‘जिस स्कूल से मैंने पढ़ाई की है वहां पिछड़े वर्ग से आने वाले बच्चों के साथ बहुत दुर्व्यवहार होता था. उन्हें क्लास में हमेशा पीछे बैठाया जाता था… मुझे भी अपमानित किया जाता था.’ – Reeta Kaushik #DearMentor

ये कहानी है उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली रीता कौशिक (Reeta Kaushik) की. 4 भाई-बहनों में पली-बढ़ीं रीता के पिता रिक्शा चलाते थे. पढ़ने  के लिए पैसा नहीं था, फिर भी किसी तरह जब स्कूल पहुंची तो मुसहर जाति से आने के कारण अपमान झेलना पड़ा. ग़रीबी ने एक दौर ऐसा भी दिखाया, जब पढ़ाई छोड़नी पड़ गई. मगर वही रीता न सिर्फ़ अपने परिवार की पढ़ने वाली पहली लड़की बनीं, बल्क़ि आज दलित और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए फ़रिश्ता बन चुकी हैं. (SKVS founder Reeta Kaushik Inspires Girl Child Education Uttar Pradesh)

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आज हम महिला दिवस यानि Womens Day के मौक़े पर हमारे कैंपेन #DearMentor के ज़रिए रीता कौशिक (Reeta Kaushik) की कहानी बताएंगे.

प्रिंसिपल के कहने पर पिता ने कराया एडिमिशन

रीता के भाई बमुश्किल स्कूल जा पाते थे. ऐसे में रीता को स्कूल भेजने का ख़्याल भी पिता के ज़ेहन में नहीं आया. मगर जब एक दिन रीता अपने भाइयों को स्कूल छोड़ने पहुंचीं तो प्रिंसिपल की नज़र उन पर पड़ी. स्कूल प्रिंसिपल ने रीता के पिता से लड़की को पढ़ाने के लिए कहा. शुरुआत में पिता ने आनाकानी की, फिर एडमिशन करा दिया. #DearMentor

मगर रीता को नहीं पता था कि जहां वो शिक्षा हासिल करने जा रही हैं, वहां कुछ जाहिल पहले से बैठे हैं. पिछड़े वर्ग से आने के कारण रीता को अपने स्कूल में काफ़ी भेद-भाव का सामना करना पड़ा.

रीता कहती हैं, ‘स्कूल में पिछड़े वर्ग से आने वाले बच्चों के साथ बहुत ही दुर्व्यवहार होता था. क्लास में हमेशा पीछे बैठाया जाता था और किसी आम-सी ग़लती पर भी मास्टर उन्हें बहुत मारा करते थे. इस वजह से कई सारे दलित बच्चे जो पढ़ना चाहते भी थे, वो भी स्कूल छोड़कर भाग जाते थे. हालांकि मुझे मार कम पड़ी, लेकिन मौका मिलते ही अपमानित किया जाता था.’

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जब बीच में हुई छोड़नी पड़ी पढ़ाई

आर्थिक स्थित के कारण रीता को ग्रेजुएशन के दौरान पढ़ाई छोड़नी पड़ गई. नौकरी करना उनकी ज़रूरत थी. 4 साल तक उन्होंने जॉब की, मगर फिर अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू करने का फ़ैसला किया. इस बार न सिर्फ़ उन्होंने ग्रेजुएशन किया, बल्क़ि, सोशियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट भी कर लिया.

इसी बीच वो गोरखपुर एनवॉयरमेंटर एक्शन ग्रुप नामक एक गैर सरकारी संगठन से जुड़ीं. यहां रहते हुए उन्होंने सोचा कि जो काम ये NGO नहीं कर रहा है, वो अब ख़ुद करेंगी. इसके बाद उन्होंने दलित फाउंडेशन की तीन साल की फेलोशिप हासिल की.

लड़कियों को दिया शिक्षा का तोहफ़ा

मुसहर परिवार से आने के कारण, पिछड़े वर्ग पर हो रहे अत्याचारों से वो अच्छी तरह वाफ़िक थीं. उन्होंने 2004 में अपने गैर सरकारी संगठन ‘सामुदायिक कल्याण एवं विकास संस्थान’ (SKVS) की स्थापना की. SKVS को US AID जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से अनुदान भी मिला. (SKVS founder Reeta Kaushik Inspires Girl Child Education Uttar Pradesh)

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रीता कहती हैं, ‘एक प्रोजेक्ट के तहत उन्होंने 2018-2021 में 5000 लड़कियों को स्कूल में भर्ती कराया. 2004 से अब तक कुल 25000 से अधिक लड़कियों को स्कूल में भर्ती कराया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘मेरी ऑर्गनाइज़ेशन का लक्ष्य है कि दलित और वंचित वर्ग के बच्चों, विशेषकर महिलाओँ और बच्चियों के लिए उनकी शिक्षा और आजीविका के लिए काम करें.’

वो कहती हैं, ज़मीनी हक़ीक़त हमारी कल्पना से अलग होती है. ग्राउंड पर अभी भी बहुत कुछ बदलना है. लोगों को समझाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, शुरुआती दिन तो बहुत ही कठिन थे.

ग्रामीण क्षेत्रों में काफ़ी बुरे हालात

रीता कहती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की स्थित बहुत खराब है. 8वीं के बाद ख़ासकर बच्चियां स्कूल छोड़ देती हैं. क्योंकि, उनके पास कोई ऑप्शन नहीं होता, पेरेंट्स के पास पैसा नहीं होता. ऐसे में ज़्यादातर लड़कियां घर और खेतों के काम संभालने लगती हैं. ऐसे में जिन गांवों में ड्रॉप आउट ज्यादा होता है, हम वहां सेंटर खोलते हैं. बच्चियों की पढ़ाई शुरू करवाते हैं.

बता दें, 2018 में महिला शिक्षा के क्षेत्र में रीता कौशिक के कार्यों को देखते हुए विश्व प्रसिद्ध मलाला यूसुफ़जाई का संस्थान उनसे जुड़ा. 2018 में मलाला फंड ने उन्हें एक करोड़ रुपये का अनुदान दिया था. 2021 में फिर से 85 लाख रुपये अनुदान दिया.

रीता ने कहा, ‘ जबसे हमें ये फंड मिला है, तबसे काम बहुत आसान हो गए हैं. सरकार की तरफ़ से भी मदद मिलती है. इससे हम काफ़ी अच्छे से काम कर पाते हैं.’

रीता कौशिक भविष्य में इसी तरह अपने संगठन के ज़रिए लड़कियों को शिक्षा और आजीविका के मामले में आगे बढ़ते देखना चाहती हैं.

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