धरती पर कितने जीव मौजूद हैं इसका कोई सटीक पता नहीं लगा सकता. इनकी विशेषताएं भी अलग-अलग हैं. कोई सबसे ऊंची उड़ान भर सकता है तो कोई मीलों पैदल चल सकता है. इन्हीं में से कुछ हैं जो कई सालों तक बिना खाए पीए न सिर्फ़ ज़िंदा रह सकते हैं बल्कि प्रजनन भी कर सकते हैं. ऐसी ही जीवों के बारे में एक रिसर्च में पता चला है. इनका नाम है टिक, जो कई वर्षों तक बिना भोजन के जी सकते हैं.
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8 वर्षों तक बिना कुछ खाए ज़िंदा रही Ticks की ये प्रजाति
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अमेरिका के शोधकर्ता जूलियन शेफ़र्ड को 1976 में बड़े अफ़्रीकी टिक की विशेष प्रजाति उपहार में दी गई थी. उन्होंने 27 वर्षों तक अपनी प्रयोगशाला में इन टिकों(Ticks) पर अध्ययन किया. इस दौरान शेफ़र्ड ने देखा कि कुछ मादा टिक क़रीब 8 वर्षों तक बिना कुछ खाए ज़िंदा रहीं. यही नहीं, सभी नर टिकों की मौत के 4 वर्ष के बाद भी कुछ मादा टिक प्रजनन करने और बच्चों को जन्म देने में कामयाब रहीं. ये टिक अर्गस ब्रम्प्टी प्रजाति के थे, जो आमतौर पर अफ़्रीका के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में पाए जाते हैं.
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शेफ़र्ड ने जर्नल ऑफ़ मेडिकल एंटोमोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में लिखा है कि ये प्रजाति इतने लंबे समय तक जीवित रहते हैं जो अपने-आप में एक रिकॉर्ड है. बिना भोजन के किसी भी जीव का इतने लंबे समय तक ज़िंदा रहना विज्ञान की दुनिया का दुर्लभ मामला है.
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ये जीव भी बिना कुछ खाए वर्षों तक जीवित रह सकते हैं
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धरती पर कुछ ही ऐसे अन्य जीव हैं जो ‘बिना कुछ खाए’ कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं. इनमें एक है ओल्म, जो समुंदर में रहने वाला जलीय जीव है. मगरमच्छ भी ऐसा कर सकते हैं. विचित्र सा दिखने वाला ‘वॉटर बीयर’ यानी टार्डिग्रेड्स भी बिना भोजन के 30 वर्षों तक जीवित रह सकता है.
हालांकि, शेफ़र्ड को अपने टिक के साथ इस तरह का प्रयोग करने और उन पर अध्ययन करने का कोई इरादा नहीं था. ये पूरी तरह एक संयोग था. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, “सच कहूं, तो उन टिक को लेकर मेरी कोई योजना नहीं थी. मैं टिक को लेकर बस अपने अनुभव को बढ़ाने के बारे में सोच रहा था. मुझे कोई आइडिया नहीं था कि वे इतने समय तक ज़िंदा रहेंगे.”
अनजाने में हो गई Ticks पर रिसर्च
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ए. ब्रम्प्टी बिना भोजन के इतने दिनों तक जीवित रह सकते हैं, इसका पता चलना महज एक संयोग था. शेफ़र्ड ने कहा कि उन्होंने टिक को भोजन देना इसलिए बंद कर दिया क्योंकि इसके लिए उन्हें खू़न की जरूरत थी. टिक भोजन के तौर पर किसी का खू़न चूसते हैं. टिक को भोजन उपलब्ध कराने के लिए उन्हें चूहों से बड़े जीव की जरूरत थी. इस वजह से नैतिक और उनके रखरखाव की समस्या आ खड़ी हुई.
उन्होंने आगे कहा, “मैंने उनके भोजन के तौर पर खरगोश का इंतजाम किया, लेकिन यह उतना मानवीय नहीं था जितना मैं चाहता था. मैंने कुछ टिक को खुद का खून चूसने का मौक़ा दिया, लेकिन सिर्फ़ एक बार. इसके बाद, मैंने पाया कि मैं उन्हें उन चूहों को भोजन के तौर पर दे सकता हूं जिन्हें प्रयोगशाला में मरने के लिए छोड़ दिया गया था.”
सॉफ़्ट और हार्ड टिक
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ए. ब्रुम्प्टी को ‘सॉफ्ट टिक’ के रूप में जाना जाता है. सॉफ़्ट टिक, ‘हार्ड टिक’ से अलग होते हैं. हार्ड टिक आमतौर पर अमेरिका और यूरोप में पाए जाते हैं. शेफ़र्ड कहते हैं कि इस बात की काफी कम संभावना है कि सॉफ्ट टिक अपने भोजन के तौर पर इंसानों का खू़न चूस सकते हैं.
फैलाते हैं कई प्रकार की बीमारियां
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हालांकि, ये टिक कई गंभीर बीमारियों को फैलाते हैं. जैसे, टिक बॉर्न रिलैप्सिंग फीवर(TBRF). यह बीमारी अफ्रीका के साथ-साथ भूमध्य सागर और पश्चिमी उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में पायी जाती है. TBRF जीवाणु से होने वाला संक्रमण है. इससे बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और बार-बार उबकाई की समस्या हो सकती है. साथ ही, शरीर पर लाल चकत्ते का निशान भी उभर सकता है.
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शेफ़र्ड ने प्रकृति को चुनौती देने वाले अपने टिक को हाल ही में दक्षिण अफ़्रीका भेजा है. उन्हें उम्मीद है कि वहां दूसरे रिसर्चर इन टिकों की देखभाल करते रहेंगे. उन्होंने कहा कि नए रिसर्चरों को लगता है कि वर्षों पहले जो टिक उन्हें उपहार में दिए गए थे वे कई प्रजातियों के हो सकते हैं. नए रिसर्चर इन टिकों के आनुवांशिक संबंधों का पता लगाने और उनका विश्लेषण करने के लिए डीएनए तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं.
लेकिन क्या इन टिक पर हुए प्रयोग से इंसानों की उम्र बढ़ाने जैसी किसी जानकारी का खुलासा हुआ है? ऐसा लगता है कि इस सवाल का जवाब है, ‘नहीं’. शेफ़र्ड ने कहा, “मुझे जो बात सबसे ज़्यादा रोमांचित करती है वो ये है कि किस तरह इन जीवों ने ज़िंदा रहने के असाधारण तरीके खोजे हैं.”
Source: DW