम गांव में हुआ था. इनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे और उन्होंने ही इनको शेर सिंह नाम दिया था. ऊधम सिंह के एक बड़े भाई भी थे जिनका नाम मुक्ता सिंह था. 1901 में जब वो केवल 2 साल के थे तब उनकी मां का देहांत हो गया और उसके 6 साल बाद पिता की मौत के बाद मात्र 7 साल की उम्र में दोनों भाई अनाथ हो गए.
माता-पिता की मौत के बाद दोनों को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया. जहां पर शेर सिहं को नाम दिया गया ऊधम सिंह और मुख्ता सिंह बन गए साधु सिंह. ये वो दौर था जब देश में क्रान्ति की आग पूरी तरह से जल रही थी. और देश सेवा के लिए सरदार ऊधम सिंह ने अपना नाम बदलकर ‘राम मोहम्मद सिंह आज़ाद’ रख लिया. इनका ये नाम समाज की एकता का सच्चा प्रतीक था क्योंकि इसमें देश के तीन प्रमुख धर्मों ज़िक्र है.
अभी तक उनके पास बड़े भाई का साथ था उनके पास. मगर ये साथ भी ज़्यादा दिन नहीं रहा और 1917 में मुक्ता सिंह का भी निधन हो गया और ऊधम सिंह पूरी तरह से अनाथ हो गए. हर दुःख, हर ग़म को सहते हुए साल 1918 में सेंट्रल यतीमखाना अमृतसर में रहकर मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1919 में वो अनाथालय छोड़ कर क्रांतिकारियों के साथ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए.
वो गवाह बने जलियांवाला बाग हत्याकांड के
13 अप्रैल, 1919 यही वो काला दिन था, जब जनरल डायर ने हज़ारों मासूमों और निहत्थे भारतीयों पर ताबड़-तोड़ गोलियां बरसाने का ऑर्डर दिया था. और डायर की इस क्रूरता को ऊधम सिंह ने अपनी आंखों से देखा था. जलियांवाला बाग के इस नरसंहार के बाद ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग वहां की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने और मासूमों की हत्या का बदला लेने का प्रण ले लिया था.
ऊधम सिंह कैसे पहुंचे जर्मनी और फिर लन्दन
क्रांतिकारियों की सेना में शामिल होकर सरदार ऊधम सिंह ने चंदा इकट्ठा किया और विदेश चले गए. साल 1924 में उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका, जिम्बॉब्वे, ब्राज़ील और अमेरिका जाकर आज़ादी की लड़ाई के लिए बहुत धन इकट्ठा किया. जब 1927 में वो भारत वापस आये, तो ब्रिटिश हुक़ूमत ने उनको क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के चलते गिरफ़्तार कर लिया. पूरे साल तक जेल में रहने के बाद 1931 में वो रिहा हुए, पर पंजाब पुलिस उनके पीछे हाथ धो कर पड़ी हुई थी. किसी तरह छिपते-छिपाते वो कश्मीर पहुंच गए और कुछ दिन वहां समय बिताने के बाद वो जर्मनी चले गए. मगर ये दुर्भाग्य था कि उनके लंदन पहुंचने से पहले जनरल डायर किसी गंभीर बीमारी के कारण मर गया था.
माइकल ओ डायर को मारने के लिए पहुंचे लंदन
जनरल डायर की मौत के बाद अब जलियांवाला बाग कांड के दौरान पंजाब के तत्कालीन गवर्नर रहे माइकल ओ डायर से बदला लेना ही ऊधम का एकमात्र लक्ष्य था. और आखिर जलियांवाला बाग नरसंहार के 21 साल बाद उनको ये मौका मिल ही गया. 13 मार्च, 1940 को लन्दन के कॉक्सटन हॉल में आयोजित एक समारोह में माइकल ओ डायर बतौर वक्ता मौजूद था. ऊधम समारोह से एक दिन पहले ही समारोह स्थल पर पहुंच गए. अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली.
उन्होंने किताब के बीच के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार में काट लिया था और उसमें रिवॉल्वर को छिपा लिया. जैसे ही माइकल ओ डायर का भाषण ख़त्म हुआ उन्होंने दीवार के पीछे से माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं. दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं और उसकी तुरंत ही मौत हो गई. इसके बाद लन्दन पुलिस ने वीर क्रांतिकारी ऊधम सिंह को गिरफ़्तार कर लिया.
ऊधम की गिरफ्तारी के बाद उनको लंदन के बैरिक्सटन जेल में रखा गया. उनको पता था कि उनको फांसी होने वाली है पर उनके चेहरे पर न ही कोई डर और न ही कोई मलाल था. फांसी होने से कुछ महीने पहले सरदार ऊधम सिंह ने अपने प्रिय मित्र शिव सिंह जौहल को एक पत्र लिखा, जिसमें लिखा था,
‘मुझे मालूम है कि जल्द ही मेरी शादी मौत से होने वाली है. मैं मौत से कभी नहीं डरा और मुझे कोई अफ़सोस नहीं हैं. क्योंकि मैं अपने देश का सिपाही हूं. दस साल पहले मेरा दोस्त मुझे छोड़ गया था. मरने के बाद मैं उसे मिलूंगा और वो भी मेरा इंतजार कर रहा होगा.’
ये आख़िरी शब्द थे इस महान क्रांतिकारी के.
देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले इस क्रांतिवीर को ScoopWhoop हिंदी का शत-शत नमन!