Nepal Plane Crash: बीते 15 जनवरी को नेपाल में हुए विमान हादसे से पूरी दुनिया शोक में है. 15 जनवरी को ‘येति एयरलाइंस’ के ATR-72 विमान ने काठमांडू से पोखरा के लिए उड़ान भरी थी. लेकिन लैंडिंग से महज 10 सेकंड पहले प्लेन क्रैश हो गया. इस दौरान विमान में सवार सभी 72 यात्री मारे गये. इनमें 5 भारतीय और 14 विदेशी नागरिक भी शामिल थे. येति एयरलाइंस का ये विमान डेढ़ दशक पुराना बताया जा रहा है. आंकड़ों की मानें तो नेपाल में साल 2000 से अब तक 17 विमान हादसे हो चुके हैं, जिनमें 273 लोग मारे गए हैं. इनमें से 11 हादसे 2010 के बाद हुए हैं.
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नेपाल में पिछले बड़ा विमान हादसा मई 2022 में हुआ था. इस दौरान ‘तारा एयर’ का एक यात्री विमान नेपाल के मुस्तंग ज़िले में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. इस हादसे में विमान में सवार 22 लोग के बाद मारे गए थे. आइए जानते हैं आख़िर नेपाल में बार-बार इतने विमान क्यों होते हैं.
आख़िर नेपाल में क्यों होते हैं विमान हादसे
नेपाल विमान उड़ाने के मामले में दुनिया के सबसे मुश्किल देशों में से एक माना जाता है. नेपाल अपनी ख़ूबसूरती के साथ-साथ दुनिया के सबसे ख़तरनाक एयरपोर्ट्स के लिए भी जाना जाता है. नेपाल में ऐसे कई एयरपोर्ट्स हैं जहां लैंडिंग के दौरान यात्रियों की सांसे थम जाती हैं. अत्यधिक उंचाई पर स्थित होने की वजह से इन्हें बेहद ख़तरनाक माना जाता है. नेपाल के लुकला एयरपोर्ट (तेंजिंग हिलेरी एयरपोर्ट) को दुनिया का सबसे ख़तरनाक एयरपोर्ट माना जाता है. इसके रनवे के आसपास 600 मीटर की गहरी खाई है.
नेपाल में विमान हादसे के कई कारण हैं. इनमें से कुछ भौगौलिक तो कुछ टेक्निकल कारण हैं. लेकिन नेपाल में विमान हादसों की बड़ी वजह वहां के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और समुद्र तल से काफ़ी अधिक ऊंचाई पर स्थित एयरपोर्ट्स हैं. दरअसल, नेपाल में अधिकतर एयरपोर्ट्स हिल स्टेशनों पर बनाये गये हैं. इस दौरान पहाड़ों के बीच चट्टानों को काटकर रनवे बनाये गए हैं जो लैंडिंग और टेक ऑफ़ के समय बेहद ख़तरनाक बन जाते हैं.
मौसम है दूसरा सबसे बड़ा कारण
नेपाल में मौसम भी एक बड़ा कारण बना हुआ है जिसकी वजह से अनुभवी पायलटों को भी विमान उड़ाने में परेशानी होती है. नेपाल की नागरिक उड्डयन प्राधिकरण की 2019 की एयर सिक्योरिटी रिपोर्ट के मुताबिक़, नेपाल में मौसम पैटर्न की विविधता विमान संचालन के लिए सबसे बड़ी चुनौती में से एक है. मौसम की स्थिति ख़राब होने पर नेपाल के एयरपोर्ट्स से उड़ान भरना और लैंडिंग करना बेहद ख़तरनाक साबित होता है. देश में होने वाले विमान हादसों में बड़े विमानों की तुलना में छोटे विमानों की संख्या ज़्यादा है. ख़ासकर नेपाल में हेलीकॉप्टर हादसे सबसे अधिक होते हैं.
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नेपाल में विमान हादसों की सबसे बड़ी वजह
फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, नेपाल के अधिकांश पायलटों का कहना है कि खड़ी और संकरी हवाई पट्टी होने के कारण यहां विमान को नेविगेट करना बेहद मुश्किल होता है. यहां छोटे विमानों की लैंडिंग तो हो जाती है, लेकिन बड़े जेटलाइनर्स की लैंडिंग बेहद ख़तरनाक हो जाती है. हालांकि, नेपाल में अब तक जितने भी बड़े विमान हादसे हुये हैं वो छोटे विमान ही थे.
इसके अलावा नेपाल के अधिकतर एयरपोर्ट्स पर रनवे की लंबाई कम होना भी हादसे का प्रमुख कारण बन रहा है. रनवे के एक तरफ़ पहाड़ और दूसरी तरफ़ खाई होने की वजह से लैंडिंग और टेक ऑफ़ में ख़ासी दिक्क़तें होती हैं. इसी के चलते इन क्षेत्रों में केवल अनुभवी और उच्च योग्यता वाले पायलटों को उड़ान की अनुमति दी जाती है. लेकिन नेपाल में पर्याप्त प्रशिक्षित एविएशन स्टाफ़ की भी कमी के साथ-साथ विमान सेवा को चलाने के लिए भी पर्याप्त स्टाफ़ नहीं है. इसके अलावा नेपाल में नए विमानों के लिए बुनियादी ढांचे की भी कमी है.
विमान हादसों के टेक्निकल कारण
नेपाल में विमान हादसों की सबसे बड़ी वजह इस्तेमाल हो रहे पुराने विमानों को बताया जा रहा है. नेपाल में आज भी 43 साल पुराने ‘स्टोल विमान’ उड़ाए जा रहे हैं. इन विमानों में मौसम बताने वाले आधुनिक रडार नहीं होते हैं. तकनीक के अभाव में स्टोल विमानों को नेपाल जैसी जगह पर उड़ना ख़तरनाक हो सकता है. इन विमानों में मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाने और आधुनिक उपकरणों का अभाव है.
नेपाली एयरलाइंस पर प्रतिबंध
साल 2013 में यूरोपीय संघ ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए नेपाल की सभी एयरलाइनों को अपने हवाई क्षेत्र में उड़ान भरने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके अलावा यूरोपीय कमीशन ने भी नेपाली एयरलाइंस पर 28 देशों की उड़ान भरने पर प्रतिबंध लगाया था. काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, नेपाल सरकार की विफ़लता के कारण देश के विमान यूरोपीय संघ की ब्लैकलिस्ट से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.
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